श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
जीवन रूपी यात्रा में अपनी मंजिल पर पहुंचना मनुष्य के लिए बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है, परंतु उसके लिए आत्मविश्वास और इरादा मजबूत होना चाहिए। इनके अभाव में किसी भी प्रकार की सफलता और सिद्धि के द्वार पर नहीं पहुंचा जा सकता। मंजिल पर पहुंचने के लिए हृदय में श्रद्धा और विश्वास, मन में चाहत और लगन होनी चाहिए। अगर ऐसा है तो मनुष्य राह की खोज कर ही लेता है।
मनुष्य में विकास की असीम संभावनाएं होती हैं, जब तक उनके विचारों में निराशा, हीनता और भीरुता का आवरण होता है, तब तक वह अपनी संभावना और शक्तियों पर विश्वास नहीं कर पाता। वह एक दो बार की कोशिश में ही हार मान कर बैठ जाता है और उनके भीतर का हीरो बाहर निकलने की बाट जोहता रहता है। वह अपनी तरक्की के दरवाजों को बंद कर यह मान बैठता है कि अब कुछ नहीं हो सकता।
सभी मनुष्य मनचाही मंजिल को पाने के लिए तत्पर रहते हैं। हममें से ज्यादातर को तुरंत अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी लगी रहती है। मंजिल ढूंढने में जरा- सी देर क्या हुई रास्ते को ही गलत ठहरा देते हैं। जरूरी तो यह है कि हम सिर्फ मंजिल नहीं बल्कि पूरी जीवन-यात्रा पर ध्यान दें। हमें यह समझना चाहिए की सफलता एक दिन में नहीं मिलती, निरंतर प्रयास करना पड़ता है।
वास्तव में देखा जाए तो मानव जीवन की सफलता किसमें है, यह तो विरले ही सोच पाते हैं। यह जीवन हमें क्यों मिला, किसने दिया? इस प्रश्न पर विचार करना और जीवन को सफल करने के लिए मंजिल की खोज करना ही मानव जीवन का अहम् उद्देश्य होना चाहिए। हम में से सभी मनुष्य यह भली-भांति जानते हैं कि— मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता। यह जन्म- जन्म के पुण्य की प्रबलता होने पर ही मिलता है।
शास्त्रों के अनुसार यह जीवन ईश्वर भक्ति के लिए मिला है, इसी से ही जीवन सफल हो पाएगा। ईश्वर ने प्रकृति में प्राणियों के लिए हवा, पानी और प्रकाश की निशुल्क व्यवस्था की है। जो व्यक्ति इसको समझते हैं, वे ही ईश्वर भक्ति और सत्कर्म करते हैं।
जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है, यही ईश्वरीय विधान है। जिनके अंदर इंसानियत है, वे ईश्वर भक्ति कर जीवन को सफल बनाते हैं। जिन्हें भक्ति नहीं करनी है, उनके तो बहाने अनगिनत हैं। ईश्वर की पद्धति और नियम में भी जो उपयुक्त होता है, वह उसे ही गले से लगाकर रखता है। आलसी, प्रमादी, कामी और नास्तिक व्यक्ति तो वैसे भी पृथ्वी पर बोझ के समान है। ऐसे मनुष्य स्वयं का शरीर भी ढोने के काबिल नहीं होते। दुख की बात यह है कि ज्यादातर समय हम मुखौटा ओढ़े रहते हैं जैसे भीतर से होते हैं, वैसे ही बाहर बने रहने से बचते हैं। डरते हैं, खुद को छुपाए रहते हैं।
संत कबीर कहते हैं—
नदियां एक घाट बहु तेरे, कहे कबीर वचन के फेरे।
सच है, ईश्वर प्राप्ति ही मानव जीवन के लिए असली मंजिल है। इरादा नेक हो तो किसी भी पंथ या संप्रदाय के माध्यम से ईश्वर को पाना संभव है।
Jai radhe radhe shyam meri gindagi mera shree shyam