245. जानिए, स्वयं को

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जब मनुष्य इस धरा पर जन्म लेता है तो वह अपने साथ कोई न कोई ऐसी खूबी जरूर लेकर आता है जो उसे विशिष्ट बनाती है। लेकिन अधिकांश लोग अपनी इस विलक्षणता से परिचित नहीं होते। उनको पता ही नहीं होता कि वह भी विशिष्ट हो सकता है। वह अपने अंदर से उठती आवाज को समझ ही नहीं पाता। वह स्वयं को एक साधारण मनुष्य के रूप में ही देखता है। जिसकी आकांक्षाएं सिर्फ भौतिक हैं। ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण है। वह ज्ञान और शक्ति का अनंत भंडार होते हुए भी स्वयं को ज्ञान हीन और शक्तिहीन समझता है।

जीवन में परिस्थितियां चाहे कितनी भी जटिल क्यों न हो फिर भी खुश रहना सीखिए। क्योंकि परिस्थितियां जितनी जटिल होंगी, उतनी ही अधिक संभावनाओं के द्वार खुलने की उम्मीद होगी। सफलता मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होना नहीं है बल्कि सपनों का पीछा करते हुए बुलंदियों पर पहुंचकर अपने भीतर की विलक्षणता को साकार करना है। परिस्थितियों से जूझते हुए आगे बढ़ने की जिम्मेदारी सिर्फ आपकी है क्योंकि आपमें वे तत्व पहले से ही विद्यमान हैं जो आपको नायक बना सकते हैं, बशर्ते आप स्वयं को पहचान लीजिए। जब कोई आप को अनदेखा कर रहा हो, तब आप अपने को पुकारें। जीवन में कोई भी परिस्थिति ऐसी नहीं होती, जिससे बाहर न निकला जा सकता हो। चाहे कितनी भी जटिल परिस्थिति हो फिर भी कोई न कोई रास्ता अवश्य मिल ही जाता है।

जीवन में यह भी मायने नहीं रखता कि आप कितनी बार असफल हुए हैं। आप अपने आपको पहचानिए। अध्यात्म के रास्ते पर चलकर अपने अंदर प्रकाश उत्पन्न कीजिए। ईश्वर ने आपके अंदर जो गुण दिए हैं, उनके संकेत को समझिए और बिना रुके- थके उस दिशा में निकल जाइये। फिर वह दिन दूर नहीं, जब कोई भी कार्य आपके लिए नामुमकिन होगा। सच मानिए तब आप अपने सपनों को सही उड़ान देने में प्रथम पंक्ति में खड़े होंगे। दरअसल जिस कार्य को करते हुए आप जोश से भर जाएं और अंदर से खुशी होने का भाव उछाल मारने लगे तो समझ जाइए कि उस कार्य से आपके जीवन को सही दिशा मिल सकती है। तभी आप स्वयं को पहचान पाएंगे।

मनुष्य के पास इंद्रिय अनुभूतियों के साथ चिंतन के आधार पर नवीन ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता होती है। इसलिए वह सत्य, शिव, सुंदर जैसे मुल्यों की प्राप्ति कर सकता है। वह प्राकृतिक और सामाजिक नियमों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक नियमों के आधार पर अपने लिए एक विराट आनंदपूर्ण विश्व का सर्जन कर सकता है। लेकिन जो लोग आध्यात्मिकता के रास्ते पर नहीं चले हैं, उनके लिए यह विश्वास करना कठिन होता है कि उनके अंतर में भी अंधेरे के पार कोई प्रकाश भी होगा।

जब कभी हम हवाई जहाज में बैठकर सफर करते हैं और हवाई जहाज नीचे से ऊपर उठता है तो उसे घने बादलों में से गुजरना पड़ता है। जब बादलों के बीच में हवाई जहाज पहुंचता है, उस समय अगर हम खिड़की से बाहर देखेंगे तो हमें कुछ दिखाई नहीं देगा। वहां पर उस समय केवल कोहरा दिखाई देता है। जब हवाई जहाज बादलों के पार चला जाता है तो वहां एक सुंदर नीला आसमान और चमकता हुआ सूर्य नजर आता है। जब हवाई जहाज घने बादलों को पार कर रहा था तो उस समय हम यह सोच भी नहीं सकते थे की बादलों के पार कोई सुंदर या मनमोहक आसमान भी है जहां सूर्य का प्रकाश चमक रहा है। लेकिन जब हम ऊंचाई पर जाते हैं तो हम देखते हैं कि वहां सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश मौजूद है।

अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले सभी महापुरुष हमें यही समझाते हैं कि आत्मज्ञान का अनुभव भी हवाई जहाज में उड़ने के समान ही है। जब हम ध्यान समाधि में बैठते हैं और अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, तब हमें अपने चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है। लेकिन समय के साथ-साथ हम जैसे-जैसे अपने अंतर की गहराइयों में उतरते जाते हैं तो उस अंधेरे के पार ईश्वर रूपी रोशनी का अनुभव करते हैं। जिस तरह हवाई जहाज का पायलट हमें बादलों के पार ले जाता है, जहां हम सूर्य का प्रकाश देखते हैं। ठीक उसी तरह हमें अपने अंदर के सूर्य को देखने के लिए किसी योग्य साधक की आवश्यकता होती है जो हमें अपने अंतर के अंधेरे को चीरते हुए प्रकाश से भरे आध्यात्मिक मंडलों का अनुभव कराने में हमारी सहायता कर सकता है। ये आध्यात्मिक मंडल खूबसूरती और ईश्वर के प्रेम से भरपूर हैं और यही मंडल मानव जीवन के उद्देश्य को सार्थक भी बनाते हैं।

एक बूढ़ी अम्मा अमेरिका के प्रसिद्ध वक्ता और कवि राल्फ वाल्डो इमर्सन के व्याख्यान सुनने प्रतिदिन जाया करती थी।
लोगों को बड़ा आश्चर्य होता कि एक महान चिंतक इमर्सन की गूढ़ रहस्यों से भरी बातों को यह अनपढ़ अम्मा कितना समझ पाती होगी।

एक दिन किसी व्यक्ति ने उस अम्मा से पूछा कि — क्या इमर्शन की बातें आपको समझ में आती हैं?

उस अम्मा ने जवाब दिया कि— उनकी ढेर सारी ज्ञान की बातें तो मैं नहीं समझ पाती, बस एक बात जिसने मेरा जीवन बदल दिया—वह यह है कि मैं भी परमात्मा से दूर नहीं हूं और परमात्मा भी मुझसे दूर नहीं है। मैं भी ईश्वर के निकट जा सकती हूं।

अम्मा के इस उत्तर ने वहां मौजूद लोगों में हलचल मचा दी। वहां आने वाले लोग सारी बातों को समझने के प्रयास में सत्य की एक छोटी- सी चिंगारी से वंचित रह जाते थे।
क्योंकि वे लोग सिर्फ व्याख्यान सुनने के लिए आते थे। उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग पर अपना कदम नहीं रखा था। यही कारण था की अम्मा के पास कोई बड़ी-बड़ी डिग्रियां न होने के पश्चात् भी जीवन के सत्य को समझ गई थी और वे लोग इससे अनभिज्ञ थे।

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