श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
यह संसार आंसुओं की घाटी नहीं, संतोष का उपवन है। संतोष एक जादुई दीपक की तरह है।
कवियों ने संतोष के बारे में बहुत ही सुंदर चित्रण किए हैं —
संतोष के दीपक से मछुआरे की टूटी- फूटी झोपड़ी चांदी के महल में बदल जाती है। उस झोपड़ी के शहतीर, उसका फर्श, उसकी छत और उसका फर्नीचर सब नए प्रकाश से चमकने लगते हैं।
मेरा मुकुट मेरे हृदय में है।
वह मेरे सिर पर नहीं।
उस मुकुट में हीरे और मरकत की मणियां नहीं जड़ी हुई।
मेरा मुकुट दिखाई नहीं देता —अदृश्य है।
उसका नाम संतोष है।
यह ऐसा मुकुट है, जो बादशाहों को भी शायद ही कभी नसीब हुआ हो।
फारस के बादशाह को उसके बुद्धिमान सलाहकारों ने सलाह दी—
तुम संतोष की कमीज पहनो।
फिर क्या था?
बादशाह ने आदेश दे दिया कि—
संतोष की कमीज लेकर आओ। चारों दिशाओं में घुड़सवार दौड़ा दिए गए।
बहुत खोज करने के बाद केवल एक ही व्यक्ति मिला जो संतोषी था। लेकिन उसके पास कोई कमीज नहीं थी। वह तो एक निर्धन और अन्धा मनुष्य था, जो घूम- घूम कर सुई-धागा और बटन बेचकर गुजारा करता था।
घुड़सवार उसे पकड़ कर बादशाह के पास ले आए।
बादशाह ने जब उसे देखा तो उस पर दया आ गई।
बादशाह ने उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा कि—
तुम्हें जिंदगी से कोई शिकायत नहीं।
तुम्हारे अंदर इतना संतोष कैसे है?
उस व्यक्ति ने बादशाह को बताया— मैं अपने व्यापार से इतना कमा लेता हूं कि— मेरी तमाम आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। यदि जो कुछ मेरे पास है, उसके लिए भगवान से शिकायत करूं तो मेरा यह कार्य नीचतापूर्ण होगा।
उसकी यह बातें सुनकर बादशाह बड़ा हैरान हुआ।
वह सोचने लगा कि— इस प्रकार की दृढचित्तता केवल संतुष्ट और आनंदित मनुष्य में ही हो सकती है।
Jai Radhe Radhe Shyam Jai Shree Shyam