267. समर्पण

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

वानरों का बड़ा समूह दौड़-दौड़ कर बड़े- बड़े वृक्ष, बड़े-बड़े पत्थर समुद्र में लाकर फेंक रहा है। पवनसुत हनुमान जी, नल-नील, जामवंत, अंगद आदि सभी सिंधु पुल बांधने में सलंग्न है। किसी के पास भी थोड़ा- सा समय नहीं है। सभी दौड़- दौड़ कर ज्यादा से ज्यादा काम करके भगवान श्री राम के कार्य में सहयोग कर रहे हैं। जंगल से जो जितना बड़ा पर्वत लाकर समुद्र में डाल रहा है, वह अपने आपको उतना ही भाग्यशाली समझ रहा है। वह मन ही मन अपने को भगवान का सेवक जानकर प्रसन्न हो रहा है।

उनके चेहरे पर अनेक प्रकार के भावों को देखकर एक छोटे से जीव गिलहरी को भी भगवान के कार्य में सहयोग देने की इच्छा हुई। उसने मन ही मन भगवान के कार्य में सहयोग देने का व्रत लिया। वह जानती थी कि मेरे अंदर इतना सामर्थ्य नहीं है कि मैं बड़े-बड़े पर्वत उठा लाऊं लेकिन मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ तो सहयोग अवश्य करूंगी और यही सोच कर वह गिलहरी अपने मुंह में छोटा- सा कंकड़ उठाती और उसे समुद्र में डाल देती। कहां द्रुतगति से उछलते- कूदते वानर दौड़ लगा रहे थे और कहां बिचारी गिलहरी कितनी तेज दौड़ती। लेकिन फिर भी वह पूरे समर्पण के साथ भगवान के कार्य में सहयोग कर रही थी।

वानर जब तेज गति से चलते तो उनको बड़े ध्यान से देख कर चलना पड़ता कि कहीं गिलहरी उनके पैर के नीचे न आ जाए। उस को कई बार समझाया गया कि आप बहुत छोटी हैं, आप के कारण हमें भी परेशानी हो रही है, इसलिए आप जाकर आराम कीजिए। वैसे भी आपके कारण कार्य में कोई सहयोग भी नहीं मिल रहा। लेकिन गिलहरी कहां मानने वाली थी। जब काफी देर हो गई और गिलहरी के कारण कार्य में विलंब होने लगा तो उन्होंने हनुमान जी से सारी बातें बताई, तब हनुमान जी ने पैर के इशारे से गिलहरी को दूर कर दिया।

अब क्या था? गिलहरी करुणा वत्सल भगवान श्री राम की शरण में जा कर रोने लगी कि—हे प्रभु! कृपा कीजिए! कृपा कीजिए! मुझे हनुमान जी ने पैर से मारा है।
श्रीराम ने गिलहरी को सांत्वना दी और पूछा— बताओ, हनुमान जी को क्या सजा दी जाए।
गिलहरी ने कहा— जैसे हनुमान जी ने मेरे को पैर से ठोकर मारी है, आप भी उसे वैसे ही मारिए।
श्री राम ने हनुमान जी को बुलाया।
हनुमान जी ने प्रणाम किया और बुलाने का कारण पूछा?
श्री राम ने बनावटी गुस्सा करते हुए हनुमान जी को पैर लगा कर कहा— जाओ हनुमान, अब कभी भी गिलहरी को ठोकर मत मारना वरना तुम्हें मेरे पैर से ठोकर खानी पड़ेगी।

हनुमान जी तो श्री राम के भक्त हैं, श्री राम के चरणों का स्पर्श पाकर आनंदित महसूस करते हुए अपने आप को धन्य समझने लगे और मन ही मन गिलहरी का शुक्रिया अदा करने लगे जिसकी वजह से उन्हें अपने आराध्य के पैरों का स्पर्श हुआ।
जब हनुमान जी थोड़ी दूर चले गए तो गिलहरी ने आकर कहा— देखो मुझे पैर से ठोकर मत मारना वरना मैं श्री राम को कह कर तुम्हें भी उसी प्रकार ठोकर मरवाऊंगी।
हनुमान जी तो यही चाहते थे, उन्होंने गिलहरी को चार, पांच बार जल्दी-जल्दी एक ही साथ में पैर लगा दिया। हनुमान जी के पैर लगाने की शिकायत लेकर गिलहरी पुनः श्री राम के पास पहुंची और कहने लगी कि— हे प्रभु! मुझे लगता है कि अब तो हनुमान जी मुझे ऐसे ही पैर लगाते रहेंगे ताकि उनको आपके चरणों में रहने का समय मिल जाए और भारी- भारी पत्थर न उठाने पड़े। इसलिए आप कोई और उपाय किजिए।

गिलहरी की मासूमियत को देखते हुए श्री राम बड़े प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। जिसके कारण श्री राम की तीन उंगलियां गिलहरी की पीठ पर छप गई। गिलहरी का श्री राम के प्रति समर्पण ही था जिसके कारण उसे श्री राम के पावन कर कमलों का स्पर्श मिला।
गिलहरी बड़ी आनंदित हो गई। अब वह खुशी- खुशी हनुमान जी के पास गई और कहा अब तो मुझे श्रीराम ने अपनी शरण में ले लिया है। अब तुम ठोकर मारो तो मैं जानूं।
अब गिलहरी ने कई बार हनुमान जी से ऐसा कहा तो हनुमान जी ने गिलहरी को कुछ नहीं कहा।
गिलहरी बहुत हैरान थी, हनुमान जी कुछ नहीं कह रहे। आखिर में हनुमान जी के पास गई और उससे पूछा कि— क्या कारण है? अब आप मुझे ठोकर नहीं मार रहे।
गिलहरी के बार-बार पूछने पर हनुमान जी ने बड़ा ही सुंदर जवाब देते हुए कहा — जिस पर मेरे प्रभु के कर कमलों का आशीर्वाद हो, उसे भला कौन ठोकर मार सकता है।

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