76. जीवन गति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जीवन एक सतत् प्रवाह है। यह निरंतर गतिशील रहता है। हम समय के बहाव में बहते चले जाते हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक कुछ भी पुराना नहीं रहता। वृक्ष, रास्ते, दोस्त, ऑफिस, संबंध, फूल, टेबल सब कुछ थोड़ा -थोड़ा बदल जाते हैं, लेकिन आदमी है कि पुराने में जीना चाहता है, जीता है और सोचता है कि नया कुछ भी नहीं हो रहा। लेकिन जीवन प्रतिपल नई दिशाओं को छूता हुआ, नए क्षितिज में प्रवेश करता है और नए सूरज से मिलता है। हम प्रतिदिन अंधेरे से पार होकर नए उजाले का स्वागत करते हैं, नए दिन में प्रवेश करते हैं। नित्य जीवन के नए विस्मय से साक्षात्कार करते हैं। उसके बाद भी हमारे जीवन में नवीनता का बोध नहीं होता तो यह आश्चर्यजनक स्थिति है।

समय किसी के लिए नहीं थमता। एक और नये दिन ने हमारी जिंदगी में दस्तक दी है। हालांकि इस परिवर्तन से दैनिक जीवन की वास्तविकताएं और चुनौतियां तो नहीं बदलती, अलबत्ता वक्त की नई करवट के साथ नई आकांक्षाओं के पंख अवश्य परवान चढ़ते हैं। जिनमें बेहतरी की उम्मीद बंधी होती है। ऐसे में यदि आप सचमुच नए दिन को सार्थक करना चाहते हैं तो जरूरी है कि नए दिन की शुरुआत ऐसे करें कि आज का दिन, कल की तुलना में नया बनकर हमारे जीवन में कुछ नया जोड़े। नए का अनुभव करना है, तो प्रत्येक घटना को प्रत्यक्ष साक्षात् करना होगा, चाहे वह व्यक्ति हो, फल हो, पत्थर हो, या पत्ता हो। जीवन में प्रतिपल नए के अनुभव के लिए हर क्षण को खुशी में बदलना होगा।

नए से अभिप्राय है— एक नई चेतना, नई ऊर्जा, एक नया भाव, एक नया संकल्प, नया इरादा या कुछ ऐसा नया करने की प्रतिज्ञा, जो अब तक नहीं किया और कुछ ऐसा छोड़ने का भाव कि जिसका बोझ ढोना मुश्किल हो गया हो, जैसे—हर दिन कुछ निश्चित करो कि जिससे नहीं बोले हो उससे बोलो, जिसे नहीं मिले हो उससे मिलो, जिसके घर नहीं गए हो उसके घर जाओ। यह सब करना ही नवीनता का सही अर्थों में स्वागत है। संकल्प से कुछ प्राप्त नहीं होगा। हम हर वर्ष नए साल पर यही संकल्प दोहराते हैं—रोजाना व्यायाम करेंगे, लड़ाई- झगड़ा नहीं करेंगें, तनाव में नहीं रहेंगें। धूम्रपान या हानिकारक पेय पदार्थों का ध्यान रखेंगें। परिवार पर ध्यान देंगें -इत्यादि। लेकिन कुछ ही समय के बाद यह संकल्प टूट जाते हैं और जीवन की गति ऐसे ही चलती रहती है। इसलिए हर दिन को नए साल की तरह मनाइये। जिससे हमें हर पल खुशी का अनुभव होगा।

जब हमारा पूरा जीवन ही संकल्पित हो सकता है तो भविष्य में संकल्प और उत्सव मनाने की खोज बेमानी है। नए का मूल उद्देश्य हमारी जड़ता को तोड़कर उसे गतिशील बनाना ही है। जैसे—नदी की धारा के बीच में आने वाली भीमकाय चट्टानों को देखने पर मन में एक प्रश्न कौंध उठता है, आखिर नदी की धारा किस प्रकार कठोर चट्टानों को चीरते हुए अपना रास्ता बना कर अविरल बहती रहती है। नदी को देखकर लोग यही कहेंगे कि नदी के पानी के बहाव में बेजोड़ ताकत होती है और इससे चट्टानें टूट जाती हैं, किंतु इस प्राकृतिक घटना के इससे भी अधिक तर्कसंगत उतर हैं। पानी का तेज बहाव निरंतर और अथक रूप से चट्टान पर प्रहार करता रहता है और अंततः नदी सफल होती है। इसमें मानव के लिए सफलता का एक दर्शन है, जो नजर अंदाज कर दिया जाता है।

नदी की धारा यह समझाने की कोशिश करती है कि हर नया दिन हमारी एकरसता को भंग करके उनमें एक नया रंग भरता है ताकि हमारी आंतरिक ऊर्जा का अपने पूरे उत्साह से उपयोग कर सकें। दुर्भाग्य से नव वर्ष की तरह ही हर नया दिन महज औपचारिकताओं की भेंट चढ़ा दिया जाता है। नए वर्ष के आगमन पर तो लोग शुभकामनाएं देने, खाना-पीना और मौज- मस्ती करने तक सिमट गए हैं। यदि इस मौज-मस्ती को हम हर दिन अपनी जीवनचर्या का हिस्सा बना लें तो हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता रहेगा। जिससे हमारे जीवन में प्रतिपल खुशी की लहर हिलोरें मारती रहेगी। जिससे हम नदी के पानी की तरह अविरल बहते हुए चले जाएंगे।

समय के साथ आगे बढ़ते हुए हम हर समय खुशी और आनंद की अनुभूति करते हुए, दूखानुभूति को तिलांजलि देते हुए अपनी जीवन-गति को उसी प्रकार सार्थक करेंगे जिस प्रकार सर्प अपनी केचुली छोड़कर एक नया आवरण धारण करता है, उसी तरह हर नए दिन का स्वागत करते हुए अपने जीवन को गति देते हुए हमें भी अपनी जड़ मानसिकता को छोड़कर नवीन विचारों के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमें अपनी रूढ़ीवादी परंपराओं और दूषित मानसिकता जैसे विकारों को त्याग कर जीवन गति को वक्त के अनुसार चलने देने का संकल्प लेना चाहिए और हर दिन को नया समझ कर उसका लुत्फ उठाना चाहिए। कहा भी गया है—जब जागो तभी सवेरा।

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