87. युवाओं के प्रेरणापुंज— स्वामी विवेकानन्द

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

युवाओं के प्रेरणापुंज, युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, मानव सेवक एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी— स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके प्रेरक व्यक्तित्व का जितना महिमामंडन किया जाए, कम जान पड़ता है। वे युवाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं। मेरे ख्याल से कोई भी युवा ऐसा नहीं होगा, जो उसके विचारों से सहमत नहीं है और उसने, उसके जीवन से कोई न कोई प्रेरणा नहीं ली हो। वे युवा शक्ति को ही देश, समाज की प्रगति का आधार मानते थे। उनका कहना था कि बेहतर समाज के लिए युवा शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का संतुलित उपयोग करना होगा।

युवाओं की ऊर्जा का विवेकपूर्ण और उचित दिशा मैं सृजनात्मक प्रयोग करने के उद्देश्य से विवेकानंद ने युवाओं को आह्वान करते हुए कहा था—तुम अपनी ऊर्जा को संचित करो और उसे उस दिशा में प्रवाहित करो, जिससे सिर्फ तुम्हारा ही नहीं समाज, देश, और विश्व का भला हो सके, मानवता को ऊपर उठाया जा सके। युवा स्वयं अपनी उर्जा को पहचाने, अपनी शक्ति को जाने और आश्वस्त हो कि उनका कोई भी कर्म सिर्फ आत्मकल्याण के लिए न किया गया हो, बल्कि उसमें देश, समाज एवं विश्व कल्याण की भावना छिपी हुई हो। हमारे परिवार का ही नहीं, देश, समाज सबका भला हो। लेकिन ये तभी संभव है, जब हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानें। “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना को आत्मसात् करे। स्वयं को एक व्यक्ति की बजाय, समाज की इकाई भी मानें।

लेकिन आज के दौर में एक विकट समस्या है, जिसनें हमारे देश के युवाओं को बेचैन कर रखा है, वह है जल्द से जल्द और हर हाल में सफलता पा लेना। सफलता और असफलता के द्वंद में आज हमारे देश के लाखों करोड़ों युवा तनाव में जी रहे हैं। कुछ निराश हैं तो कुछ आत्महत्या कर लेते हैं। द्वंद में उलझे ऐसे युवाओं से स्वामी जी ने कहा था— हर स्थिति अपने आप में सफल है, उसे समझने की जरूरत है, पहचानने की जरूरत है। वास्तव में असफलताएं, सफलता के मार्ग की अनिवार्य सीढी है। कोई भी व्यक्ति जो सफलता चाहता है, उसे असफलता से होकर भी गुजरना होगा। सफलता की अनिवार्य शर्त ही है असफल होना। थॉमस अल्वा एडीसन ने बिजली के बल्ब के आविष्कार के लिए 1000 से भी अधिक असफलताओं का स्वाद चखा। इसे दो तरीकों से देख सकते हैं। एक— एडीसन बार-बार नाकाम हो रहे थे और दूसरा—उनकी हर असफलता उन्हें सफलता के करीब लेकर जा रही थी। उन्होंने युवाओं को लक्ष्य निर्धारण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था—लक्ष्य के अभाव में हमारी 99% शक्तियां इधर-उधर बिखर कर नष्ट हो जाती हैं। लक्ष्यहीन व्यक्ति बिना पतवार के, लहरों में भटकती नाव के समान होता है। वास्तव में लक्ष्य प्राप्ति से पहले रुकना सड़ांध है, निराशा है और अंत में मृत्यु है। एक प्रवाह बाधित नदी मलिन होकर अंत में मृत्यु को प्राप्त होती है। ठीक उसी तरह एक व्यक्ति ठहरकर अपनी समस्त ऊर्जा का विनाश कर दीन-हीन और असहाय हो जाता है।

हमारे भीतर की आत्मिक ऊर्जा और नैतिक मूल्य हमारे भीतर बहने वाली जीवन नदी की धाराओं का बहाव कायम रखते हैं और हमें हमारे लक्ष्य को साधने में सहायता करते हैं। हर व्यक्ति की महान कामयाबी के पीछे हजारों नाकामियां हों, मगर व्यक्ति की महानता, श्रेष्ठता और उसकी पहचान उसकी कामयाबी से ही होती है। हम नाकामियों को जितनी सहजता से लेते हैं, कामयाबी उतनी ही जल्दी हमारे पास आती है। स्वामी जी असफलताओं को जीवन का सौंदर्य कहते हैं। वह कहते हैं— जीवन के संग्राम में जब योद्धा, युद्ध करने उतरते हैं, तो असफलताओं की धूल, मिट्टी उड़ना स्वाभाविक है। दुनिया को गौर से देखें तो पाएंगे कि महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता, विफलता के बाद हासिल की है। जब बात लक्ष्य के प्रति निरंतरता से कर्म करने की आती है, तो अधिकतर यह देखा जाता है कि युवा मंजिल मिलने से पहले ही थक जाते हैं और ठहर कर अपनी ऊर्जा नष्ट कर लेते हैं। ऐसे युवाओं से स्वामी जी आह्वान करते हैं कि— उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।

स्वामी जी ईश्वर भक्त होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्र प्रेमी भी थे। उनका मानना था कि राष्ट्र कुछ और नहीं बल्कि हमारे देश के युवाओं द्वारा देखा हुआ एक सुखद स्वप्न है, अहसास है। कोई भी राष्ट्र वहां के युवाओं द्वारा ही निर्मित होता है और उन्हीं के प्रयास से आगे बढ़ता है। अगर किसी राष्ट्र को मजबूत करना हो तो सबसे पहले वहां के युवाओं को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्म रूप से दृढ करना होगा। इस बात में संदेह नहीं कि देश के युवा अगर अपने भीतर की चेतना को जागृत कर लें तो यहां की सारी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। आज भी देश के कुछ युवा अपनी इसी चेतना से प्रेरित होकर देश,समाज एवं मनुष्यता की नि:स्वार्थ भाव से सेवा में लगे हुए हैं। यह चेतना उनके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और उन्हें प्रेरणा देती है। जरूरत है इस चेतना को अधिक से अधिक युवाओं तक प्रसारित करने की। इस बात में संदेह नहीं है कि हर युवा अपनी जिम्मेदारी को अगर पूरी तरह समझ ले और उसी के अनुरूप अपने कार्यों को अंजाम दें, तो जैसे देश का निर्माण होगा, वह स्वामी जी के सपनों का भारत होगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि यदि हम स्वामी जी के आह्वान का अनुगमन करें, युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग करें, तो विश्व गुरु ही नहीं, अपितु नए विश्व का निर्माण करने वाले विश्वकर्मा के रूप में भी जाने जाएंगे।

किसी शायर ने कहा है—युवाओं के कंधों पर, युग की कहानी चलती है। इतिहास उधर मूड़ जाता है, जिस पर जवानी चलती है। हम इन भावों को साकार करते हुए अंधेरे को कोसने की बजाय “अप्प दीपो भव:” की अवधारणा के आधार पर दीपक जला देने की परंपरा का शुभारंभ करना होगा। युवावस्था महासागर की उताल तरंगों को फांदकर अपने उदात्त लक्ष्य का वरण कर सकती है, तो नकारात्मक ऊर्जा से संचालित और दिशाहीन होने पर अद्य:पतन को भी प्राप्त हो सकती है। उसमें ऊर्जा का अनंत स्रोत है, इसलिए उसका संयमन व उचित दिशा में संस्कार युक्त प्रवाह बहुत आवश्यक है।चार जुलाई उन्नीस सौ दो (4 जुलाई 1902) को स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए, पर अपने पीछे वह असंख्य युवाओं के हृदय में उर्जा पुंज प्रज्वलित कर गए, जो कर्मण्यता को निरंतर प्रोत्साहित करती रहेगी। स्वामी विवेकानंद सदैव प्रासंगिक रहेंगे।

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