श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
हम अपने जीवन में अक्सर छोटी-छोटी बातों या घटनाओं को प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं और एक दूसरे के साथ लड़ते- झगड़ते रहते हैं। इस प्रकार बेवजह की लड़ाई कई बार बड़ा रूप ले लेती है। छोटी-छोटी बातें अक्सर विनाश का कारण बन जाती हैं। दूसरों से लड़ाई करने में समय की बर्बादी के साथ-साथ अपना भी शारीरिक और मानसिक नुकसान अवश्य होता है। क्योंकि इससे अक्सर देखने में आता है कि हम तनाव का शिकार हो जाते हैं जिससे हम अस्वस्थ रहने लगते हैं।
जिसका असर हमारे कामकाज, घर- परिवार पर भी पड़ता है और हम निराशावादी हो जाते हैं। इससे कोई लाभ नहीं है, बल्कि हर प्रकार से हानि ही होती है। इसके विपरीत यदि आप खुद से लड़ाई लड़े, तो न केवल आपका व्यक्तित्व निखर उठेगा, बल्कि आपके अंदर आत्मविश्वास, धैर्य, सफलता और संघर्ष इंद्रधनुष के रंगों की भांति रंगीन हो जाएंगे।
आत्मविश्वास में आत्मा शब्द है और आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से होता है। अगर आत्मविश्वास बढ़ाना है, तो परमात्मा की शक्ति की आवश्यकता अवश्य होगी। परमात्मा से जुड़ने के कई तरीके हैं— कर्मकांड, ज्ञानयोग, भक्तियोग। आपको जो ठीक लगे, उस रास्ते से उस परमशक्ति तक पहुंचिए।
आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए— गुरु की कृपा और माता- पिता के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है। आजकल मनुष्य में आत्मविश्वास की कमी नजर आती है। आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए नए- नए तरीके ईजाद करते रहते हैं। कुछ तो टेक्नोलॉजी से आत्मविश्वास प्राप्त करने के लिए उतावले रहते हैं, लेकिन हमेशा याद रखिए, टेक्नोलॉजी आपकी किसी कार्य विशेष में सहायता कर सकती है, लेकिन आपका सहारा नहीं बन सकती। सहारा तो परमात्मा का ही लेना पड़ेगा, तभी आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी। यदि आप अंदर से आत्मविश्वास से लबरेज हैं और बाहर कोई शब्द अतिरेक के साथ निकल गए हों तो उसे पूरा करने में परमात्मा आपका पूरा सहयोग करेगा।
आत्मविश्वास के साथ धैर्य रूपी गुण को धारण करने से मनुष्य का व्यक्तित्व सोने की तरह चमकने-दमकने लगता है। लेकिन आजकल तो कोई किसी को सहन करना नहीं चाहता। सब एक- दूसरे पर आक्रमण करने में लगे हैं। अकारण दूसरे को आहत करने में लोगों को बड़ा आनंद प्राप्त होता है। वेदों में झुकने को ही शौर्य की पराकाष्ठा बताई गई है। जिसमें झुकने का साहस हो, जो विनम्र हो, सहनशील हो, उसके आगे ईश्वर भी हार जाता है।
धैर्यवान व्यक्ति अपनी उर्जा को अतीत, वर्तमान और भविष्य में बांट कर चलता है। जब वह ऊर्जा को अतीत में ले जाता है तो प्रथम कार्य करता है— अनुभव प्राप्त करना। अतीत में स्मृतियां ही नहीं, अनुभव भी होते हैं। वर्तमान में ऊर्जा के उपयोग का अभिप्राय है—घोर परिश्रम। लेकिन सबको सहयोग देते हुए, सहनशीलता और विनम्रता के साथ, और जब भविष्य को दृष्टि में रख उर्जा का उपयोग करता है, तो उसे दूरदर्शिता कहते हैं। अपनी उर्जा का हर स्थान पर सदुपयोग करने वाला व्यक्ति ही धैर्यवान कहलाता है।
आत्मविश्वास और धैर्य के गुणों को धारण करने वाला व्यक्ति संघर्ष करना सीख जाता है, जिससे सफलता उसके कदम चूमती है। इसलिए जब व्यक्ति खुद से लड़ने का साहस जुटाता है, तो वह अपने नकारात्मक कार्यों और भावों पर विजय प्राप्त कर लेता है। वहीं दूसरों से लड़ने में अधिकतर नकारात्मक भाव ही व्यक्तित्व पर हावी हो जाते हैं। इसके विपरीत स्वयं से लड़ने में व्यक्तित्व में निखार आता है।
एक अफ्रीकी कहावत भी है कि— यदि आप अपने भीतर के शत्रु को जीत लेते हैं, तो बाहर का शत्रु आप को नुकसान पहुंचाने में सफल नहीं हो पाएगा।
यदि आप लोगों की परवाह किए बिना पूर्ण निष्ठा एवम् समर्पण के साथ अपने नेक कार्यों को पूरा करने में लगे रहते हैं, तो आप इतिहास रच सकते हैं। इसलिए आप अपने कर्म कीजिए। कर्म ही मानव धर्म है। कर्म ही मनुष्य का सच्चा साथी और उसकी असली कमाई है। कर्म पर ही मनुष्य का भविष्य निर्भर करता है। कर्मों से ही मनुष्य का जीवन सफल होता है। लगातार मेहनत से कमजोर दिमाग भी हर बाधा, परेशानी पर विजय प्राप्त कर सकता है, बस लोगों की बातों पर ज्यादा ध्यान न देकर आरोप-प्रत्यारोपों की परवाह न करते हुए अपने पथ पर आगे बढ़ना है, न कि उनसे लड़- झगड़कर अपने आपको कमजोर करना है, बल्कि खुद से लड़ने की तकनीक आजमाएं।
सूर्य हमेशा चमकता है, कभी-कभी जब काले बादल उस पर छा जाते हैं, तो हर और अंधकार छा जाता है। लेकिन उस समय सूर्य शांत रहता है और बादलों के छटने का इंतजार करता है। बादलों के छटते ही उसकी सोने जैसी रोशनी पूरे विश्व में छा जाती है। स्वयं से संघर्ष करने के बाद मनुष्य जीवन के किसी भी मोड़ पर आने वाली कठिनाई का आसानी से मुकाबला करने में सक्षम बन सकता है। इसलिए जब लोग आपका मजाक बनाएं, आपकी असफलता पर हंसी उड़ाएं और आपको लड़ने के लिए प्रोत्साहित करें तो शांत रहकर अपनी प्रतिभा को निखारते रहें। यह कार्य इतना मुश्किल भी नहीं होता, बस इसके लिए आपको दूसरों से नजरें हटाकर स्वयं पर लगातार नजरें रखनी होती हैं।
लोगों के असफल होने का मुख्य कारण यही होता है कि वे अपनी असफलता और दोषों पर सुधार करने की बजाय दूसरे लोगों पर दोषारोपण कर उनसे लड़ने में अपनी शक्ति लगा देते हैं। इसलिए मनुष्य को समय-समय पर आत्म-चिंतन या आत्म- निरीक्षण करना चाहिए। जैसे दुकानदार सांयकाल दिनभर की आय और व्यय का लेखा देखता है, वैसे ही व्यक्ति को अपने दिनभर किए कार्यों का निरीक्षण करना चाहिए।
उसे यह विचार करना चाहिए कि— मेरे कौन से कार्य पशुओं के तुल्य और कौन से मानवोचित हैं। आहार ग्रहण करना, निद्रा, शक्तिशाली से डरना और दुर्बल को डराना एवं बच्चे उत्पन्न करना ये कार्य तो मनुष्य और पशुओं के समान हैं। धर्म का आचरण ही मनुष्यों में पशुओं से अधिक है। जो कि पशुओं के लिए करना सम्भव नहीं है। धर्म के बिना मनुष्य पशु के तुल्य है। मनुष्य के जीवन में धर्म का स्थान बहुत अहम् है। जो व्यक्ति धर्म के अनुसार जीवन यापन करता है, वह दूसरों की अपेक्षा ज्यादा सुखी और निश्चित होता है। धर्म परायण व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर सहज होता है।
धर्म सर्वोपरि है। बड़ों की आज्ञा का पालन करना मनुष्य का पहला धर्म है। आने वाली पीढ़ी को भी आज्ञा पालन और अनुशासन का संदेश देने के साथ ही पूरी तरह से नियोजित दिनचर्या, मनुष्य को धार्मिक बनाती है। इससे मनुष्य का जीवन स्वस्थ रहता है। दिनचर्या के मुताबिक काम करना भी धर्मपरायणता का एक हिस्सा है।
एंथनी राबिन्स कहते हैं कि— आपका भाग्य आपके निर्णयों से निर्धारित होता है। इसलिए जीवन को अपने हिसाब से ढालने का प्रयत्न करें। दूसरों के अनुसार अपने जीवन को न जिएं। जीवन आपका है, इसलिए इसको अपने अनुसार ही जिएं।