210. क्षमा बनाती है, सहनशील

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जैन धर्म में पर्युषण महापर्व के एक दिन बाद जो महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है, वह है— क्षमा पर्व। इस दिन गृहस्थ और साधु दोनों ही वार्षिक प्रतिक्रमण करते हैं। जाने या अनजाने यदि उन्होंने पूरे वर्ष किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के प्रति कोई भी अपराध किया हो तो उसके लिए, वह उनसे क्षमा याचना करते हैं। अपने दोषों की निंदा करते हैं और क्षमा मांगते हैं।

क्षमा पर्व पर मनुष्य सभी जीवों को क्षमा करते हैं। सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं— मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों, मेरी किसी से भी शत्रुता नहीं है। इस दिन लोग प्रायश्चित भी करते हैं और हाथ जोड़कर नतमस्तक होकर याचना करते हुए कहते हैं— मैं सभी जीवो को क्षमा करता हूं और सभी जीव भी मुझे क्षमा करें। मेरी प्रत्येक जीव के साथ मित्रता है, किसी के साथ शत्रुता नहीं है।
इस प्रकार वे क्षमा के माध्यम से अपनी आत्मा से सभी पापों को दूर करके उनका प्रक्षालन करके सुख और शांति का अनुभव करते हैं।

क्षमा पर्व एक बहुत ही खूबसूरत पर्व है, जिसमें मनुष्य अपनी आत्मा के सारे बोझ उतार देता है, जिससे उसमें सहनशीलता आ जाती है। आज पूरे विश्व में उथल-पुथल मची हुई है। अशांति और हिंसक घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके लिए हमें बदले की भावना से ऊपर उठना होगा और दूसरों की गलतियों को माफ करना सीखना होगा क्योंकि संसार की बहुत सी समस्याएं केवल बदले की भावना से ही शुरू होती है। एक मनुष्य दूसरे को दुख पहुंचाता है और दूसरा मनुष्य उससे बदला लेना चाहता है। यह कर्म निरंतर चलता रहता है और प्रतिशोध की भावना इतनी बढ़ जाती है कि वह खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। प्रतिशोध की इस भावना को केवल क्षमा द्वारा ही खत्म किया जा सकता है।

इसलिए हमें ईश्वर का स्मरण करते हुए अपने अंतर में ध्यान अभ्यास द्वारा शांति को प्राप्त कर लेना चाहिए, तभी हम क्षमा के गुणों को आत्मसात् कर पाएंगे। ऐसे में हम में से प्रत्येक व्यक्ति शांति का एक प्रकाश स्तंभ बन जाएगा और फिर धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में सुख, शांति फैल जाएगी क्योंकि क्षमा कर देना बहुत बड़ी क्षमता का परिचायक है।

जो मनुष्य क्षमा के गुण को अपने जीवन में धारण कर लेता है, वह पलक झपकते ही बड़े से बड़े अवरोधों को पार करने का सामर्थ्य रखता है। क्षमा एक ऐसा गहना है जो शत्रु को भी मित्र बना सकता है। जिनसे बोलचाल बंद है, उनसे भी याचना करके बोलचाल प्रारंभ कर, अनंत कषाय को मिटाने का सर्वोत्तम साधन है— क्षमा।

संवादहीनता जितना बैर को बढ़ाती है, उतना कोई और नहीं। इसलिए चाहे कुछ भी हो जाए, संवाद का मार्ग कभी बंद नहीं होना चाहिए। अगर संवाद बचा रहेगा तो क्षमा की सभी संभावनाएं शेष रहेंगी। इसलिए हमें क्षमा के गुण को अपने भीतर धारण करना चाहिए ताकि यह संसार शांति और प्रेम से भर जाए।
कहा भी गया है—
क्षमावीरस्य भूषणं अर्थात्
क्षमा वीरों का आभूषण है।

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