270. आहार का प्रभाव

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

हमारे मनीषियों ने ‘योग के सिद्धांत’ में आहार को भी प्रमुखता से शामिल किया है। उनका कहना था कि मनुष्य के जीवन में उसके खान-पान का सीधा असर पड़ता है। वे जैसे आहार ग्रहण करते हैं, वैसे ही उनके विचार होते हैं।

उनके अनुसार—” जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन”

सात्विक आहार से मन, बुद्धि सत्वगुण युक्त रहते हैं।

जो आहार घृत से स्निग्ध, मधुर गुण युक्त और भूख का चतुर्थांश रखकर किया हो तथा केवल ईश्वर की भक्ति करने के लिए शरीर स्वस्थ बना रहे, इस भावना से लिया गया हो, उसे मिताहार कहते हैं।

अधिक भोजन से आलस्य उत्पन्न होता है। कहावत है— एक बार खाना योगी का, दो बार भोगी का, तीन बार रोगी का।
प्रातः सायं दूध, फल, दोपहर में सीमित मात्रा में भोजन करना, शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखता है।
आयु, बल, बुद्धि, आरोग्य, सुख, प्रसन्नता को बढ़ाने वाला, स्निग्ध, रस युक्त और हृदय को रुचिकारक भोजन सात्विक जानना चाहिए।

गेहूं, चना, चावल, जौ, ज्वार, घृत, दूग्ध, मिष्ठ, मधु, सौंठ, परवल, लौकी, तोरई, बथुआ आदि स्वच्छ जल एवं सुपाच्य खाद्य पदार्थों का सेवन प्राणायाम और ध्यान से उत्पन्न, खुश्की को दूर करता है और कब्ज नहीं होने देता।

धर्म ग्रंथों में उल्लिखित “यथा अन्न तथा मन” के सिद्धांत को तो चिकित्सक भी मानते हैं। शरीर में कोई बीमारी आने पर खान-पान में परहेज की सलाह दी जाती है व हल्का और सात्विक भोजन करने के लिए कहा जाता है। खानपान का संबंध शरीर से ही नहीं मन से भी जुड़ा होता है।

सात्विक भोजन के बाद मनुष्य ऊर्जावान महसूस करता है। उसके चेहरे के हाव-भाव से धैर्य, प्रसन्नता, दया, परोपकार आदि गुण झलकते हैं। उसके मन में जो विचार पनपते हैं, वे सब की भलाई ही करने के लिए होते हैं। वे हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। सात्विक आहार करने वाले में अहंकार की भावना नहीं होती। वे ईश्वर की आराधना करने में ही अपने जीवन का निहितार्थ समझते हैं। उनके लिए हर कार्य भगवान की इच्छा से ही होता है। ऐसे मनुष्य परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए हमेशा योगदान देने को तैयार होते हैं।

सात्विक भोजन का उल्लेख ‘गीता उपदेश’ में भी है। युद्ध न करने का मंतव्य प्रकट करने वाले अर्जुन के मन को बदलने के लिए भगवान श्री कृष्ण उचित आहार संबंधित उपदेश भी देते हैं। श्री कृष्ण सात्विक, राजस, और तामस आहार की व्याख्या करते हैं तथा उससे पड़ने वाले सत्, रज, तम गुणों का भी अर्थ बताते हैं।

श्रीकृष्ण की इस व्याख्या में गहरे भाव छिपे हुए हैं। सात्विक आहार से जहां मनुष्य का मन मजबूत बनता है, उसके साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का विकास भी होता है। उसमें सकारात्मकता आती है, जिससे बौद्धिक विकास के साथ-साथ ज्ञान की प्राप्ति भी होती है। बहुत से मनुष्य समुचित तरीके से भोजन न करने से शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से अस्वस्थ देखे जाते हैं। व्यक्ति का आहार के रूप में जो भी खानपान है, वह कितना सात्विक है, यह कोई और जाने या न जाने पर वह खुद तो जानता है।

अक्सर लोग कहते सुने होंगे कि— वे तथा उनके परिवार वाले सादा और सात्विक आहार ग्रहण करते हैं, फिर भी उनके घर कोई ना कोई बीमार रहता है। इसका कारण स्पष्ट है कि भोजन में सात्विकता नहीं है। वास्तव में सात्विक भोजन वह है जो हम ईमानदारी के साथ परिश्रम करके धन अर्जित करते हैं और उस धन से जो भोजन ग्रहण किया जाता है। सात्विक एवं परिश्रम से अर्जित धन के उपभोग से शरीर ही नहीं आत्मबल भी मजबूत होता है।
परिश्रम करने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। बहुत सारी बीमारियों की वजह तो शारीरिक श्रम का अभाव है।

छल, कपट, धोखा, ठगी, पराए व्यक्ति के हिस्से से अर्जित धन का उपयोग महाघातक होता है। इसलिए भोजन पूर्ण रूप से सात्विक होना चाहिए। राजसी एवंम् तामसी आहार शरीर एवं मन को बीमार बना देता है। मांस, अंडे, शराब आदि तामसी भोजन करने से शरीर एवंम् मन पर घातक प्रभाव पड़ता है। शरीर में बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। मन तामसी स्वभाव वाला, कामी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, चिंताग्रस्त हो जाता है। ऐसे लोगों का हृदय निष्ठुर हो जाता है। उनके हृदय में दया, परोपकार आदि गुणों का अभाव हो जाता है।

इस विषय में ब्रिटेन के मान्चेस्टर मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में एक प्रयोग किया गया था।
प्रयोगशाला में पालतू सफेद चूहों में से एक सफेद चूहे को अलग पिंजरे में रखा गया और उसे तामसिक आहार दिया गया।
आठ दिन के बाद उसको सभी के साथ रखा गया, तो उसने सभी चूहों को लहूलुहान कर दिया। पुनः उसको अलग पिंजरे में रखा गया और सात्विक आहार जो सभी चूहे खाते थे दिया गया। एक माह तक सभी ने एक जैसा आहार ग्रहण किया। वहीं चूहा पुनः शांत प्रकृति का हो गया। इससे यही प्रमाण मिलता है कि हम जैसे आहार ग्रहण करते हैं, हमारे विचार वैसे ही बन जाते हैं और फिर जैसे विचार होंगे, वैसा ही कर्म करेंगे। इसलिए सात्विक आहार को ही अहमियत देनी चाहिए, जिससे जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहे।

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