श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
मनुष्यों को आज सबसे अधिक आवश्यकता धैर्य की है। लोग सफल होने के बाद अशांत हो जाते हैं और शांति की तलाश करते हैं। शांति की तलाश में निकलने से पहले धैर्य, सहनशीलता के गुण हमें अपने अंदर विकसित करने होंगे। ज्यादातर लोगों की जिंदगी में इन दिनों चिंता का अंबार लगा हुआ है। जिसे देखो वह परेशान है, दुखी है। बहुत से लोग सबके सामने कुछ नहीं कह पाते, लेकिन वे अंदर से बिल्कुल टूट चुके हैं। वक्त कब कैसे बदल जाए, पता नहीं चलता।
जीवन में बहुत सारे लोगों के साथ ऐसा हो जाता है, कि अचानक जिंदगी यू- टर्न ले लेती है, उसी को कहते हैं—विपरीत दौर या खराब समय। जब कभी जीवन में ऐसा वक्त आए, जो हमसे चुनौती मांग रहा हो, तो ध्यान रखिएगा चार बातों का सहारा लेना— संबंध, अपनी बुद्धि, निज बल और धन। लेकिन इन चार बातों का उपयोग करने में सर्वाधिक काम आएगा धैर्य। जब समय विपरीत हो, चुनौतियां सामने हों तो धैर्य मत छोड़िए। यदि धैर्य धारण करे रहे तो बाकी चार बातों का सदुपयोग कर आप उस बुरे दौर से बाहर निकल आएंगे। जैसे मछली पानी में तैरती है, ऐसे ही कुछ पक्षी भी हैं जो जल के भीतर तैर लेते हैं। इस बात से यह तो साबित हो गया कि ऊपर वाले की दुनिया में हर एक के भीतर कुछ बातें ऐसी हैं कि यदि वे उसका उपयोग करना सीख जाएं तो जैसे परिंदा पानी में भी तैर लेता है, वैसे वे भी नामुमकिन कार्य को भी मुमकिन कर पाएंगे।
आज हम अपने बच्चों को भौतिक रूप से तो समर्थ बना रहे हैं, लेकिन उनको आत्मिक रूप से कमजोर बना रहे हैं। हम उनको जो धन- दौलत और सफलता दे रहे हैं, एक दिन वह ज्वालामुखी बन जाएगी, यदि हम उनमें धैर्य और शांति के गुण विकसित नहीं करेंगे। नहीं तो हम अपने ही घर में विस्फोट देखेंगे और कुछ नहीं कर पाएंगे। बाद में पछताने से अच्छा होगा कि आज पहचानें कि इन्हें शांति कैसे दे सकते हैं। वरना आने वाले वक्त में ये शांति की भीख मांगते दिखेंगे। शांति के नाम पर कई लोग दुकानें चलाएंगे शांति कैसे मिले, इसके तमाशे होने लगेंगे। लेकिन क्या इससे किसी को शांति मिलेगी?
ऊपर वाले ने जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य के भीतर धैर्य का गुण छोड़ा है, जैसे कोई वस्तु रखकर हम भूल जाते हैं, ऐसे ही हमारे भीतर के धैर्य को कहीं रख कर भूल गए हैं। हमारा मन धैर्य को कायरता या कमजोरी बता देता है, जबकि धैर्य एक ऐसा गुण है, जिसका परिणाम शांति है। अधीर व्यक्ति कभी शांत नहीं रह पाएगा। भीतर के धैर्य को बाहर निकालना है तो तीन चीजों पर काम कीजिए—विचार, वाणी और व्यवहार। जब भी ऐसा अवसर आए कि धैर्य से काम लेना हो, तो शुरुआत कीजिए विचार से। अपने भीतर तुरंत ऐसे विचार लाएं जो आपके धैर्य के गुण को प्रकट करें। फिर वाणी में धैर्य उतारिए। जितनी जरूरत हो उतना ही बोलें और अपनी बात व्यवहार में प्रकट करें। इन तीनों चीजों पर समय रहते काम करने पर धैर्य जाग जाता है, और जिसका धैर्य जाग गया, उसे कोई अशांत नहीं कर सकता। क्योंकि जहां धैर्य होता है, वहां शांति अवश्य होती है और धैर्य धारण करने से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
महात्मा बुद्ध का एक प्रसंग है— कि एक बार बुद्ध एक सभा को संबोधित करने वाले थे। बुद्ध आए और बिना कुछ बोले वहां से चले गए। उस समय सभा में लगभग डेढ़ सौ श्रोता थे। दूसरे दिन लगभग 100 लोग आए, लेकिन बुद्ध दोबारा बिना बोले चले गए। इस तरह तीसरे, चौथे दिन तो और भी कम लोग आए। बुद्ध रोज आते और बिना बोले चले जाते। पांचवें दिन तो सिर्फ 14 लोग आए। महात्मा बुद्ध उस दिन बोले और वह सभी लोग उनके शिष्य बनकर उनके साथ चल पड़े। उनमें से ही किसी ने पूछा— आपका 4 दिन तक कुछ भी नहीं बोलने का क्या कारण था? महात्मा बुद्ध ने कहा— मुझे भीड़ नहीं, काम करने वाले लोग चाहिए थे। यहां वे लोग टिक पाएंगे जिनके पास धैर्य होगा। क्योंकि धैर्यवान व्यक्ति ही ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है।