51. विचारों की परिवर्तनशीलता

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

इंग्लैंड के प्रधानमंत्री एवं प्रसिद्ध इतिहासकार विंस्टन चर्चिल का एक महत्वपूर्ण कथन है—”नजरिया एक छोटी-सी चीज है, जो बड़ा परिवर्तन लाती है।” सही नजरिया धारण करना नकारात्मक तनाव को सकारात्मकता में परिवर्तित कर सकता है। जीवन नजरिए का नाम है, अनगिनत खुशियां दूसरों के साथ बांटने में ही हमारी खुशियां छिपी हैं। खुशियां बांटने से ही लौट कर खुशियां बढ़ती हैं और इससे सभी प्रकार के मानसिक विकारों पर विजय पाई जा सकती है।

एक वाक्य सुनाती हूं—एक अस्पताल के कमरे में दो बुजुर्ग भर्ती थे। एक बुजुर्ग उठ कर बैठ सकता था, लेकिन दूसरा उठ नहीं सकता था। जो बुजुर्ग उठ सकता था, उसका बिस्तर एक ऐसी खिड़की के पास था, जो बाहर की तरफ खुलती थी। वह बुजुर्ग उठकर बैठता और दूसरे बुजुर्ग से, जो उठ नहीं सकता था, उसे बाहर के दृश्य के बारे में बताता। सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियां, काम के लिए भागते लोग, पार्क में खेलते बच्चे आदि। दूसरा बुजुर्ग आंखें बंद करके अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ दिमाग में उन दृश्यों की काल्पनिक छवियों का आनंद लेता रहता। ऐसे ही कई महीने गुजर गए। एक दिन दृश्यों का वर्णन करने वाला बुजुर्ग नींद में ही चल बसा। अब तो दूसरा बुजुर्ग बहुत दुखी हुआ। एक दिन उसने पड़ोस के अपने साथी के बिस्तर पर शिफ्ट किए जाने की इच्छा प्रकट की। अब बुजुर्ग ने खिड़की से बाहर देखने की कोशिश की तो उसे दूसरी तरफ सिर्फ दीवार दिखाई दी। उसने नर्स को बुलाकर पूछा, तो नर्स ने बताया कि- वह बुजुर्ग तो जन्म से अंधे थे। यह उनका अपना नजरिया था, जिसकी वजह से वे दीवार को भी सुंदर दृश्यों में तब्दील कर देते थे। इसी सोच के बल पर वे पिछले दो-तीन सालों से कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते रहे।

यदि मनुष्य अपनी सोच को सकारात्मक रखे, तो मन में आए हुए सभी विकार शीघ्र दूर हो जाते हैं और मनुष्य का जीवन पूर्ण रूप से सुखों की अनुभूति करता है। नकारात्मक विचारों को केवल आत्मज्ञान के द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि— केवल आत्मज्ञान के द्वारा ही सभी प्रकार की नकारात्मकताओं और मन के द्वंद पर विजय प्राप्त की जा सकती है। कोई व्यक्ति गहरे विश्राम के द्वारा अपने भीतर आत्मज्ञान को जगा सकता है।

यह कथा हम सभी को ज्ञात होगी कि महाभारत काल में पांचो पांडव जब स्वर्गारोहण पर निकलते हैं, तो एक-एक कर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव मूर्छित होकर धरती पर गिरते चले जाते हैं। मान्यता है कि—सिर्फ युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्गारोहण कर पाते हैं। माना जाता है कि युधिष्ठिर को छोड़कर सभी भाइयों के मन में कुछ न कुछ कुविचार शेष रह गए होंगे। यात्रा के दौरान हमारे मन में भी विचारों की यात्रा सतत् चलती रहती है। रूढ और पुराने विचार मिटते जाते हैं और उनके स्थान पर नए और सुंदर विचार उत्पन्न होते रहते हैं। यदि हम स्वयं को सकारात्मक और सुंदर विचारों से परिपूर्ण कर लेते हैं, तभी हमें परम आनंद की प्राप्ति होती है। हिंदी के पितामह माने जाने वाले और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के राहुल सांकृत्यायन ने अंतर्मन में उठ रहे कई तरह के सवालों के जवाब ढूंढने के लिए तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक की यात्रा की थी। इस दौरान रास्ते में सन्यासियों, वेदांतियों से लेकर खेतों में काम करने वाले किसानों, बौद्ध भिक्षुओं से प्राप्त हुए ज्ञान को भी वह आत्मसात् करते गए।

सच है कि— हम जब दूसरों से सकारात्मक संवाद करते हैं, तो खोखली और पुरानी धारणाएं टूटती हैं और उनके स्थान पर नए और सुंदर विचारों का जन्म होता है। विचारों की सुंदरता से मनुष्य का व्यक्तित्व झलकता है।

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