श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
हमारी इच्छाशक्ति वह अस्त्र है, जो मन को शुद्ध रखती है। मधुर मन और खुश मन सदैव सफलता की ओर अग्रसर करता है। मन को मजबूत और बलवान बनाना हमारा संकल्प होना चाहिए क्योंकि मन का स्वस्थ होना ही होश में होना कहलाता है।
महान और सफल व्यक्ति हमेशा कहते आए हैं कि— कामयाब होना है तो आदमी को कोई भी कदम अपने दम पर उठाना चाहिए। क्योंकि दूसरों के दम पर उठाए गए कदम पर हमें दूसरों की अनुकंपा पर निर्भर होना पड़ता है और वह कब साथ छोड़ दें भरोसा नहीं।
किसी ने कहा है कि—
” उड़ने दो मिट्टी को, आखिर कहां तक उड़ेगी।
जब भी हवाओं ने साथ छोड़ा, धरती पर गिरेगी।”
इसलिए केवल दूसरों के सहारे पर निर्भर न रहें, स्वावलंबी बने और अपनी इच्छाशक्ति और धैर्य के साथ सकारात्मकता से सफलता की तरफ अग्रसर हों। इच्छाशक्ति जीवन और सूकून के बीच एक तारतम्यता लाती है। हमारे मन और उसकी सारी चिंता को शून्य कर देती है— विश्वास से भरी हुई इच्छाशक्ति।
आसान है, मेहनत की पगडंडी पर चलना और सफलता के राजमार्ग पर दौड़ लगाना। बस एक शर्त है कि अपना आईना, अपने सामने रखना।
सुकरात ने हमेशा अपने शिष्यों से कहा—जो तुम हो, वही बने रहो, किसी मुखोटे के सहारे मत रहो।
अगर यही सवाल आप अपने आप से करेंगे, तो एकाएक अपनी मौलिकता पर भरोसा होने लगेगा। खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे। आपको यह अहसास होगा कि ईश्वर ने आपको यह मनुष्य शरीर बेकार में ही नहीं दिया और फिर विश्वास की एक रोमांचक लहर दिनचर्या को जीवंत कर देगी।
चाणक्य यह मानते थे कि— हम कितने भी दुबले-पतले क्यों न हों, बस इच्छाशक्ति से अद्भुत और अकल्पनीय कार्य कर सकते हैं। दरअसल मनुष्य की मानसिक ताकत अलौकिक होती है। जिसका हम उपयोग ही नहीं कर पाते।
आपको एक कहानी के माध्यम से समझाना चाहती हूं कि— एक लकड़हारा अन्य साथी लकड़हारों से ज्यादा लकड़ी काट लेता था और ज्यादा कमा लेता था। जब उससे भेद पूछा गया, तो उसने बताया कि- जब बीच में उसे अवकाश मिलता है, तो बाकी लकड़हारे गप्पे हांकने में लगाते हैं, वह उसी समय अपनी कुल्हाड़ी में सान (धार) रखने लगता है। इससे वह ज्यादा तेजी से लकड़ी काट पाता है। यह तो बात कुल्हाड़ी की थी कि उसमें सान रखने से वह और ज्यादा धारदार हो जाती है।
हमारा दिमाग भी ऐसा ही होता है। थोड़े समय में अगर सफलता का स्वाद चखना है तो दिमाग को शार्प करने के लिए सान तो रखनी ही होगी। ऐसे में अगर निराशा के बादल छाने लगें तो अपनी रूचि के अनुसार कार्य करके उसे धार तो दे सकते हैं। गिटार बजाने का शौक है तो गिटार बजाइए, कहानी पढ़ने का शौक है तो अपनी पसंदीदा कहानी की किताब उठा लीजिए। कुछ भी नहीं करना तो टीवी पर अपना मनपसंद कार्यक्रम देखकर ही रिलैक्स हो जाइए। यह सब दिमाग के लिए सुकून भरा होगा।
हमें जीवन में विष और अमृत दोनों का अवसर मिलता है। यहां विष का आश्य विपरीत परिस्थितियां अर्थात् असफलताओं से है और अमृत का आश्य अनुकूल परिस्थितियां यानी सफलताओं से है। ऐसा नहीं है कि जीवन एकांगी हो गया। लेकिन यदि प्रतिकूल हालात उत्पन्न हों तो धैर्य का अमृत पीना चाहिए और अनुकूल समय है तो धैर्य का अमृतपान करना चाहिए। अक्सर देखने को मिलता है कि प्रतिकूल वक्त में व्यक्ति साहस खो देता है और नकारात्मक चिंतन में लग जाता है और अनुकूलता के समय अहंकार में डूब जाता है।
हमें भगवान शिव से प्रेरणा लेनी चाहिए जो हर स्थिति में प्रसन्न रहते हैं। यदि शिवजी का उपासक जीवन की कठिनाइयों को आत्मविश्वास एवं नेक इरादों की दवात में घोलकर दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने जीवन पथ के कागज पर, बुद्धि में निवास करने वाली ज्ञानशक्ति से लिखे तो उसके जीवन पथ पर आनंद प्रदाता शिवजी दिखाई पड़ने लगेंगे और उसे आनंद की अनुभूति होगी। शिव की उपासना से यह प्रेरणा मिलती है कि भिन्न-भिन्न प्रकृति और अभिरुचि के लोगों को एक साथ करना ही सार्थक जीवन पद्धति है।
शिवजी के सिर में जल रूप में गंगा और ऊर्जा के रूप में चंद्रमा, गले में सर्प और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर, पुत्र गणेश का वाहन मूषक (चूहा), मां पार्वती का वाहन शेर और खुद उनका वाहन नंदी (बैल) आपस में एक-दूसरे के बैरी होने के बावजूद एक साथ, एक परिवार में रहते हैं। इस प्रकार शिव जी की सच्ची आराधना से विपरीत परिस्थितियों में विचलित होने की बजाय उसके साथ तादात्म्य बनाने की क्षमता प्राप्त होती है। इसके अलावा शिवजी के अर्धनारीश्वर स्वरूप पर दृष्टि डालने से जहां दाहिना हिस्सा शिवजी के रूप में कर्मक्षेत्र का परिचय देता है, वहीं वाम भाग, भाव पक्ष का स्वरूप है। दोनों पक्षों के सहयोग से कोई कार्य किया जाएगा तो सफलता जल्दी मिलेगी।
लेकिन हम अनुसरण ही नहीं करते और एक उम्र गुजर जाती है। तब जाकर समझ में आता है कि जो उपलब्धि कोई और हासिल कर रहा है, वह तो हम भी प्राप्त कर सकते थे। लेकिन हम अपनी इच्छाशक्ति को जगाना ही भूल गए। संतुलन स्थापित कर ही नहीं पाए और सर्वोत्तम के अधिकारी होने के बावजूद उससे वंचित रह गए। हम हर कार्य में सफलता तो चाहते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि शुरुआत करने से पहले किन- किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।
हमें कई ऐसे प्रसिद्ध लोगों के जीवन की रोचक जानकारी, उनके अनुभवों और विचारों को आत्मसात् कर लेना चाहिए, जो अपने- अपने क्षेत्र में सफल हुए हैं। उनके अनुभवों से सीख लेकर संभवतः हम भी अपनी इच्छा शक्ति को जागृत करने में सफल हो जाएं। यदि विफलता से हम हताश और निराश हो गए हैं तो सफल व्यक्तियों के जीवन की सच्ची घटनाएं हमें नकारात्मकता के भंवर में फंसने नहीं देंगी। ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे समाज में मिल जाएंगे, जिन्होंने निराशा के दौर में अपने आप को संभाला और संघर्ष कर सफलता प्राप्त की।
एक पत्ता जब तक पेड़ की डाल पर होता है तो वह भी वृक्ष कहलाता है, पक्षियों को नीड़ प्रदान करता है और गिलहरी को खेलकूद भरी शरारत का अवसर भी। उसी तरह यह इच्छाशक्ति भी है, जब तक यह मन से जुड़कर हिलोरे लेती है, तब तक जज्बा, जोश, जुनून भी कायम रहता है। बाज हमेशा बादलों से भी ऊपर उड़ान भरता है, क्योंकि वहां उसकी इच्छाशक्ति उसको बदलते मौसम के मिजाज से बेफिक्र बना देती है। मनुष्य भी वही महान है, जो स्थिरता को छोड़कर ऊंचाई की तरफ बढ़ता है।
ऊंचा उठने के लिए समर्पण चाहिए। बेचैन रहने से आत्मविश्वास डगमगा जाता है। हमें पूरे पैशन एवं उत्साह के साथ हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि भविष्य को लेकर मन में नकारात्मक सोच न पनपने दें। हमें अपने लक्ष्य पर फोकस रखना चाहिए कोई भी असफलता जिंदगी का फुलस्टाप नहीं हो सकती। अपनी प्राथमिकताएं तय करें और इच्छाशक्ति रूपी सीढ़ियों से अपनी सफलता रूपी मंजिल को प्राप्त करें।
Jai Radhe Radhe Shyam Jai Shree Shyam