284. ईश्वरीय कृपा की महत्ता

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

अनादि काल से यह चराचर सृष्टि उस निराकार परम सत्ता की न्यायप्रिय बागडोर से ही अधिशासित होती रही है। उनकी यह व्यवस्था बहुत ही सुव्यवस्थित है, जिसके कारण किसी भी जीव के साथ कोई अन्याय नहीं होता। फिर भी सभी को वह सब नहीं मिल पाता, जिसकी वे इच्छा रखते हैं, कामना करते हैं। इससे प्रायः निराशा घेरने लगती है। बिना ईश्वर में श्रद्धा, विश्वास के मनुष्य दुःख, पीड़ा, बन्धन, भय, शोक, चिंताओं से घिरा रहता है।

सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के जीवन में ईश्वर का स्थान महत्वपूर्ण है। उनके लिए वही जीवन के उत्पादक, संचालक, रक्षक, प्रेरक हैं। उनके बिना जीवन में निरसता है, जीवन नितांत अपूर्ण है। भयंकर गर्मी देने वाला सूर्य और तारे, असंख्य जीवों को अपनी गोद में शरण दिए हुए यह पृथ्वी, इस बात के पक्के सबूत हैं कि सृष्टि का उद्भव किसी न किसी काल में, काल की किसी निश्चित अवधि में घटित हुआ है और इसलिए इस विश्व पर कोई न कोई ईश्वरीय कृपा की महत्ता होनी चाहिए।

हम सफलतापूर्वक परीक्षण करके यह बात साबित नहीं कर सकते की घड़ी जैसा सूक्ष्म यंत्र अकस्मात् बन गया अर्थात् उसे बनाने में किसी कारीगर के दिमाग और हाथ की जरूरत नहीं पड़ी। अपने आप चाबी लग जाने वाली घड़ी के बारे में भी यह नहीं कहा जा सकता कि किसी के चलाए बिना ही वह चल पड़ी। छोटे-छोटे अनगिनत जीव पृथ्वी की गोद में शरण लिए हुए हैं, वे इतने छोटे हैं कि जिन्हें हम खुली आंखों से देख भी नहीं पाते।

सूक्ष्म दर्शक यंत्र से ही देखे जा सकने वाले सूक्ष्म और हैरत में डालने वाले कार्यों को करने वाला यह कोश अपने वर्तमान रूप में कैसे आया? इसमें गति कैसे आरंभ हुई? तो इसकी शुरुआत या इसके कार्यकलाप के जारी रहने के कारण की व्याख्या का प्रयत्न करते हुए जब तक हम युक्ति और तर्क के साथ यह स्वीकार नहीं कर लेते कि किसी चेतन बुद्धिमान शक्ति ने उसे अस्तित्व दिया, तब तक हमें ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, जिनसे हम पार नहीं जा सकते।

जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचने के दो सूत्र हैं।
एक कार्य के प्रति निष्ठा एवं ईमानदारी और
दूसरा है ईश्वरीय कृपा, जो बहुत ही निर्णायक है।

डॉक्टर पाल अर्नेस्ट एडोल्फ (फिजीशियन और सर्जन सेंट जॉन विश्वविद्यालय शंघाई- चीन) —

के अनुसार मनोचिकित्सक जिन महत्वपूर्ण कारणों का निर्देश करते हैं, उनमें से कुछ ये हैं— अपराध, आक्रोश, भय, चिंता, विक्षोभ, अनिश्चय, सन्देह, ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ और उदासी।

दुर्भाग्य की बात यह है कि अनेक मनोचिकित्सक बीमारी पैदा करने वाले भावावेग की गड़बड़ियों के कारणों को तो तलाश लेते हैं, किंतु उन गड़बड़ियों का इलाज करने में वे जिन विधियों का प्रयोग करते हैं, उनमें ईश्वरीय विश्वास जैसी बुनियादी चीज की उपेक्षा कर जाते हैं।
तभी मुझे इस बात का भान हुआ कि मुझे शरीर के उपचार के साथ-साथ आत्मा का भी उपचार करना चाहिए और डॉक्टरी और शल्यक्रिया संबंधी उपायों में विश्वास के साथ- साथ मुझे अपने ईश्वरीय विश्वास का भी प्रयोग करना चाहिए।
केवल इसी तरीके से मैंने अपने मन में सोचा कि मैं मरीज की पूर्ण चिकित्सा कर सकता हूं, जिसकी उसे आवश्यकता है। इसके बाद और अधिक गंभीर विचार करने पर मैंने देखा कि वर्तमान चिकित्सा संबंधी उपचार में और परमात्मा में, मेरा जो विश्वास है, वह आधुनिक चिकित्सा दर्शन की जरूरतों को भी पूरा करता है।

उसके बाद जो मुझे अनुभव हुआ, वह अकल्पनीय था और मैं समझ गया कि ईश्वरीय कृपा बगैर कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। टूटी हुई हड्डियों और टूटे हुए दिलों का उपचार उसी के माध्यम से होता है। प्रभुसत्ता के समक्ष संसार की सारी सत्ताएं धरी की धरी रह जाती हैं। बिना उस सत्ता के वे वैभव व श्री से हीन हो जाती हैं। यदि मनुष्य के हाथ में कुछ होता तो वह मनचाहा जीवन जीने की प्रभुता रखता, लेकिन एक क्षण भी वह ईश्वरीय कृपा की स्नेह छांव के बिना जीवन यात्रा का एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकता। संसार में जिसने जो भी प्राप्त किया है, वह केवल ईश्वरीय कृपा से ही संभव हुआ है।

इस सृष्टि में नियम, व्यवस्था और कर्म उस सर्वोच्च सत्ता की कृपा के बगैर संभव नहीं है। क्या इसको आकस्मिक घटना कहा जाएगा कि— केसर के पुष्प का छोटा- सा कण पृथ्वी में समाहित हो जाए और उसमें से एक नया पौधा पैदा हो जाए? क्या यह अधिक युक्तिसंगत नहीं है कि हम इस बात में विश्वास करें कि परमात्मा के अदृश्य हाथों ने उन नियमों के द्वारा इन चीजों की व्यवस्था की है, जिन नियमों को सीखना हम शुरू ही कर रहे हैं? चाहें तो इसकी स्वयं पुष्टि करके देख लें कि ईश्वरीय कृपा से पहले किसी व्यक्ति के पास वह सब क्यों नहीं था और ईश्वर की कृपा के बिना वह कब तक उन सौगातों को सहेज कर रख पाएगा? वह उतनी ही देर उस पद अथवा सत्ता पर आसीन रह सकता है जितनी देर ईश्वरीय कृपा से उसे अवसर प्राप्त हुआ है।

ईश्वरीय कृपा का महत्व अक्सर वनस्पति जगत् के आश्चर्यों और रहस्यों में, कभी विफल न होने वाले नियमों के माध्यम से देखा जा सकता है। यदि किसी को ईश्वरीय कृपा के प्रमाण अपने चारों ओर के संसार में दृष्टिगोचर नहीं होते तो यही समझना होगा कि, उसकी देखने की शक्ति ही जाती रही है। जीव को जीवन का प्रत्येक अवसर ईश्वर द्वारा उसकी उत्तम बुद्धिमता, शक्ति, विवेक, पोरुष व उसकी मौलिकता की परीक्षा के लिए दिया जाता है कि उसमें वह ईश्वर के सौंपे गए उत्तरदायित्व में कितना खरा सिद्ध होता है।

जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए ईश्वर बार-बार इस प्रकार के प्रेरक चित्रों की रचना करते हैं। सत्य व मूल्य रचना हेतु किए गए ये कार्य ही परंपरा का निर्वहन कराते हैं। इस अक्षुण्ण परंपरा को जीवित रखने के लिए समयानुसार ईश्वर पात्र व उनकी काया में परिवर्तन करते रहते हैं, लेकिन परंपरा को पोषित करने के निमित्त वे उन्हीं मूल्यों के संरक्षण हेतु अपना सर्वस्व अर्पित कर उसे जीवित रखते हैं।

उस परमसत्ता की व्यवस्था सर्वत्र स्पष्ट है। ऐसी व्यवस्था के पीछे एक कुशल व्यवस्थापक होने के साथ-साथ, उसमें अनंत गुण होने चाहिए और वह ईश्वर ही हो सकता है। यह उस परम सत्ता के कार्य करने की कुशलता ही है कि कार्य और कारण के सम्बन्ध का प्राकृतिक नियम इतना जबरदस्त है कि तीन से पांच वर्ष तक के बच्चे का विकसित होता हुआ मन भी यह जान लेता है कि कोई न कोई ईश्वरीय सत्ता है, जिसकी कृपा की उस पर बारिश हो रही है।

यदि इस धरा पर जीवन को श्रेष्ठ बनाना है और उसमें अनगिनत विशेषताओं को समाविष्ट करना है, तो किसी दिव्य शक्ति के पथ प्रदर्शन की आवश्यकता है। जो स्वयं कर्ता बनकर समय की शिला पर अमिट छाप छोड़ना चाहता है, वह पल भर में ही अस्तित्वहीन हो जाता है। जिसे ईश्वर का सरंक्षण प्राप्त होता है, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

ईश्वरीय कृपा से मनुष्य में जो आत्मिक बल आता है, वह इस बात की गारंटी देता है कि उस प्रकार का विश्वास करने वाले व्यक्ति की दुर्गति कभी नहीं हो सकती। इसके साथ ही ईश्वर में विश्वास करने वाले मनुष्य का जीवन हर प्रकार से पूर्ण अर्थ देने के लिए अपेक्षित है और विचारशील लोग इस प्रकार के अर्थ की हमेशा तलाश करेंगे। अतः ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करके ही हम परम सत्ता को प्राप्त करने के सुपात्र बन सकते हैं।

2 thoughts on “284. ईश्वरीय कृपा की महत्ता”

  1. Obrigado, estou procurando informações sobre esse tópico há algum tempo e a sua é a melhor que descobri até agora. Mas e em relação aos resultados financeiros? Você tem certeza sobre o fornecimento

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