234.वैज्ञानिकों ने स्वीकारा—आत्मा का अस्तित्व

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

भारतीय पौराणिक ग्रंथों में हजारों साल पहले ही शरीर की काया में विद्यमान आत्मा को अजर- अमर माना गया है। हमारे मनीषियों ने सृष्टि के आरंभ में ही आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारा और इसके संबंध में अपने मत भी व्यक्त किए और फिर महाभारत युद्ध के दौरान भी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिए उपदेश में आत्मा को कभी नष्ट नहीं होने वाला बीज- तत्व माना है।

आत्मा के संबंध में गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश का सार- तत्व इस प्रकार है—
” वासांसि जीर्णाणि यथा विहाय, नवानि गृहणति नरो: प्रराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानी देही”।।

अर्थात् मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नए कपड़े पहन लेता है, ऐसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है। आत्मा के संबंध में एक श्लोक और है—
नैनं छिंदंति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं कलेदयंत्यापो न शोषयति मारुत:।।

अर्थात् आत्मा के अस्तित्व को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

आत्मा की अमरता का यह विज्ञानसम्मत शोध हमारे ऋषियों ने 5000 वर्ष पहले ही कर दिया था। भारतीय दर्शन स्पष्ट रूप से मानता है कि जीवात्मा रूपी ईश्वरीय अंश सभी जीवों में एक समान रूप से विद्यमान है। आत्मा या जीवात्मा का न कोई रंग है, न रूप है।
आत्मा के संदर्भ में आश्चर्य यह भी है कि— आत्मा जिस भी जीव में उपलब्ध है, उसे भी न यह दिखती है और न ही वह जीव इसको शरीर के अन्य अंगों की भांति अनुभव करता है। किसी अन्य को भी यह नहीं दिखती है और न ही अनुभव होती है।

इसीलिए हमारी सनातन परंपरा में उल्लेख है कि— जो जीवात्मा है, वह अनेक स्तरों के माध्यम से शरीर से लिपटी हुई है। अब इसी सनातन- मान्यता को वैज्ञानिक समर्थन मिला है।

भौतिकी और गणित के दो वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद निष्कर्ष निकाला है कि—
आत्मा मरती नहीं है, मात्र शरीर मरता है। मृत्यु के बाद आत्मा ब्रह्मांड में विचरण करने लगती है। इसमें अंतर्निहित स्मृति या सूचनाएं भी नष्ट नहीं होती।

भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की यह भौतिकवादी व्याख्या ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के गणित और भौतिकी के प्राध्यापक सर रोगर पेनरोज और एरीजोना विश्वविद्यालय के भौतिकी विज्ञानी डॉ स्टुअर्ट हामरांफ ने निरंतर दो दशक अध्ययनरत रहने के बाद छह शोध- पत्रों के माध्यम से की है।

इसी शोध के आधार पर अमेरिका के विज्ञान- चैनल ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई है— शोधकर्ताओं का कहना है कि—मानव- मस्तिष्क एक जैविक कंप्यूटर की भांति है। इस जैविक संगणक की पृष्ठभूमि में प्रोग्रामिंग आत्मा या चेतना है, जो दिमाग के भीतर उपलब्ध एक क्वांटम कंप्यूटर के माध्यम से संचालित होती है। क्वांटम कंप्यूटर से तात्पर्य मस्तिष्क कोशिकाओं में स्थित उन सूक्ष्म नलिकाओं से है, जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत-अणु मिलकर एक क्वांटम क्षेत्र तैयार करते हैं, जिसका वास्तविक रूप चेतना या आत्मा है।

इन वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जब व्यक्ति दिमागी रूप में मृत्यु को प्राप्त होने लगता है, तब ये सूक्ष्म नलिकाएं क्वांटम क्षेत्र खोने लगती हैं। परिणामत: सूक्ष्म ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकलकर ब्रह्मांड में चले जाते हैं। जब कभी मरता इंसान अचानक जी उठता है, तब ये कण वापिस सूक्ष्म नलिकाओं में लौट आते हैं। वैज्ञानिकों का यह शोध भौतिकशास्त्र के क्वांटम सिद्धांत पर आधारित है। इसके अनुसार आत्मा, चेतन दिमाग की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी सूक्ष्म नलिकाओं (माइक्रो ट्यूबल्स) में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं और उप-अणुओं के रूप में रहती है।

अर्जित ज्ञान भी इन्हीं सूक्ष्म कणों में संग्रहित रहता है। सूक्ष्म ऊर्जा कणों के ब्राह्माण्ड में जाने के बावजूद उनमें दर्ज सूचनाएं नष्ट नहीं होती। सूक्ष्म नलिकाओं पर पड़ने वाले क्वांटम गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के परिणाम स्वरुप मनुष्य को चैतन्यता का अनुभव होता रहता है।दरअसल हमारी आत्मा मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के बीच बनने वाले संबंध से कहीं ज्यादा व्यापक है। असल में आत्मा का निर्माण उन्हीं तंतुओं या तत्वों से हुआ है, जिनमें सक्रियता और समन्वय के पश्चात् ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था। इसलिए भारतीय दर्शन में उल्लेख है कि आत्मा, काल के जन्म से ही ब्रह्मांड में व्याप्त है।

वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को “आर्वेकस्ट्रेड ऑब्जेक्टिव रिएक्शन” नाम दिया है।
आत्मा से मृत्यु के संबंध के बारे में हामरांफ कहते हैं कि “मृत्यु जैसे अनुभव में सूक्ष्म नलिकाएं अपनी क्वांटम अवस्था गवा देती हैं, किंतु इसके अंदर के अनुभव क्षीण नहीं होते। इसलिए आत्मा केवल शरीर छोड़कर ब्रह्मांड में विलय हो जाती है। इस अवस्था में कई बार कोई व्यक्ति, मृत्यु को प्राप्त हो जाने के पश्चात् भी जीवित हो जाता है, तो इसका कारण यह होता है कि सूक्ष्म नलिकाएं क्वांटम अवस्था को पुनः प्राप्त हो जाती हैं।

जीवन और मृत्यु के बीच व्यक्ति के साथ जो घटता है, वह मृत्यु का मात्र अनुभव होता है। मृत्यु के बाद क्वांटम सूचनाएं शरीर के आसपास कुछ समय तक मंडराती रहती हैं। इन्हें पूरी तरह नष्ट करने के लिए ही हिंदुओं में अंतिम संस्कार के समय कपाल-क्रिया करने का प्रावधान है। म्यूनिख के प्लंक इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक हेंस पीटर ने भी आत्मा की अमरता पर किए इस शोध से सहमति जताई है।

हमारे पुराणों में तो आत्मा का अति सूक्ष्म रूप से वर्णन किया गया है— आत्मा देहरहित, रूप आदि से हीन, इंद्रियों से अतीत है। यह अजर- अमर है। आत्मा सांसारिक बंधन, मोह- माया, दुख-सुख इन सब से परे है। धूमरहित प्रज्वलित अग्नि शिखा जैसे प्रकाश प्राप्त करती है, वैसे ही आत्मा स्वंय प्रदीप्त रहती है। जैसे आकाश में विद्युत-अग्नि का प्रकाश होता है, वैसे ही ह्रदय में आत्मा के द्वारा आत्मा प्रकाशित होती है। जैसे दर्पण में दृष्टि डालने पर हम स्वयं को देख सकते हैं, वैसे ही आत्मा में दृष्टि करने पर इंद्रियों को, इंद्रियों के विषयों को तथा पंचमहाभूतों का दर्शन किया जा सकता है। जब आत्मा उज्जवल प्रदीप के समान हृदयपटल पर प्रकाशित होती है, तब पाप कर्म नष्ट हो जाता है और ज्ञान उत्पन्न हो जाता है।

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