83. पाएं, भय से मुक्ति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

भय एक ऐसा भाव है, जिससे मनुष्य अपना पूरा जीवन जूझता ही रहता है। वह अपना पूरा जीवन भय के साए में ही गुजार देता है। वह हमेशा भयग्रस्त रहता है। भयभीत वातावरण में सद्गुण भी दुर्गुण बन सकते हैं। सत्प्रवृत्तियां कमजोर पड़ जाती हैं। भय भी विभिन्न प्रकार का होता है। किसी को अपनी धन-संपत्ति को खोने का भय सताता है, तो किसी को अपनी प्रतिष्ठा का।

महाराज भर्तृहरी कहते हैं— भोगों से रोग का भय है, ऊंचे कुल में पत्तन का भय है, धन में राजा का भय है, मान में दीनता का, बल में शत्रु का, रूप में वृद्धावस्था का, शास्त्र में वाद- विवाद का, शरीर में काल का भय है। इस प्रकार संसार की सभी वस्तुएं भयग्रस्त हैं। भय से रहित तो केवल वैराग्य है—— क्योंकि वैराग्य के विपरीत मोह उत्पन्न होता है। मोह से वस्तु, पद या स्थिति से लगाव हो जाता है और यही लगाव संबंधित वस्तु के छिन जाने या नष्ट हो जाने की आशंका से भयग्रस्त रहता है।

भय के भले ही विभिन्न रूप हो सकते हैं, लेकिन उनका मूल भाव एक ही है। अगर देखा जाए तो अधिकांश भय निराधार और खोखले होते हैं। हम अपने जीवन में जिन- जिन वस्तुओं से डरते हैं, उनमें से अधिकांश का कोई ठोस आधार ही नहीं होता। ऐसे में यदि हम उनका कुछ संकल्प के साथ सामना करें तो हम न केवल भय से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को सही दिशा की ओर उन्मुख कर, दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।

भय को मूल रूप से नकारात्मक भाव माना जाता है परंतु कुछ अर्थों में यह सकारात्मक भी होता है। भौतिक वस्तुओं के छिनने का भय, भले ही आपके जीवन को कष्टदायक बनाएगा, परंतु ईश्वर का भय आपको तमाम तरह के पाप करने से बचाने का भी काम करता है। इस भय पर विजय प्राप्त करना ही भय से मुक्ति पाना है और भय से मुक्त होने पर ही आप सत्य के पक्ष में खड़े होने का साहस करते हैं। भय से मुक्ति प्राप्त करने के बाद ही प्रह्लाद अपने पिता हिरण्यकश्यप के समक्ष अडिग बना रहा। पांच वर्ष का बालक ध्रुव भय रहित होने पर ही अकेला वन में जाकर कठोर तप करके परम पद को प्राप्त करने में सफल हुआ। इसी गुण के कारण नचिकेता भी सत्य और नीति के पक्ष में अपने पिता से प्रश्न कर सका। छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह भी, भय से मुक्ति प्राप्त करके ही अपने देश और समाज का उद्धार कर सके।

हमें यह भी भली-भांति ज्ञात होना चाहिए कि मानव जीवन एक महासंग्राम है। हम जैसे ही अभिलाषाएं, आकांक्षाएं लेकर सफलता प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते हैं, वैसे ही गतिरोध, अपमान, ग्लानी, हानि और मृत्यु रूपी भय हमारे सामने आ खड़े होते हैं। इससे साधारण मनुष्य के कदम ठिठक जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप हमारा पूरा जीवन भय के साए में ही निकल जाता है। ऐसे में इस भय से मुक्त होना ही मनुष्य को अपने कर्तव्य पथ पर विपत्तियों के बीच भी विजय दिला सकता है।

किसी भी भय को दूर करने का पहला प्रयास यही है कि— इसे लेकर यह दृढ़ भाव उत्पन्न करना कि इससे मुक्ति पाई जा सकती है। फिर इसके लिए शुद्ध अंत: करण से संकल्पबद्ध होना होगा कि— मैं वीर हूं, अजर-अमर हूं। मैं अपने निश्चय से एक कदम भी पिछे नहीं हटूंगा। वैसे आप भय से भयभीत रहिए, लेकिन उसके समक्ष घुटने कभी न टेकें। यह ध्यान रखना चाहिए कि भय को खत्म करने के लिए सबसे बड़ा काम संकल्प के साथ यह तय करना होगा कि— मैं अब चिंता और भय के वश में नहीं रहना चाहता। मैं अपने मन से चिंता और भय को बाहर निकालना चाहता हूं। अब मैं उन के शिकंजे में नहीं रहना चाहता। मैं इसी समय यह संकल्प करता हूं कि अपने मन के अंदर बैठे हुए भय को बाहर निकाल कर फेंक दूंगा। फिर आप देखना आपके भीतर बैठा हुआ भय, आपको छोड़ने लगेगा और आप बिना भय के हर मुश्किल का सामना आसानी से कर सकेंगे।

4 thoughts on “83. पाएं, भय से मुक्ति”

Leave a Comment

Shopping Cart
%d bloggers like this: