श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बचपन की एक घटना है। एक दिन एक गरीब व्यक्ति उनके घर पर आया और उनसे कुछ मांगने लगा।
ईश्वर चंद्र दौड़ते हुए अपनी मां के पास गए और उनसे उस गरीब व्यक्ति की सहायता करने के लिए कहा।
मां ने अपने बच्चे के अबोध मन को पहचान लिया। वह समझ गई कि मेरे बच्चे का कोमल हृदय सेवा भाव से भरा हुआ है। इसलिए उसने बगैर कुछ सोचे- विचारे तुरंत अपने हाथ से कंगन उतार कर उसकी तरफ बढ़ा दिए।
ईश्वर चंद्र ने अपनी मां के हाथ से कंगन लिए और उस गरीब व्यक्ति को दे दिए।
लेकिन इस घटना को ईश्वर चंद्र बड़े होने तक नहीं भूल पाया। जब वह बड़ा हुआ और कमाने लगा, तब अपनी पहली कमाई से कंगन खरीद कर लाया और अपनी मां को कंगन देते हुए कहा— लो, मां यह कंगन। आज आपका ऋण उतर गया।
मां ने कंगन लेते हुए कहा— मेरा ऋण तो उसी दिन उतर पाएगा, जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे अपने कंगन दोबारा नहीं उतारने पड़ेंगे।
मां की यह बात ईश्वर चंद्र विद्यासागर के दिल को छू गई। उन्होंने उसी समय अपना जीवन दीन- दुखियों की सेवा में समर्पित करने का संकल्प ले लिया।
इस संकल्प को पूरा करने के लिए उनके जीवन में बहुत सारी कठिनाइयां आई लेकिन उन्होंने हर कठिनाई को पार किया।
समस्त जगत् के मालिक, पालक और रक्षक ईश्वर हैं। उस ईश्वर के द्वारा बनाई गई समस्त चराचर जगत् के जीवों की सेवा करने से हम ईश्वर के विधान के अनुपालन में योगदान देते हैं। इसीलिए सेवा को सभी पंथो ने स्वीकार करते हुए इसे पुण्य और सराहनीय कदम बताया है। वही सेवा सार्थक होगी जो नि:स्वार्थ भाव से संपन्न की जाए। पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया कार्य सेवा में नहीं आता अपितु यह तो सेवा का आडम्बर होता है।
हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि— वही तीर्थाटन फलीभूत होता है, जिस पर व्यय भी अपनी शुद्ध कमाई से किया जाए। अनैतिक कार्यों से प्राप्त आय से तीर्थाटन उचित फल नहीं देता। असमर्थ, वंचित, निर्धन की सेवा धन, वस्त्र आदि देकर या किसी मनुष्य को उसके उपयोग की वस्तु प्रदान कर की जा सकती है। बेसहारा बच्चों का पालन, उनकी शिक्षा या चिकित्सा में सहायता करना भी सेवा भाव में आता है। वृद्ध जनों की सेवा करना एक बहुत ही पुण्य का कार्य है।
कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। आपने गुरुद्वारे में अक्सर देखा होगा कि— बड़ी-बड़ी पोस्ट पर तैनात अधिकारी भी दूसरों के जूते चमकाने, प्रसाद खिलाने या बर्तन साफ करने में अपना योगदान देते हैं। इससे उनके रुतबे में कोई अंतर नहीं आता। सेवा एक पुनीत मानवीय कर्म है। ऐसी बहुत-सी पुण्य आत्माओं ने इस धरा पर जन्म लिया है, जिनके मन में बचपन से ही सेवा भाव था और जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया।
Jai Shree Radhe Radhe Shyam Jai Shree Shyam🔥🔥🔥👋👋👋 👋👋Manjit Kumar Rohilla
Jai Shree Shyam Radhe Radhe