252. कर्मफल

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

इस भौतिक संसार में ईश्वर ने जड़ और चेतन दो प्रकार की सृष्टि की रचना की। जीवों की सृष्टि के कर्म में उसने सबका मंगल करने के लिए मनुष्य को बुद्धि, विवेक से अलंकृत कर जीवों में श्रेष्ठतम स्थान प्रदान किया। यही कारण था कि उस पर वन्य प्राणियों के योगक्षेम का भार भी था। इसलिए ईश्वर ने मनुष्य के लिए एक सरलतम सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि— मनुष्य के कर्म ही उसके सुख- दुख का कारण बनेंगे। वह जैसा कर्म करेंगा, वैसा ही उसको फल प्राप्त होगा। इसमें उसका कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। वह केवल तटस्थ भाव से साक्षी और द्रष्टा रहेगा। सभी भारतीय दर्शन और धर्म शास्त्र इसी अवधारणा को मानते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में परमात्मा को सर्वत्र निर्विकार, निर्लिप्त साक्षी और द्रष्टा कहा गया है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि— मनुष्य अपना कर्म करते हुए ही जीवन में समृद्धि प्राप्त कर सकता है। यही ज्ञानयोग और भक्तियोग का आधार भी है। इसलिए जीवन में हार और जीत दोनों साथ- साथ चलते रहते हैं। ऐसे में हमें परिणाम की चिंता किए बगैर कर्म करते हुए निरंतर लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। अगर हम हार भी जाते हैं तो क्या हुआ? आगे तो जीत हमारी प्रतीक्षा कर रही है। जो मनुष्य कर्म पर विश्वास करते हैं, वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संपूर्ण शक्ति समर्पित कर देते हैं और परिणाम में उन्हें विजय श्री का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। कई बार यह हो सकता है कि कर्मफल प्राप्त करने में प्रायः थोड़ा- सा लंबा समय लग जाए तो उस समय धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए।

अथर्ववेद में लिखा है कि— मनुष्य के दाएं हाथ में सफलता होती है और बाएं हाथ में असफलता। लेकिन सफलता प्राप्त करने के लिए कर्मशील होना बहुत आवश्यक है। इसीलिए कर्म को सबसे बड़ी शक्ति मानते हुए मंजिल मिलने तक कर्मशील बना रहना चाहिए। कर्म के कारण ही कोई व्यक्ति कमजोर हो जाता है और कोई बहुत शक्तिशाली। यह कर्मफल ही है, जिसके कारण राजा, रंक बन जाता है और रंक, राजा बन जाता है। मनुष्य का जीवन कर्म और कर्मफल के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। जो कर्म की महत्ता को समझ लेता है, वह अपने जीवन में शुभ कर्मों के द्वारा सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त कर उज्जवल भविष्य का निर्माण करता है। मार्ग में आने वाली हर चुनौती को वह पुरुषार्थ के बल से पराजित करते हुए सफलता के शिखर पर पहुंच जाता है और एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करता है। वह जानता है कि कठिनाइयां और दुख हमारे शत्रु हैं। ये बार-बार रास्ते में बाधा खड़ी करेंगे। लेकिन वह हार नहीं मानता और ज्यादा परिश्रम करके अपने लक्ष्य को साधता है।

प्रख्यात वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिशन जब 67 वर्ष के थे, तभी एक दिन उनकी फैक्ट्री में आग लग गई और वह जलकर नष्ट हो गई। उस
फैक्ट्री का बीमा भी बहुत कम था। अपने जीवन भर की कमाई को आग में जलते हुए देखकर वे बिल्कुल भी नहीं घबराये और आत्मविश्वास से बोले— जो होता है, अच्छे के लिए होता है।

उसकी यह बात उसके साथ खड़ा असिस्टेंट सुन रहा था। उसने पूछा— सर, आप यह क्या कह रहे हो? आपके जीवन भर की मेहनत आग में जलकर भस्म हो चुकी है। इसमें अच्छे वाली कौन- सी बात है।

एडिशन निसंकोच भाव से बोले—हमारी सारी कमियां इस आग में जलकर नष्ट हो गई। ईश्वर की कृपा से हम नए सिरे से कार्य शुरू करेंगे। इतने बड़े हादसे के बाद भी एडिशन बिल्कुल भी निराश और हताश नहीं हुए, बल्कि केवल 3 हफ्ते बाद ही अपने पुरुषार्थ के जरिए फोनोग्राफ का आविष्कार कर दुनिया को चकित कर दिया।

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