275. परखें अपनी प्रतिभा

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है, जो इसे पहचान लेता है, वह खुद को उसी मार्ग पर ले जाने का भरपूर प्रयत्न करता है। पर हमारे में से बहुत सारे लोग अपनी पसंद, अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान ही नहीं पाते। जिसका परिणाम यह होता है कि वे दूसरों को देखकर उसका असफल अनुसरण करने की कोशिश करते हैं।

फिर उनकी स्थिति उस धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है कि— धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

यह कहावत हमारे समाज में बहुत प्रचलित है। क्योंकि जीवन में जो कुछ प्रतिभा उनके अंदर छुपी हुई है, वह तो समझ नहीं पाते और दूसरों की नकल करने लग जाते हैं, अर्थात् वह कार्य करने लगते हैं, जिसके बारे में उन्हें ज्ञान ही नहीं होता। अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए और किसी भी प्रकार की कुढ़न से बचने के लिए जरूरी है, समय रहते अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पहचानना। अपने टैलेंट को जानना, समझना और उसे निखारना उतना ही जरूरी है, जितना भूख से मर रहे किसी व्यक्ति को खाना खिलाना। तभी हम समाज में अपने आप को स्थापित कर पाएंगे।

यह सच है कि परमात्मा ने हमारे अंदर कुछ विशिष्टताएं प्रदान की हैं। जिनकी शक्ति से हम अपनी जीवन यात्रा को सुचारू रूप से चला सकें।

संसार में दो तरह के लोग पाए जाते हैं —
एक तो वे होते हैं, जिन्हें अपनी प्रतिभा के विषय में ज्ञात है
दूसरे वे जो उससे अनभिज्ञ रहते हैं कि वे किस प्रयोजन के लिए बने हैं।

पहले वर्ग वालों की स्थिति दूसरे वर्ग वालों से बेहतर होती है, क्योंकि मेहनत तो सभी करते हैं। किंतु जिन्हें अपनी प्रतिभा के विषय में ज्ञात होता है, उनकी मेहनत उस दिशा में होती है, जो उन्हें निश्चित मार्ग की ओर अग्रसर करती है। ऐसे लोग जिन्हें यह ज्ञात ही नहीं कि उनमें किस कार्य को करने का हुनर है, उन्हें किस क्षेत्र में जाना चाहिए, ऐसे लोग अपना समय एवम् श्रम व्यर्थ करने में लगे रहते हैं।

अक्सर देखने को मिलता है कि युवा बारहवीं के बाद बड़ी असमंजस की स्थिति में रहते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि वे कौन-सा क्षेत्र चुनें। दोस्तों के चक्कर में कुछ युवा तो अपने नापसंद विषयों को ही चुनकर कैरियर बनाने की सोचने लगते हैं। कुशाग्र होने के कारण पढ़ाई और परीक्षा में उनका प्रदर्शन तो ठीक रहता है, पर उन विषयों में बहुत मन नहीं लगने के कारण वे उनका बहुत आनंद नहीं उठा पाते। लेकिन अब उनके सामने उसी क्षेत्र में जाने के सिवाय कोई रास्ता भी नजर नहीं आता। वे सिर्फ मन मसोसकर ही रहने लगते हैं। ऐसे में अधिकतर युवा तो भटक जाते हैं और कुछ अपना नसीब समझकर उसी क्षेत्र में कैरियर बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं।

विभिन्न कंपनियों में ऐसे तमाम लोग मिल जाएंगे, जो अपने काम से संतुष्ट नहीं होते। आमतौर पर ऐसा इसलिए ही होता है, क्योंकि इन्होंने जिस कैरियर को अपनाया, वह संभवतः उनकी रूचि का नहीं था। लेकिन नौकरी करने के लिए किसी क्षेत्र को तो चुनना ही था, इसलिए उन्होंने उस समय तो उत्साह के साथ उसे स्वीकार कर लिया, लेकिन वक्त बीतने के साथ वे उससे बोरियत महसूस करने लगते हैं, और अपनी पूरी जिंदगी तनाव और परेशानी में गुजार देते हैं। अगर शुरुआत में ही युवा इस बात को महसूस कर लेते और अपनी रूचि पर अच्छी तरह विचार कर लेते तो शायद उनको ये नौबत न आती।

दरअसल बीते समय में अधिकतर युवाओं को पहले जो नौकरी मिल जाती थी, वे उसी में खुश रहते थे, चाहे उनकी पसंद की हो या ना हो। उस समय अपनी पसंद से ज्यादा नौकरी मिलने का उत्साह होता था। कुछ लोग तो भाग्य पर भरोसा करके, उस नौकरी में रुचि लेकर और उस क्षेत्र में खुद को निखार कर तरक्की की राह तैयार कर लेते, पर कई युवा ऐसा नहीं कर पाते। कुछ वर्ष बीतने पर वे उस क्षेत्र से उबने लगते हैं।

काम में रुचि न होने के कारण वे अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह नहीं निभा पाते, जिससे उनकी छवि खराब हो जाती है। ऐसे में तरक्की पाना एक सपने की तरह लगने लगता है। उम्र भी बढ़ जाती है और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं, जिसके कारण वे अपने कार्य में यू-टर्न लेने की सोच ही नहीं सकते। क्योंकि ऐसा करने का उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है। ऐसी स्थिति होने पर भी कुढ़न, हताशा और कुंठा को खुद पर हावी होने देने की बजाय अपने काम में नए सिरे से रूचि पैदा करने का प्रयास करना चाहिए।

अगर आप मन से ऐसा करोगे तो कुछ ही समय में इसका परिणाम आपके सामने होगा। कुछ ही दिनों में आपके अंदर ऊर्जा का संचार होगा और आप अपने आपको तरोताजा महसूस करने लग जाओगे। आपका कार्य अच्छा होने के कारण आपकी छवि में भी सुधार आएगा।

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