57.सहनशीलता‌

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

सहनशीलता में एक ऐसी अद्भुत शक्ति समाई रहती है, जो आत्म चेतना को अमरत्व प्रदान कर अजेय बना देती है। दूसरी ओर जहां सहनशीलता का अभाव रहता है, वहां व्यक्ति के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगती। वैसे भी इंसान की जिंदगी हर घड़ी इम्तिहान लेती हैै और इस परीक्षा में कुछ प्रश्नपत्र ऐसे होते हैं, जिनके लिए जिंदगी हमारे कानों में धीरे से कह जाती है—ध्यान रखना। इसका कोई परिणाम नहीं आएगा। आप सहनशीलता की परीक्षा देते रहो, परिणाम आएगा या नहीं, यह मत सोचो। लेकिन जिंदगी रूपी प्रश्नपत्र तो हल करना ही पड़ेगा।

परमात्मा और भक्त का रिश्ता ऐसा ही होता है। वह भक्त की परीक्षा लेता रहता है और भक्त परीक्षा देता जाता है। जीवन का सत्य सहनशीलता ही है। अंत में जीत उसी की होती है, जो जीवन में पड़ रही चोटों से विचलित ने होकर, परमात्मा का आशीर्वाद मानकर इन्हें धैर्य पूर्वक सहता और स्वीकार करता रहता है। जिस व्यक्ति में सहनशीलता अधिक होती है, उसे जीवन में आने वाले दुख, कष्ट के रूप में नहीं लगते। सहनशीलता यदि सामान्य है तो जीवन में प्रति क्षण आने वाले अधिकांश कष्टों का निवारण, विवेक का प्रयोग करके किया जा सकता है। किंतु जहां सहनशीलता बिल्कुल भी नहीं होती, वहां ऐसे लोग जीवनपर्यंत अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को अपने मानसिक विकास पर ध्यान देना चाहिए।

पिछले दिनों एक खबर बहुत पढ़ने-सुनने में आई कि भारत का एक सैनिक जब पाकिस्तान की कैद में था, तो उसे बहुत प्रताड़ना दी गई। उस सैनिक ने लौटकर बताया, इतनी भीषण प्रताड़ना दी जाती है, जो अकल्पनीय है, क्योंकि प्रताड़ना देकर वे कुछ उगलवाना चाहते हैं, जो हमारे मन और मस्तिष्क में रखा होता है। लेकिन ऐसे समय उसने सहनशीलता का परिचय देते हुए अपने माइंड को लॉक कर लिया और इसका परिणाम यह हुआ, कि इतनी प्रताड़ना के बाद भी कोई बात बाहर नहीं आई। इससे उस सैनिक के मानसिक विकास का पता चलता है, जिसने बुरे वक्त में अपने विवेक से काम लिया।

लेकिन जिन लोगों में सहनशीलता का अभाव रहता है, वे जीवन पर्यंत भारी आर्थिक, शारीरिक और मानसिक नुकसान उठाते रहते हैं। प्रकृति में जब-जब असामान्य स्थिति होती है, तब- तब प्रकृति इसे स्वयं ठीक कर लेती है, किंतु मानव स्वभाव में जो असामान्य स्थिति बन जाती है, उसे मानव को ही ठीक करना पड़ता है। अन्यथा वह असामान्य स्थिति में ही रहेगा, जिसका खामियाजा भी उसी को उठाना पड़ेगा। मानव स्वभाव में क्रोध, इच्छाएं, लालसाएं, अहंकार ऐसे अवगुण हैं, जो कुछ न कुछ हर व्यक्ति में रहते हैं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिनमें इन चारों अवगुणों में से किसी भी अवगुण के कुछ अंश का समावेश न हो। जिन लोगों में इस प्रकार की कमियों का अंश बहुत ही कम होता है, वे लोग अपने विवेक का प्रयोग करके इन कमियों से होने वाले नुकसान से अपने को बचा लेते हैं।

ऐसे लोगों ने अपने आपको ध्यान और समाधि रूपी योग निद्रा में ढाल रखा है। वे परमात्मा द्वारा दिखाए गए ध्यान रूपी प्रकाश को अपने जीवन में आत्मसात करने की क्षमता रखते हैं। जिससे उनके आसपास का सारा वातावरण इतना अच्छा हो जाता है कि उनकी आत्म- चेतना को जागृत करने में संजीवनी बूटी का काम करता है। सहनशीलता हमें शांति, प्यार,पवित्रता और एकता में रहना सिखाती है। सहनशीलता का अर्थ है— आत्मज्ञान। जैसे- अगर आप पूरा दिन शांत रहें, किसी पर गुस्सा नहीं किया, सब से प्यार से बात की, अपने कार्य में उतावलापन नहीं दिखाया, धैर्य से कर्म किया तो इसका मतलब है कि आप में सहनशीलता रूपी गुण है। हमें अपनी हर सोच, हर कर्म में सहनशीलता रूपी गुण को शामिल करना है। किंतु बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिनमें सहनशीलता का गुण नहीं होता है। यह निश्चित ही मनुष्य की असामान्य स्थिति होती है। ऐसे में इन पर विशेष रूप से ध्यान देकर इन्हें सामान्य स्थिति में लाना ही पड़ेगा।

एक तरफ हम विकास के नए-नए आयाम छू रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ चारित्रिक मूल्यों का हनन करते हुए अपने व्यक्तित्व की आधारभूत संरचना पर तीव्र प्रहार कर उसे गर्त की ओर ले जा रहे हैं। हमारे अपने खुद के जीवन में सहनशीलता,जोकि हमारे बुद्धि, विवेक का सकारात्मक निर्माण कर हमें जीवन में एक पहचान के योग्य बनाती है, हमें बताती है कि हमें किस प्रकार का आचरण और व्यवहार करना और स्वीकारना चाहिए। हमें ध्यान रूपी गहरी निद्रा में जाकर अपने व्यक्तित्व को निखारना होगा। सहनशीलता एक ऐसी औषधि है, जो सभी स्थितियों को सामान्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सहनशील व्यक्ति ही हर असंभव कार्य को संभव करने की शक्ति रखता है। हर व्यक्ति को इतना सहनशील अवश्य होना चाहिए, ताकि उसका क्रोध, उसकी लालसाएं, एवं अंहकार उसके मस्तिष्क पर अपना विपरीत प्रभाव न डाल सकें।

5 thoughts on “57.सहनशीलता‌”

  1. Tolerance is good for us but everywhere we cannot follow it.if we tolerate in excess then that person loses his value and people does their work only .They don’t think about his feelings.

    1. But we use tolerance as a ornament then we can feel it’s value.I also wants to make me great with tolerance.Jai Shri shyam give me a great tolerance.

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