23. परिवार का महत्व

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

इंसान के जीवन में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जीवन की हर परिस्थिति में परिवार हमारे साथ खड़ा रहता है। हमें हर प्रकार से मनोबल प्रदान करता है। घर के बड़े बुजुर्ग हमें अपने अनुभवों से जीवन में आगे बढ़ने, उन्नति करने व हर परिस्थिति में खुश रहने की शिक्षा प्रदान करते हैं। परिवार का अपनत्व हमें अकेला महसूस नहीं होने देता। परिवार हमारे जीवन में रीढ की हड्डी की तरह महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार रीढ की हड्डी हमारे शरीर का सारा भार वहन करती है, उसी प्रकार परिवार भी हमारे जीवन में आने वाले सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, यश-अपयश आदि का भार उठाता है। विषम परिस्थितियों में परिवार हमारे लिए रक्षा कवच बन जाता है। जीवन की परेशानियों और कठिनाइयों से वह हमें उसी प्रकार बाहर निकाल लाता है, जिस प्रकार माली फूलों को चुनते हुए पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। इस दुनिया में वह इंसान खुश-किस्मत है, जिसके पास सुख में ह्रास-परिहास करने के लिए और दुख-विपत्ति में साथ में बैठकर गम बांटने के लिए परिवार है।

परिवार की पाठशाला से ही एक व्यक्ति संस्कारों की शिक्षा ग्रहण करता है। बचपन से ही बच्चों में संस्कारों का बीज बो दिया जाता है। जब बच्चे दादी-नानी को पूजा-पाठ  व उपवास करते हुए देखते हैं, तो उनके कोमल मन में स्वाभाविक रूप से उपवास करने की भावना जागृत हो जाती है और वे बचपन से ही ईश्वर में विश्वास करने लग जाते हैं। उनके जिज्ञासु मन में पूजा-पाठ और उपवास को लेकर अनेक सवाल उमड़ पड़ते हैं। जिनका समाधान ढूंढने के लिए वे बार-बार प्रश्न करते रहते हैं। उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए दादी-नानी समझाती हैं- उपवास में तन और मन के साथ, श्रेष्ठ समाज का निर्माण भी समाहित है। उन्होंने फिर पूछा- अब तक हमने सुना था- उपवास से तन स्वस्थ व आत्मा पवित्र होती है, यह समाज बीच में कहां से आ गया? तब दादी-नानी गंभीरतापूर्वक एवं धैर्य के साथ समझाना शुरू करती हैं कि- बात दरअसल यह है कि उपवास करने से धार्मिक भावना का उद्गम तो होता ही है, उसके साथ-साथ यह भी ज्ञात हो कि भूख क्या होती है? भूख का महत्व मालूम होना ही चाहिए, ताकि बड़े होकर दिन-हीन व्यक्तियों के प्रति इनके मन में सहिष्णुता एवं उदारता के भाव हों, भूखों को भोजन कराने की लालसा इनके मन में जागृत रहे। कुछ नहीं तो किसी जरूरतमंद को हेय दृष्टि से तो नहीं देखेंगें। ये सभी संस्कारों की अनमोल कड़ी है, जो स्वस्थ समाज के लिए अति आवश्यक है।

इस तरह के अनेकों संस्कार बच्चों को परिवार के सदस्यों से मिलते रहते थे। लेकिन आज के वैश्वीकरण के दौर में कहने को विश्व संकीर्ण हो गया है। लेकिन इसके हानिकारक प्रभाव के रूप में परिवार के सदस्यों के मध्य की दूरियां कम होने की बजाय और बढ़ गई हैं। संयुक्त परिवार की प्रथा अपने अद्योपतन को पा चुकी है। आज एकल परिवार में माता-पिता को अपने बच्चों के लिए समय नहीं है और बच्चों को अपने माता-पिता के लिए समय नहीं है। छोटी-छोटी बातों पर रिश्तों में खटास उत्पन्न हो रही है। भाई-भाई का दुश्मन हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे घर छोड़कर जाने की, आत्महत्या करने की धमकी अपने माता-पिता को देते रहते हैं। माता-पिता अगर उनको समझाने की कोशिश करते हैं तो उनकी बात पर गुस्सा करते हैं। दरअसल उनकी भी गलती नहीं है। वे माता-पिता हैं। बच्चों का भला ही चाहते हैं। लेकिन बच्चे कुछ समझने को तैयार नहीं होते।

एक कहानी याद आती है- एक सुनार की और एक लोहार की दुकान आसपास थी। सुनार सोने को हथौड़ी से पीटकर आकार दे रहा था तो, वह लोहार की दुकान पर लोहे के कण के पास आ गिरा। सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- तू इतना दुखी क्यों है? लोहे ने कहा- मुझे तो अपना ही पिटता है। अपनों की चोट ज्यादा तेज होती है। तो सोने का कण बोला- यही चोट हम दोनों को सुंदर आकार में भी ढाल देती है। तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे अपने ही तुम्हारा भविष्य गढ रहे हैं। इस कहानी की तरह सोने के कण वाले विचार रखिए तो, आपको उनकी बात से टेंशन नहीं होगी और न ही गुस्सा आएगा। लेकिन आज के दौर में बच्चे हों या बड़े अपने व्यावहारिक जीवन के रिश्तों के प्रति विमुख होकर सोशल जगत में आभासी मित्रों से रिश्ते बनाने और उनसे संवाद साधने में अधिक व्यस्त होते जा रहे हैं। सस्ती लोकप्रियता के फेर मेंआत्ममुग्ध इंसान आज अपने हित और अहित की चिंता भी ठीक से नहीं कर पा रहा है। परिवार में पहले एक साथ मिलकर खाना खाने वाले अब समय के अभाव के चलते न तो एक साथ मिलकर खाना खा पाते हैं और न ही एक घर, एक परिवार में रहने के बाद मिल पाते हैं। साथ रहकर भी उनके बीच एक तरह की दूरी बनी रहती है। यदि आप संयुक्त परिवार में रहते हो, तो यह स्वाभाविक है कि कभी आपको प्रशंसा मिलेगी, तो कभी निदां का भागी भी बनना पड़ेगा। कभी-कभी परिवार के किसी सदस्य का व्यवहार भी आपको परेशान कर सकता है। तो इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है  कि आप अकेले रहने लग जाएं। अगर कोई समस्या है भी तो उसका विचार-विमर्श कर समाधान निकालें, न कि परिवार के विघटन का कारण बने। ना समझी और गलतफहमियों के शिकार होकर लिए गए निर्णय गलत ही साबित होते हैं। परिवारों का बिखराव हमारे संस्कारों और मूल्यों की परंपरा को ध्वस्त कर रहा है। गूगल हमें हर चीज ढूंढ कर दे सकता है। माता-पिता और बुजुर्गों का अनुभव हमें किसी भी कीमत पर लाकर नहीं दे सकता। इसलिए आभासी दुनिया से निकलकर  वास्तविक दुनिया में परिवार के प्रति हमें अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है। क्योंकि परिवार के बिना बड़ी से बड़ी कामयाबी और समृद्धि खोखली है। आज के समाज में परिवारों के विघटन को रोकने का यही एक तरीका है, कि वे परिवार के जीवन मूल्यों और उनके  महत्व को समझें और उन्हें स्वीकार करें।

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