श्री गणेशाय नम्
श्री श्याम देवाय नम्
नारी विश्व-ब्रह्माण्ड में चैतन्य और क्रियाशील महाशक्ति का एक विशिष्ट केंद्र है। नारी को सम्मान, सृजन और शक्ति का प्रतीक माना गया है। हमारे वेद और ग्रंथ नारी शक्ति के योगदान से भरे है। नारी शक्ति को चेतना का प्रतीक माना गया है। मगर इस रहस्य से बहुत कम लोग परिचित होंगे कि पुरुष से अधिक नारी क्यों अधिक सुंदरता, कोमलता, सहनशीलता, क्षमाशीलता की मूर्ति है। नारी के व्यक्तित्व के भीतर कौन-सा ऐसा तत्व है, जो आनंद के लिए आकर्षित कहता है। इसका एक कारण है, जो बिल्कुल साधारण है। जिसकी हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है – उसमें 23 गुणसूत्र पुरुष के और 23 गुणसूत्र स्त्री के होते हैं। इन 46 गुणसूत्रों के मिलन से पहला सेल निर्मित होता है और इस प्रथम सेल से जो प्राण पैदा होता है, उससे स्त्री का शरीर बनता है। 23,23 का यह सन्तुलित सेल है। जिससे स्त्री के शरीर का निर्माण होता है। इनमें से 22 गुणसूत्र नर और मादा में समान और अपने-अपने जोड़े के समजात होते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से समजात गुणसूत्र कहते हैं। 23 वें जोड़े के गुणसूत्र स्त्री और पुरुष में समान नहीं होते। जिन्हें विषमजात गुणसूत्र कहते हैं। एक गुणसूत्र के विषमजात होने के कारण पुरुष के व्यक्तित्व का सन्तुलन टूट जाता है। इसके विपरीत स्त्री का व्यक्तित्व सन्तुलन की दृष्टि से बराबर है। इसी कारण स्त्री का सौन्दर्य आकर्षण, उसकी कला उसके व्यक्तित्व में रस पैदा करती है।
इसी एक गुणसूत्र के कारण पुरुषों में जीवनभर एक बेचैनी बनी रहती है। एक आंतरिक अभाव खटकता रहता है। क्या करूँ? क्या न करूँ? इस तरह की एक चिन्ता और बेचैनी जीवनभर और बराबर बनी रहती हैं। क्यों? इसलिए कि उसके सन्तुलन में एक गुणसूत्र में समता नहीं है। इसके विपरीत स्त्री का सन्तुलन बराबर है। तात्पर्य यह है कि एक छोटी-सी घटना यानि की एक गुणसूत्र का विषम होना स्त्री-पुरुष के सम्पूर्ण जीवन में इतना अन्तर ला देता है। मगर यह अन्तर स्त्री में सौन्दर्य और आकर्षण तो पैदा कर देता है, पर स्त्री को विकसित नहीं कर पाता। क्योंकि जिस व्यक्तित्व में समता होती है, वह कभी भी विकास नहीं कर पाता। वह जहाँ है, वही रुक जाता है। ठहर जाता है। इसके विपरित पुरुष का व्यक्तित्व सम नहीं है, विषम है, इसी विषमता के कारण वह जो कर्म करता है-वह स्त्री कभी नहीं कर पाती। स्त्री को परमात्मा ने एक ऐसी शक्ति से नवाजा है, जो दुनिया में किसी के पास नहीं हैं और वो शक्ति है-मातृत्व। हाँ, स्त्री इस सृष्टि को चलाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। माँ बनना किसी चमत्कार से कम नहीं है। नारी में ममता, मृदुलता और मानवता का समावेश है। वह कोमलता की प्रतीक है। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर यही नारी, चंडी बनने से भी परहेज नहीं करती।
भारतीय उपासना पद्धति में तो स्त्री को शक्ति से सम्बोधित किया गया है। शिव-शक्ति, यानि स्त्री। अथर्ववेद में नारी को सत्याचरण अर्थात् धर्म का प्रतीक कहा गया है, यानि कोई भी धार्मिक कार्य उसके बिना पूरा नहीं माना जाता है। हमारे सनातन धर्म में तो नारी को घर की लक्ष्मी कहा जाता है। इस संसार में समय – समय पर नारियों ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है। कभी वह मीरा के भक्तीतत्व में प्रकट होती है, तो कभी वह श्री कृष्ण की प्रेमिका राधा के रूप में। कभी अहिल्या के रूप में तो कभी रानी लक्ष्मीबाई जैसी विरांगना बनकर। लेकिन मध्यकाल के समय नारी के प्रति उत्पीड़न भी बढ़ता गया और नारी को केवल अबला और भोग-विलास का साधन समझा जाने लगा। उस समय राजा राममोहन राय, और स्वामी विवेकानन्द आदि, जैसे महापुरूषों ने कहा था —नारी का उत्थान स्वयं नारी ही करेगी। कोई और उसे उठा नहीं सकता। वह स्वयं उठेगी। बस,उठने में उसे सहयोग की आवश्यकता है और जब वह उठ खड़ी होगी, तो दूनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती। वह उठेगी और समस्त विश्व को अपनी जादुई कुशलता से चमत्कृत करेगी।
स्वामी विवेकानंद का यह कथन सत्य साबित हुआ। आज की नारी जागृत एवम् सक्रियता के साथ जीवन में ऊँचे मुकाम हासिल कर रही है। बड़ी-बड़ी कम्पनियों की CEO नारी ही हैं। यहाँ तक की घर की रक्षा करते-करते उसने देश की रक्षा करने की काबिलियत भी आ गई है। आज की नारी आर्थिक व मानसिक रूप से आत्मनिर्भर है और शिक्षा के बढ़ते प्रभाव के कारण वह पहले के मुकाबले अधिक जागरूक हुई है। शिक्षा की वजह से केवल आत्मनिर्भर ही नहीं हुई है, बल्कि रचनात्मकता में भी पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्रों में भी अपनी बुलंदी का झण्डा फहरा रही है। तकनीकी एवम् इंजिनियरिंग जैसे विषयों में उसकी पकड़ देखते ही बनती है। आज नारी ने अपनी शक्ति को पहचान लिया है, वह शक्तिस्वरूपा है।
स्वामी विवेकानंद जी यह बात भली-भाँति जानते थे। जब अमेरिका मे एक महिला ने स्वामी विवेकानंद जी से पूछा कि -“स्वामी जी आपने किस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है। मैं अपने बेटे को भी वही पढाना चाहती हूँ।” स्वामी जी ने उत्तर दिया कि – वह विश्वविद्यालय अब टूट चुका है। इस पर उस महिला ने पूछा कि वह विश्वविद्यालय कोन-सा था। स्वामी जी ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया कि- वह विश्वविद्यालय मुझे जन्म देने वाली माँ थी, जो अब इस संसार में नहीं है । इसलिए नारी की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। नारी है, तो हम हैं और हम हैं, तो यह सृष्टि है। बगैर नारी के इस सृष्टि का कोई वजूद नहीं।
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