205. जीवन का गूढ़ रहस्य

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जन्म से पहले और मृत्यु के पश्चात् का संसार कैसा होता है? यह एक गूढ़ रहस्य है। इसे जानने की जिज्ञासा सृष्टि के आरम्भ से ही मनुष्य को विचलित करती रही है। हमारे सनातन धर्म में ध्यान, समाधी एक ऐसा मार्ग है, जिस पर चलकर हमारे ऋषि-मुनियों ने इस रहस्य को उजागर किया है और उन्हीं के द्वारा कई धर्म ग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। परंतु हमारी जिज्ञासा उसके प्रत्यक्ष अनुभव की रही है। इसमें सबसे बड़ी बाधा यही है कि— जीवित व्यक्ति बगैर आध्यात्मिक दृष्टि के, जीवन के उस पार नहीं देख सकता और मृत व्यक्ति इस पार आकर बता नहीं सकता।

इसको लेकर विज्ञान और अध्यात्म में मतभेद है। विज्ञान तो सिर्फ सिद्धांत को मानता है— ज्ञात और अज्ञात।
जिसे जान लिया गया है, वह ज्ञात की श्रेणी में आता है।
जिसे अब तक नहीं जाना गया जैसे जन्म के पहले और मृत्यु के बाद का जीवन। वह अज्ञात की श्रेणी में आता है।
विज्ञान को यह विश्वास है कि चाहे लाखों वर्ष और लग जाएं, इस रहस्य को भी जान लेंगे जबकि अध्यात्म ज्ञात-अज्ञात के अलावा तीसरे सिद्धांत अज्ञेय को भी मानता है। अध्यात्म मान्यता है कि जन्म के पहले और मृत्यु के पश्चात् जैसे रहस्य सदा रहस्य ही बने रहेंगे। यह अज्ञेय है। इसे कभी भी जाना नहीं जा सकेगा।

अध्यात्म का स्पष्ट कहना है कि— मृत्यु के पश्चात् आत्मा पुनर्जन्म लेती है। यह शरीर तो नश्वर है‌। आत्मा शरीर छोड़ने के बाद दूसरा शरीर धारण करती है। जिस प्रकार हम पुराने कपड़े उतार कर नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही आत्मा इस पुराने, जीर्ण-क्षीर्ण शरीर का त्याग कर, नया शरीर धारण करती है। जो चला गया है, वह नया शरीर धारण कर वापिस लौट आएगा, नए रिश्तों के साथ, नए संबंधों के साथ, नए नाम के साथ। रिश्ता चाहे कोई भी हो, लेकिन वह वापिस लौट आता है, इस बात की पुष्टि अध्यात्म करता है कि—वे हमारे बीच ही रहते हैं।

दूसरा अध्यात्म यह भी कहता है कि— वे अत्यंत सूक्ष्म तत्व के रूप में होते हैं। वे गए नहीं हैं, यही हैं बस फर्क इतना हो गया कि— अब उनके पास शरीर नहीं है। इसलिए हम उन्हें देख नहीं सकते लेकिन वे हमें देख रहे हैं। शरीर के बंधन से छूटने के बाद वे अनंत शक्तियों के स्वामी हो गए हैं। वे हमेशा हमारा ध्यान रखेंगे। उनका आशीर्वाद हमेशा हम पर बना रहेगा। जीवन की कठिन परिस्थितियों में हम उम्मीद से उनसे प्रार्थना करते हैं और ज्यादातर हमारी प्रार्थनाएं स्वीकार भी होती हैं। ऐसे रोमांचक क्षणों में पल भर के लिए ही सही उनके यहीं कहीं आस-पास मौजूद होने का अहसास भी कर लेते हैं।

हमारे मध्य में ही कुछ ऐसे मनुष्य भी हैं जो इस तरह की बातों को कोरी बकवास कहते हैं। उनके लिए उपनिषदों में वर्णित एक कथा है।
इस कथा के अनुसार माता पिता अपने बालक की अकाल मृत्यु से अत्यंत दुखी हैं। किसी संत-महात्मा के पास जाते हैं। महात्मा के पास अलौकिक शक्तियों का भंडार है। उन अलौकिक शक्तियों के द्वारा उस मृत बालक का आह्वान करके, उसे उनके सामने उपस्थित कर देता है। माता-पिता भाव-विभोर होकर जैसे ही उस बालक की ओर लपकते हैं, वह बालक पीछे हटते हुए बड़े निर्विकार भाव से पूछता है कि— आप कौन हैं?
माता-पिता रोते हुए कहते हैं कि— तुम हमारे पुत्र हो। लेकिन बालक उन्हें पहचानने से इंकार करते हुए कहता है कि— मेरे तो न जाने कितने जन्म हो चुके हैं और वह भी न जाने कितने- कितने रूपों में।

यह सुनते ही माता-पिता का मोह भंग हो जाता है और उनका उद्वेलित मन शांत हो जाता है।

भौतिक विज्ञानी इस जगत को निरंतर गतिमान एवं परिवर्तनशील मानते हैं। जब सब कुछ परिवर्तनशील है तो यह जीवन, यह शरीर और हमारे संबंध अपरिवर्तित कैसे रह सकते हैं?
भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि— आत्मा अपने पुराने जीर्ण-शीर्ण शरीर को त्याग कर, नए शरीर को धारण करती है। जो पुराना था वह छूट गया। अब जो नया है, वह पुराने को पहचान नहीं पा रहा यानी कि मृत्यु यदि एक का अंत है तो दूसरे का प्रारंभ है। यह एक अनंत क्रम है और इस क्रम में हम भी शामिल हैं इसलिए अफसोस कैसा, दुख कैसा।

लेकिन विज्ञान तो प्रत्यक्ष को स्वीकार करता है। अध्यात्म की इन बातों पर विश्वास नहीं करता। हम में से बहुत से ऐसे मनुष्य भी हैं जो विज्ञान की बातों को स्वीकार करते हैं तो ऐसे मनुष्यों के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विद्वानों ने मध्यमार्ग अपनाया। उन्होंने कर्म के महत्व को समझाया। उनका कहना है कि— जन्म के पहले का संसार कैसा था और मृत्यु के पश्चात् क्या होता है? इसकी चिंता किए बिना जो जीवन जी लेता है। वही यथार्थ है।

अच्छे कर्मों से हम अपने जीवन में ही अपने लिए स्वर्ग की रचना कर सकते हैं क्योंकि रामचरितमानस और भगवत गीता में भी कर्म को ही प्रधानता दी गई है। सच्चाई यही है कि हम अपने कर्मों से ही अपने भाग्य को बनाते भी हैं और बिगाड़ते भी हैं। केवल हमें यह ध्यान रखना है कि कर्म सिर्फ शरीर की क्रियाओं से ही नहीं बल्कि मन से, विचारों से, एवं भावनाओं से भी संपन्न होता है। कर्म के इस भेद को समझे बिना जीवन के गूढ़ रहस्यों को सुलझाना संभव नहीं है। इसलिए हमें कर्म की महत्ता समझनी होगी।

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