262. कर्म क्षेत्र

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जीवों के लिए यह संसार कर्म का क्षेत्र है। यह प्राणियों के विकास की प्रकृति के अनुकूल है। जिसमें इच्छाओं और अभिलाषाओं का स्रोत फूटता है। पृथ्वी पर ईश्वर का उपहार यही संसार है जो नभ, जल और थल पर प्राणियों का आश्रय है। यही सुख-दुख का घरौंदा है। जीव के आवागमन और भोग का स्थल यह संसार कर्म का क्षेत्र भी है।

युद्ध के मैदान, कुरुक्षेत्र में श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं— हे पार्थ! यह संसार ही कर्म क्षेत्र है। जो कर्म करने हैं, वे इसी संसार में रहते हुए करने हैं।

भौतिक प्रपंचों की भूमि और आध्यात्मिक उपलब्धियों का सूर्य मंडल यह संसार सभी प्राणियों के लिए नर्क और स्वर्ग दोनों हैं। फल की योजना से युक्त इस संसार में मोह माया के सभी साधन मौजुद हैं। बंधनों की सजीव नाट्यशाला है। यहां संलिप्तता और निर्लिप्तता की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। यहां पर निवास करते हुए जो जैसे कर्म करता है, वैसा ही उसको फल प्राप्त होता है अर्थात् कर्मों का हिसाब- किताब इसी कर्म क्षेत्र में किए हुए कर्मों से किया जाता है।

मनुष्य इस संसार में सीमित शक्तियों का स्वामी है लेकिन वह अपनी शक्तियों को ईश्वर की कृपा से अनंत तक विस्तार करने में सक्षम हो सकता है। वह धर्म के रास्ते पर चलकर अनेक शक्तियों का स्वामी बन सकता है। बहुत सारे मनुष्य इस कर्म क्षेत्र में परिश्रम, प्रयास और अभ्यास छोड़कर जीवन में चमत्कार की आशा करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में विश्वास रखने वाले मनुष्य कोई धार्मिक कार्य या यज्ञ- अनुष्ठान इसलिए करते हैं ताकि कोई अदृश्य शक्ति उनकी सारी अभिलाषा की पूर्ति कर सकें। बहुत सारे मनुष्य इसी आशा में कथित नकली भेष धारी महात्माओं के पास चले जाते हैं लेकिन जब उनकी इच्छाएं, मनोकामनाएं पूरी नहीं होती तो उनका मन निराश हो जाता है और धर्म पर से उनका विश्वास उठने लगता है। वे असंतुलित होकर धार्मिक मान्यताओं के प्रति अनाप-शनाप प्रलाप करने लगते हैं।

सच्चे साधु- संत कभी चमत्कार की आस नहीं जगाते। यदि कोई साधु आपको जादुई ढंग से सफलता की मंजिल पर पहुंचाने या क्षण भर में सब कुछ ईश्वर से हासिल कर लेने का मंत्र देने का आश्वासन दे रहा है तो सतर्क हो जाने की जरूरत है। वह कोई ठग हो सकता है। मंत्रों में शक्ति है लेकिन उनमें भी समय लगता है। क्षण भर में आपका जीवन नहीं बदल सकता। यदि चमत्कार से सब कुछ मिल ही जाता तो वह साधु खुद क्यों न हासिल कर लेता? यह ध्यान रखना चाहिए कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अयोध्या के भौतिक सुख को छोड़ दिया था उनके 14 वर्ष के त्याग पूर्ण जीवन को सब जानते हैं जबकि 11000 वर्ष उन्होंने अयोध्या में राज किया उसे लोग नहीं जानते। इसलिए धर्म के पथ पर चमत्कारिक ढंग से कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता।

समस्त दैवीय और आसुरी क्रियाओं का दृष्टा यह संसार प्रकृति का क्रीड़ा स्थल है। ईश्वर की इच्छा से ही इसकी उत्पत्ति हुई और उन्हीं की इच्छा से इसका विलय निश्चित है। इसलिए इस कर्म क्षेत्र को हेय दृष्टि से न देख कर आत्मोन्नति की काल रचना का प्रमाण मानना श्रेयस्कर है। यह सब कुछ खोने और सब कुछ पाने का स्थान है। इसलिए समस्त मानव सब कुछ पाने में एकजुट क्यों नहीं होते? यह पूर्ण सफलता का रहस्य बताता है, असफलता का कदापि नहीं। यह मोक्ष का साधन भी है और बंधन का अवलंबन भी। यह हेतु है, साधना का। कारण और निवारण की परिणति भी यही है‌। इसलिए मनुष्य अपने कर्म क्षेत्र को पहचान कर कल्याण की ओर बढ़ सकता है‌। पुरुषार्थ द्वारा अपने कर्मों से मोक्ष का अधिकारी बन सकता है।

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