श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नम
एकांतवास का शाब्दिक अर्थ है— अकेले रहना। अपने जीवन में कुछ समय भौतिक जंजाल एवं दुनियादारी से अलग होकर रहना ही एकांतवास है। कोरोना काल में, लॉकडाउन के समय यह शब्द काफी प्रचलन में आया। हमारे में से प्रत्येक एकांत में जाने की बात कर रहा था। हमारे में से बहुत से मनुष्यों के जीवन पर एकांतवास का सकारात्मक प्रभाव पड़ा तो बहुत से मनुष्यों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा। इस संसार में निवास करते हुए कई बार हमारे जीवन में ऐसा समय भी आता है, जब शारीरिक व्याधि और मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाने पर एकांतवास में रहना पड़ता है।
लेकिन वास्तव में देखा जाए तो एकांत जीवन का दुखांत नहीं, बल्कि सुखांत का प्रवेश द्वार है। एकांत में रहकर हम उन वस्तुओं पर भी ध्यान देते हैं, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता है। एकांत सफलता और भविष्य निर्माण की आधारशिला है। एकांत में रहकर ही हम भीड़ से हटकर कोई ऐसा कार्य कर सकते हैं, जिससे हम भीड़ के लिए आदर्श एवं प्रेरणादायक बन सकते हैं। यह मनुष्य की प्रतिभा और सृजन शक्ति को जागृत करता है। अनेकों साहित्यकारों एवं वैज्ञानिकों ने एकांत में रहकर ही संसार को महान रचनाएं एवं सिद्धांत प्रदान किए।
अध्यात्मिक साधना में एकांतवास का विशेष महत्व है। पर्वतों, गुफाओं और वनों के मध्य एकांतवास में रहकर ही मनीषियों, साधु-संतों ने तप-साधना को फलीभूत कर सिद्धियां प्राप्त की। पांचो इंद्रियां जो मनुष्य को भौतिकता की दलदल में धकेल देती हैं, एकांत इन इंद्रियों की तृष्णा को समाप्त कर देता है। असल में एकांत एक आनंद है, जो हमें चिंतन का अवसर प्रदान करता है। परम शांति और जीवन का यथार्थ है। एकांत स्वयं को परखने और गुण- दोष के मूल्यांकन का माध्यम है। एकांत में रहकर ही हमारी वृत्ति अंतर्मुखी हो जाती है। यही अंतर्मुखी वृत्ति साधना के मार्ग को प्रशस्त करती है। साधना के पथ पर चलकर ही मनुष्य उस ईश्वर से साक्षात्कार करने में सफल होता है। संसार की भीड़ में रहते हुए मनुष्य चाहते हुए भी अपनी मानसिक पीड़ा एवं तनाव को कम नहीं कर सकता। संसार के भौतिक विषयों का आकर्षण बड़ा प्रबल होता है। वह मनुष्य की मानसिक शक्तियों की एकाग्रता में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करता है।
एकांतवास में ही हमारी स्वयं से स्वयं की मुलाकात होती है। हम स्वयं को अच्छी तरह से समझ पाते हैं। यह हमारी बिखरी हुई अंतःकरण की शक्तियों को, एकत्रित कर, नई उर्जा प्रदान करके, एकाग्रता प्रदान करता है। एकांतवास मन में उठने वाली तामसिक विचारों की लहरों को शांत कर देता है। चिंतन, प्रतिभा एवं सर्जन का मार्ग एकांतवास में ही खुलता है। हमारे ऋषियों का भी यही संदेश था कि— सर्वप्रथम स्वयं को एकांत में साधो। आत्म निरीक्षण करो। शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बनो। क्योंकि वे जानते थे कि मानसिक और आत्मिक रूप से सक्षम मनुष्य ही इस संसार रूपी सागर को सफलतापूर्वक पार कर सकता है।
Jai Jai shri Shyam sunder meri gindagi mera Shri Shyam Lal
Jai shree shyam ji