247. सार्थक हो, हर दिन

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

हमारे विचार, चिंतन और कार्य ही हमें जीवन में संतुलन साधना सिखाते हैं और यह सब कुछ होता है, मन के द्वारा। मन ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे मनुष्य चिंतन, स्मरण एवं मनन करता है। मन में उपजी विचार संपदा से ही हमारे जीवन में परिस्थितियों का निर्माण होता है।

मन रूपी भूमि पर उपजने वाले बीज रूप विचार संपदा से मनुष्य के चरित्र का निर्माण होता है। इन विचारों से ही हमारे जीवन का निर्धारण होता है कि हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाएंगे या नहीं। दिन भर हमारे मन मस्तिष्क में जो विचार जन्म लेते हैं और मरते हैं, उन्हीं के द्वारा हमारे भविष्य का निर्माण होता है। जीवन में हम क्या प्राप्त करेंगे और प्रबल इच्छा के होते हुए भी क्या नहीं प्राप्त करेंगे? यह सब हमारे विचारों के अनुसार ही चलता है।

प्रत्येक सुबह हमारे लिए एक खूबसूरत उपहार के समान होती है। वर्ष का प्रत्येक दिन श्रेष्ठ होता है और प्रत्येक दिन का मानव जीवन में एक विशेष महत्व होता है। यह विचार मनुष्य के ज्ञान का ही निचोड़ होते हैं क्योंकि सकारात्मक विचारों से हम श्रेष्ठ बनते हैं और नकारात्मक विचारों से हम पतन में गिरते हैं। इसलिए स्वयं में सकारात्मक विचारों को विकसित करना चाहिए ताकि वर्ष के प्रत्येक दिन की सार्थकता पूर्ण हो सके। हमारा कोई भी दिन व्यर्थ न जाए, इस बात का हमें ख्याल रखना चाहिए। सुंदर विचारों से लैस हमारा प्रत्येक दिन अनमोल साबित हो।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि— मानसिक पटल पर जैसा चिंतन विचार एवं संकल्प होता है, हमारा परिचय भी उसी के अनुरूप ढल जाता है। मनुष्य अपने जीवन में जो भी कर्म करता है, उसकी पृष्ठभूमि मानसिक पटल पर ही तैयार होती है। उसी से जीवन में परिस्थितियों का परिवेश बनता है। अगर मन:स्थिति परिष्कृत एवं उत्तम संकल्पों से परिपूर्ण हैं तो बाहरी परिस्थितियां भी कल्याणकारी होंगी। यदि मन:स्थिति तामसिक चिंतन से युक्त हैं तो बाहरी परिस्थितियां मंगलमय नहीं बन सकती।

हमारे उत्तम विचार हमें मोह, लोभ, क्रोध और ईष्र्या जैसे स्वभावगत दुर्गुणों से दूर रखते हैं। हमें सत्य और मर्यादा की राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। हम अपनी रूचि और सोच विचार के हिसाब से ही अपनी दिनचर्या तय करते हैं। हमारा दिन हमारे अपने बनाए हुए तौर- तरीकों के अनुसार ही चलता है। जब सब सामान्य होता है तो हम खुश रहते हैं। लेकिन जब जरा- सी भी कुछ गड़बड़ हो जाती है तो हम धैर्य खोने लगते हैं।

इस जीवन को बनाने वाले हम स्वयं हैं। हमारी पसंद से बने हुए जीवन की हलचल और हिचकोले हमें विचलित कर देते हैं। हम आत्म अवलोकन नहीं कर पाते। दूसरों पर दोष मढ़ते रहते हैं। यही सोचते हैं कि शायद हमारी इस हालत के लिए कोई और जिम्मेदार है। दूसरों पर आरोप लगाते हुए स्वयं साफ बच कर निकलने की कोशिश करते हैं। यह सच छिपाकर रखते हैं कि— यह हमारे द्वारा किए गए कर्मों का ही फल है।

कर्म का नियम यही है कि— जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल प्राप्त होगा। हमारे जीवन में होने वाले कष्टों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। आज हम जैसे भी हैं, जैसा भी अनुभव कर रहे हैं, यह हमारे अतीत के कर्मों का ही परिणाम है। जब भी जीवन में बाधा, संकट आए तो समस्या को समझना चाहिए न की दूसरों पर दोष मढ़कर स्वयं बाहर निकल जाएं। समस्या से निपटने में पूरी ताकत लगा देनी चाहिए। जब हम अपना मूल्यांकन करेंगे तभी कोई ना कोई मार्ग अवश्य मिलेगा।

प्रकृति सदैव एक मार्गदर्शक के रुप में हमें प्रेरित और उत्साहित करती रहती है। हर पेड़, पौधे, फूल, पत्ती का एक मौन संदेश होता है और वह है कि— स्वयं को निरंतर गतिमान और संतुलित रखने के लिए धैर्य रखना चाहिए। यह तो आप भली-भांति जानते होंगे की पेड़ों पर मंझरी या बोर आने के तुरंत बाद फल नहीं आता। धीरे-धीरे ही यह प्रक्रिया संपन्न होती है। मिट्टी हवा और पानी से जिस तरह एक पौधा धैर्य रख कर खुद को पुष्पित और पल्लवित करता है, हमें भी ऐसा ही जीवन दर्शन अपनाना चाहिए क्योंकि मनुष्य अपने जीवन का वास्तुकार स्वयं ही है। आशावादी और सकारात्मक रवैया अपनाकर हमें अपने प्रत्येक दिन को सार्थक बनाना चाहिए।

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