श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे सामाजिक प्राणी इस परिवार रूपी संस्था के कारण ही तो माना जाता है। लेकिन आज उसी परिवार के प्रति, आज की पीढ़ी का उपेक्षित व्यवहार बहुत सारी सामाजिक समस्याओं का आधार है। परिवार हमारी संस्कृति की रीढ़ है। इस परिवार रूपी संस्था के कारण ही हम पाश्चात्य दुनिया से बेहतर हैं। परिवार में सभी सदस्यों की महत्ता और योगदान बराबर होता है। भले ही सभी की भूमिका अलग-अलग हो। यह पूरा विश्व भी एक महापरिवार की तरह है। जिसमें अनेक देशों के परिवार समाए हुए हैं।
लेकिन आज के समय में, अपने काम की व्यस्तताओं और अन्य परिस्थितियों के चलते हम में से बहुत सारे लोगों को इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वे घर से जुड़ी स्थितियों की ओर भी पर्याप्त ध्यान दे सकें। व्यवसायिक उन्नति की रेस मे परिवारों के संगठन में गिरावट आती जा रही है। बाहर से संगठित दिखाई देने वाले बहुत से परिवार आंतरिक असामंजस्य से जूझ रहे हैं। आपसी पारिवारिक सामंजस्य की महत्ता का शायद उन्हें भी अंदाजा हो गया होगा। सामाजिक जीवन की सबसे अद्भुत कड़ी होने के बावजूद परिवार के प्रति बढ़ती जा रही उपेक्षा को ठीक से रेखांकित करना होगा। परिवार के प्रति गैर जिम्मेदाराना रुख से कैसे काम चलेगा?
हालांकि, वर्तमान समय में संदेह और अविश्वास ने परिवारों के मूलाधार को नष्ट कर दिया है। वर्तमान समय में परिवारों की स्थिति वैसी नहीं रह गई है, जैसी पुराने समय में हुआ करती थी। अब तो परिवारों के नाम पर सिर्फ दिखावा ही रह गया है। फिर भी परिवार की अवधारणा आज भी उतनी ही सशक्त है, जितनी पहले के समय में हुआ करती थी। आज भी परिवार सुख- समृद्धि और उन्नति का माध्यम हैं।पारिवारिक विचारों ने आज भी समाज को उत्कर्ष एवं सबसे सफल बनाया है। परिवार आज भी पहले की तरह सभ्यता, संस्कृति और विकास का एकमात्र आधार हैं। परिवार की भावना ही एक- दूसरे को जोड़ती है। यही सद्भावना सभी परिवारों का अवलंबन है। चाहे परिवार हो, समाज हो, प्रान्त हो, देश हो या विश्व हो।
मनुष्य दस ज्ञानेंद्रियों एवं कर्मेइंद्रियों से संचालित होता है, तथा मन ग्यारहवीं इंद्री है। इन इंद्रियों का परस्पर सामंजस्य तब तक बना रहता है, जब तक वह स्वस्थ रहता है। ऐसे ही सृष्टि में भी सूरज, चांद, सितारे, पेड़-पौधे, नदियां-झरने सभी जीव- जंतु एक दूसरे के पूरक हैं। शिव जी के परिवार को विरोधों का सामंजस्य माना जाता है। स्वयं शिव के सिर पर जटा में जल और चंद्रमा की अग्नि, गले में विषधर सर्प तो उसके पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर है, जो एक- दूसरे के दुश्मन होते हुए भी एक परिवार की तरह रहते हैं। इसी प्रकार देखा जाए तो शिवजी का वाहन नंदी तथा मां दुर्गा का वाहन शेर, गणेश जी का वाहन चूहा तथा सर्प भी आपस में विरोध छोड़कर परिवार में एकता के साथ रहते हैं। वे एक- दूसरे को किसी प्रकार की भी हानि नहीं पहुंचाते।
यदि अपना परिवार ही सफल न हो तो अन्य परिवारों की बात करना बेमानी होगा। इसलिए हमें सर्वप्रथम अपने परिवार को संगठित करना चाहिए। परिवार का संगठन सभी सदस्यों के परस्पर विचार एवं व्यवहार पर निर्भर करता है। भिन्न-भिन्न विचार और व्यवहार से फूट पड़ना स्वाभाविक है। परंतु मतभेदों को आपस मैं विचार-विमर्श करके सुलझाया जा सकता है। सहयोग और सहचार्य परिवार के दो पैर हैं। सद्कर्म और सद्भाव तो हाथ हैं। इसलिए अगर मानव समाज को संगठित करना है तो समुदाय की पहली इकाई इस परिवार को संरक्षित करना होगा। एकता की भावना को सुदृढ करना होगा। यही सूत्र परिवार को ऊपर उठा सकता है।
Mari gindagi mera Shri Shyam sunder Jai shri Shyam ji
Jai shree shyam ji