19. कोरोना और हवन/यज्ञ

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

पिछले कुछ समय से पूरे विश्व की रंगत बदली हुई है। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। लेकिन दहशत और डर का संक्रमण इस वायरस से भी तेज गति से फैल रहा है। जब भय का परिदृश्य बिल्कुल सामने हो तो लोग जानलेवा संक्रमण की चपेट में आने की आशंका से अवश्य भरे रहेंगे। ऐसे में हमें बचाव के तरीकों को अपनाने के साथ-साथ अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति की तरफ मुड़ कर देखने की जरूरत है। हमारे ऋषि मुनि किस तरह हवन करके वातावरण को शुद्ध रखते थे, और हानिकारक जीवाणुओं और कीटाणुओं को फैलने से रोकते थे। ऐसे में हम भी यदि सुबह-शाम अपने घर में हवन की परंपरा को अपनाते हैं, तो इससे वातावरण शुद्ध होगा और खतरनाक वायरस जैसे कोविड-19 के संक्रमण का खतरा भी खत्म हो जाएगा। हवन के द्वारा बहुत सी बीमारियों के कीटाणुओं को खत्म किया गया है, यह प्रमाणिक है।
हवन या यज्ञ सनातन धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। अग्नि को ईश्वर रूप मानकर पूजा करना ही हवन या यज्ञ है। इसे अग्निहोत्र भी कहते हैं। अग्नि ही यज्ञ का प्रधान देवता है। कुंड में हवि डालकर अग्नि मेंआहुति देते हुए ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा स्थापित की गई है। वायु प्रदूषण और वातावरण में फैले हुए कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए ही यह हवन करने की परंपरा स्थापित की थी। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए हवन किए जाते थे और तब हमारे देश में कई तरह के रोग नहीं होते थे। क्योंकि अग्नि में वह गुण समाहित है, जिससे वह किसी भी पदार्थ के गुणों को कई गुना बढ़ा देती है। आपने देखा होगा कि अग्नि में यदि मिर्च डाल दी जाए, तो उसका प्रभाव कितना बढ़ जाता है। ऐसे ही जब अग्नि में घी सामग्री की आहुति दी जाती है, तो वह हमारे आस-पास के वातावरण को शुद्ध कर देती है। क्योंकि मौसम के अनुसार वातावरण में विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमंडल स्वास्थ्यकर होता है और कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इन विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियां प्रयुक्त की जाती हैं, जो हमारे उद्देश्य को भली-भांति पूरा करने में सक्षम हैं। यद्यपि हमारी प्राचीन संस्कृति, वेद आदि शास्त्रों में यज्ञ-अनुष्ठान का यह विधान है, किंतु धर्म ग्रंथों पर आस्था न रखने वाली आज की युवा पीढ़ी, जो केवल विज्ञान, तर्क, युक्ति तथा प्रत्यक्ष-प्रमाणों पर विश्वास करती है, उनको ध्यान में रखते हुए मैं कुछ उदाहरण प्रस्तुत करती हूं, जिनको विज्ञान ने मान्यता दी है।

पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज के जीवाणु शास्त्रियों ने एक प्रयोग किया। उन्होंने 36 इंच, 22 इंच और 10 इंच घनफुट के एक हवन कुंड में एक समय का अग्निहोत्र किया। परिणाम स्वरूप 8000 घनफुट वायु में कृत्रिम रूप से निर्मित प्रदूषण का 77 .5 % हिस्सा खत्म हो गया। इतना ही नहीं इसी प्रयोग से उन्होंने पाया कि एक समय के अग्निहोत्र से 96% हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं। यह सब यज्ञ की पुष्टि कारक गैसों से ही संभव हुआ। अग्निहोत्र जर्मनी के एक वैज्ञानिक जो केमिस्ट्री, बॉटनी मेडिसन, रेडियोलॉजी के ज्ञाता हैं तथा जर्मनी विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं, लिखते हैं कि –

After I tested Agnihotra myself it really seems that with Agnihotra you have a wonder weapon in your hands.

अर्थात स्वयं अग्निहोत्र का परीक्षण करने के बाद मैंने पाया है कि सचमुच अग्निहोत्र के आचरण द्वारा मानो आपके हाथ में एक अद्भुत शस्त्र आ जाता है। उक्त वैज्ञानिक जर्मनी की एक कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के संचालक भी हैं।

अग्निहोत्र जलती शक्कर में वायु शुद्ध करने की बहुत बड़ी शक्ति विद्यमान है। इससे चेचक, हेजा, क्षय (COW POX, CHOLERA, TB) आदि बीमारियां तुरंत नष्ट हो जाती हैं ।मुनक्का, किशमिश आदि फलों को (जिनमें शक्कर अधिक होती है)जलाकर देखा तो पता चला कि इनके धुएं से आंतरिक ज्वर के कीटाणु 30 मिनट में और दूसरे रोगों के कीटाणु 1 या 2 घंटे में  नष्ट हो जाते हैं। 

वैज्ञानिक ट्रिलवर्ट “वैदिक यज्ञ विज्ञान”

घी के जलाने से रोग कीट मर जाते हैं।

डॉक्टर हैफकिन फ्रांस

डॉ कुंदन लाल अग्निहोत्री एम. डी. ने टी.बी. सेनेटोरियम जबलपुर में टी.बी. के रोगियों की यज्ञ के द्वारा चिकित्सा की। उनके अनुसार गाय के घी से यज्ञ करने पर रोगी शीघ्र आरोग्य हुए। यज्ञ विमर्श गाय के घी के साथ सामग्री की मंत्रोच्चार के साथ जब आहुति दी जाती है, तो निम्न प्रकार की चार गैसों का पता चला है।

  1. एथिलीन ऑक्साइड
  2. प्रापिलीन ऑक्साइड
  3. फार्मेल्डिहाइड
  4. बीटा प्रापियों लेक्टोन।

आहुति देने के पश्चात एसिटिलीन निर्माण होता है। यह एसिटिलीन प्रखर उष्णता की ऊर्जा है। जो दूषित वायु को अपनी ओर खींचकर उसे शुद्ध करती है। गो घृत से उत्पन्न इन गैसों में कई रोगों को तथा मन के तनावों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है। अग्निहोत्र मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से जर्मनी की एक प्रयोगशाला में अनुसंधान हुआ है। मनुष्य के स्वास्थ्य में चिकित्सकीय या रोग विरोधी दृष्टि से तथा प्राकृतिक वायुमंडल के शुद्धिकरण और उर्वरता की दृष्टि से यज्ञ के धुऐं और राख की उपयोगिता सिद्ध हुई। इस यज्ञ से वायुमंडलीय और पर्यावरणीय स्वास्थ्य बढ़ता है।

सरंक्षण या विनाश कुछ लोगों के प्रश्न है कि वातावरण को सुगंधित करना ही यज्ञ का प्रयोजन है तो यह कार्य अगरबती, धूप, इत्र, सेंट, फूलों आदि के द्वारा भी किया जा सकता है, यज्ञ की क्या आवश्यकता है? यह उनके प्रश्न हैं, जो यज्ञ के महत्व को नहीं समझत। यज्ञ का उद्देश्य केवल सुगंधि फैलाना ही नहीं है, बल्कि प्रदूषण और बहुत सारे हानिकारक जीवाणुओं और विषाणुओं को भी नष्ट करना होता है।अगरबत्ती, धूप आदि द्रव्यों के जलाने से या घर में फूलों को लगाने से केवल सुगंधी ही उत्पन्न होती है। वह भी सीमित मात्रा में व सीमित स्थान पर, जबकि यज्ञाग्नि में डाली गई अनेक प्रकार की औषधियों व घी के जलने पर उत्पन्न धुंआ दूर-दूर के जलवायु के प्रदूषण अथवा दोषों को दूर करता है। तथा उसे सुगंधित भी बनाता है। धूप अगरबत्ती या फूलों में वह सामर्थ्य नहीं होता, जो घर में विद्यमान गंदी वायु को बाहर निकाल दें तथा शुद्ध वायु का बाहर से अन्दर प्रवेश करा सके।

यज्ञ का उद्देश्य केवल  मात्र जलवायु को शुद्ध करना ही होता, तो इस उद्देश्य की पूर्ति तो कहीं पर भी यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा अग्नि जलाकर उसमें घी, सामग्री को डालकर कर ली जाती। किंतु यज्ञ का प्रयोजन केवल भौतिक ना होकर आध्यात्मिक भी है, जो कि भौतिक लाभों की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।यज्ञ में जिन मंत्रों की आहूति दी जाती है, उनसे पूर्व शब्द का उच्चारण किया जाता है, जो हमें यह बोध कराता है कि समस्त प्राकृतिक पदार्थों का आदि मूल वह सच्चिदानंद परम तत्व परमेश्वर है, अर्थात हमारे पास जो भी धन, बल, विद्या, सामर्थ्य आदि पदार्थ है, उन सब का उत्पादक, रक्षक, धारक स्वामी परमेश्वर है, हम नहीं। लेकिन हम अहम् के वशीभूत होकर उस परम तत्व को भूल जाते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि प्रभु कृपा से समस्त मनुष्य, समाज, अपनी त्यागी हुई विशुद्ध परंपरा को पुनः अपनी दिनचर्या में अपनाकर इस कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव से परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को बचाकर उसे सुखी, संपन्न बनाऐं। इसी भावना के साथ मैंने अपनी प्राचीनतम परम्परा की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।

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