283. शांति, मन की

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

शांति मनुष्य के जीवन में तभी हो सकती है, जब वह अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकार की परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित कर लेता है। उस समय उसका मन-मष्तिस्क चिंता ग्रस्त एवं तनाव में नहीं रहता। चिंता से भागकर कभी नहीं बचा जा सकता परंतु यदि मानसिकता को बदला जाए तो चिंता को दूर भगाया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं होता या यह कहें कि मनुष्य में इतना सामर्थ्य नहीं होता कि वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने जीवन में संयम और संतुलन का विकास करने की क्षमता विकसित कर सके।

उसके जीवन में तब तक शांति नहीं हो सकती, जब तक वह दुख को सुख में बदलने की कला से सुसज्जित नहीं हो जाता। परिस्थितियां हमेशा अनुकूल नहीं रहती। ऐसा कभी नहीं होता की हम जो चाहें, वही हमें प्राप्त हो। प्रत्येक कार्य हमेशा सुचारू रूप से संपन्न हो ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है। यदि हम शांत रहना सीख लेंगे तो दूसरों को भी शांति दे सकेंगें।

आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ मनुष्यों की प्रकृति ऐसी होती है कि वे हमेशा शांत रहते हैं और कुछ हमेशा अशांत। ईश्वर ने अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य को अद्भुत शक्ति से नवाजा है। हम अपने मन के मंदिर में किसी भी विचार को प्रतिष्ठित कर सकते हैं। हमारे विचार ही ये निर्धारित करते हैं कि हम जीवन में कितना शांत और निश्चिंत रहेंगे अथवा चिंतित।

जब भी किसी मनुष्य के मन में उठी इच्छा की पूर्ति होती है तो परम आनंद को प्राप्त होता है, पर वह भूल जाता है कि यही इच्छापूर्ति उसके मन में एक और उससे बड़ी इच्छा जागृत करके उसके चित्त को अव्यवस्थित कर देगी। मनुष्य के विचारों में भी भिन्नता होती है। एक ही कार्य के प्रति दोनों का नजरिया अलग- अलग हो सकता है। ऐसे में दोनों ही एक- दूसरे को हानि करने के लिए तत्पर हो जाते हैं और अपने चित्त की शांति को खो बैठते हैं। ऐसी स्थिति में जिसकी हानि होती है, वह तो दुखी होता ही है परंतु जो लाभ में रहता है, वह भी हारे हुए पक्ष की ओर से आने वाली संभावित प्रतिक्रिया से हर समय चिंता में डूबा रहता है और इस तरह से क्रोध भी व्यक्तियों को पीड़ित करने का काम करता है।

शांति प्रार्थना से नहीं मिलती। यह सकारात्मक विचारों की एक स्वाभाविक परिणति है। आपने देखा होगा कि प्रतिकूल परिस्थितियों में एक व्यक्ति शांत रहता है और दूसरा अशांत हो जाता है। शांत रहने वाला मनुष्य दूसरों के अप्रिय व्यवहार से अपनी शांति को भंग नहीं होने देता। हम जिन धारणाओं को, मान्यताओं को अपने मन में सहेज कर रखेंगे और पोषित करेंगे, कालांतर में वही धारणाएं और मान्यताएं हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करेंगी।

आपने देखा होगा कि एक ही घटना को दो व्यक्ति भिन्न- भिन्न प्रकार से ग्रहण करते हैं। जिनका चिंतन सकारात्मक है, वे दुख को सुख, अभाव को भाव, अशांति को शांति और अंधेरे को प्रकाश में बदलने का माद्दा रखते हैं और जो इस तरह की कला जानते हैं, उन्हीं का जीवन सार्थक होता है। वही अपने जीवन में शांति स्थापित कर सकते हैं। शांति परिस्थितियों को ठीक करने से नहीं मिलती बल्कि सकारात्मक विचारों के साथ जीवन की सत्यता को स्वीकार करने से मिलती है।

जब मन में शांति के फूल खिलते हैं तो कांटो में भी फूलों का ही दर्शन होता है। जब मन में अशांति के कांटे होते हैं तो फूलों में भी चुभन और पीड़ा का अनुभव होता है। मन चंचल होता है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है इसलिए जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें। किसी भी स्थिति में धैर्य न खोएं। अपने विचारों के अनुरूप ही कर्म करें। कर्म के अनुसार ही हमें फल की प्राप्ति होगी। शांति का स्रोत हमारे अंतर्मन में विद्यमान है। बस उसे जानने की, पहचानने की आवश्यकता है।

Leave a Comment

Shopping Cart