27. सत्य की खोज – शिक्षा

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

शिक्षा गुरु शिष्य की परंपरा से होते हुए बहुत लंबा सफर तय कर चुकी है। आज के समय में आप मोबाइल पर किसी को भी अपना गुरु बना सकते हैं और किसी से कुछ भी सीख सकते हैं। नई-नई तकनीकों ने हमें कहीं भी, कभी भी पढ़ने का मौका दिया है। अब क्लास रूम की बंदिशे हट गई हैं और कई मोबाइल एप्स पर आप अपनी शंकाओं का समाधान भी कर सकते हैं।

वास्तव में शिक्षा सत्य की खोज है। यह ज्ञान और अंतर्ज्ञान के माध्यम से अंतहीन  यात्रा है। इस तरह की यात्रा से मानवतावाद के विकास का नया रास्ता खुलता है, जहां न घृणा, न ईष्र्या और न ही दुश्मनी की कोई गुंजाइश है।

महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम

शिक्षा प्रणाली को छात्रों की शक्ति का पता लगाना और उनका निर्माण करना है। साथ ही उनकी रचनात्मकता को बाहर लाना है जिससे धीरे-धीरे एक जिम्मेदार नागरिक का विकास हो सके। इसलिए हमारी शिक्षा प्रणाली को यह चाहिए कि, वह छात्रों को यह जानने में मदद करने के लिए खुद को फिर से उन्मुख करें कि वे किस ताकत के मालिक हैं, क्योंकि इस ग्रह पर पैदा होने वाले हर इंसान को कुछ खास ताकतें प्राप्त हुई हैं। ये मनुष्य के व्यक्तित्व को एक महान आत्मा और ब्रह्मांड में कीमती चीज में बदल देती है। अपने वास्तविक अर्थों में सार्वभौमिक भाईचारा ऐसी शिक्षा के लिए सहारा बन जाता है। वास्तविक शिक्षा मनुष्य की गरिमा  और उसके स्वाभिमान को बढ़ाती है। यदि शिक्षा का वास्तविक अर्थ प्रत्येक व्यक्ति द्वारा महसूस किया जा सकता है, और मानव गतिविधि के हर क्षेत्र में आगे बढ़ाया जा सकता है, तो दुनिया में रहने के लिए एक बेहतर जगह होगी। शिक्षित व्यक्ति ही सुशिक्षित समाज का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति से समाज की ओर उन्मुख है, जिसमें एक बच्चे का अपने कदमों पर खड़ा होना पिढियों तक ज्ञान के प्रसार का माध्यम बनता है। शिक्षा में धीरे-धीरे किताबी ज्ञान के साथ और भी बहुत सी चीजें जुड़ती जा रही हैं, जो एक शिक्षित व्यक्ति को सुशिक्षित समाज में बदल सकती हैं। यह बदलाव तेज होगा और हम ज्यादा बेहतर इंसान बनकर अपने दायित्वों और कर्तव्यों से राष्ट्र निर्माण में भागीदार बन सकेंगे।

शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है। अब शिक्षक भी अपने शिष्यों को बेहतर तरीके से समझाने में विश्वास करते हैं। इसका एक ज्वलंत उदाहरण केमिस्ट्री के प्रोफेसर बंकिम बाबू हैं। उन्होंने केमिस्ट्री की साहित्य से अनूठी जुगलबंदी कर इसे बहुत सरल बना दिया है। 75 बरस के बंकिम बाबू सही मायने में शिक्षा के दूत हैं। उन्होंने वंचित छात्र-छात्राओं को पढ़ाने में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। 1970 में आईआईटी खड़कपुर से केमिस्ट्री में एमएससी करने के बाद सामने नौकरियों की झड़ी लग गई थी। विदेश से भी बड़े-बड़े ऑफर मिले। उनके सारे साथी सुनहरे भविष्य का सपना लिए देश छोड़कर चले गए, लेकिन बंकिम बापू ने मातृभूमि की सेवा करने की ठानी और अपने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। केमिस्ट्री की पढ़ाई में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका ढूंढा। उनका मानना है कि केमिस्ट्री बहुतों के लिए मिस्ट्री या गुत्थी से कम नहीं। रासायनिक समीकरण-प्रतिक्रिया और सूत्रों को समझने में अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन जब बंकीम बिहारी पढ़ाते हैं तो विज्ञान की यह बेहद मुश्किल विद्या बहुत आसान लगने लगती है। उनका पढाने का अंदाज बेमिसाल है। उन्होंने केमिस्ट्री को मजेदार कविताओं का रूप दे दिया है। स्कोर बंकिम,अगर मस्तिष्क के दो हिस्से मान लिए जाए तो एक विज्ञान और दूसरा साहित्य है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य व विज्ञान से ही शिक्षा पूर्ण होती है। केमिस्ट्री के कई सूत्र मुश्किल से याद रहते हैं। जबकि कविताएं आसानी से याद हो जाती हैं। इसलिए मैंने केमिस्ट्री को कविताओं का रूप देकर पढ़ाने की सोची। जैसे- लेकर गरम इथर, घोलें सल्फ्यूरिक एसिड रत्ती भर, मिल जाएगा अल्कोहल भरकर। इस तरह की करीब 50 कविताएं लिख चुके हैं। यह शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अविष्कार है। बच्चे केमिस्ट्री के पीरियोडिक टेबल आसानी से याद कर लेते हैं। अब वे केमिस्ट्री की मुश्किल से मुश्किल चीज को कविता के रूप में समझ कर धारा प्रवाह से बोलते हैं। शिक्षा वो नहीं होनी चाहिए, जो छात्रों के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंस दे। वास्तविक शिक्षा वह कहलाती है, जो उसे आगामी कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। हमें शिक्षा को अपने जीवन में अंगीकार करना होगा, न कि उससे सिर्फ ज्ञान प्राप्त करें। हम ज्ञान से शक्तिशाली तो बन सकते हैं, लेकिन अनुभव से हम परिपूर्णता प्राप्त करते हैं। उच्चतम शिक्षा वह है जो हमें केवल जानकारी नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को गतिशील बनाते हुए, सामंजस्य स्थापित करती है। शिक्षा हमारे जीवन में मार्ग-दर्शक की भूमिका निभाती है। इसलिए कहा गया है- सत्य की खोज – शिक्षा ।

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