91. सद्- संकल्प

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

जिस प्रकार अभिमान करना पाप है, बंधन है। उसी प्रकार स्वयं को दीन-हीन समझना भी पाप है, बंधन है। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों के लिए अपमानजनक और हीनतासूचक भाषा का उपयोग करते रहते हैं। यह सही नहीं है। ऐसे में उनके कोमल हृदय में एक टीस पैदा होती है। उनके मस्तिष्क में हीनता के संस्कार अंकित हो जाते हैं। जिनका उनके भविष्य पर बहुत ही घातक प्रभाव पड़ता है। बच्चों का मार्गदर्शन जरूरी है, पर उसके साथ हीनता की भावना को प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन प्रारंभ में अन्य विद्यार्थियों की तुलना में मंदबुद्धि समझे जाते थे। वे शिक्षकों के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते थे। उनके सहपाठी उनकी पीठ पर मूर्ख, बुद्धू जैसे उपहास उड़ाने वाले शब्द लिख देते थे, पर आइंस्टीन हीन भावना के शिकार नहीं हुए। जैसा की सर्वविदित है कि वे शताब्दी के महान वैज्ञानिक के रूप में विश्व में प्रसिद्ध हुए। वैसे व्यक्ति और परिस्थिति का गहरा संबंध होता है। जिसे जीवन में अनुकूल परिस्थितियां प्राप्त होती हैं, वह सहजता से विकास कर जाता है। प्रतिकूल परिवेश में सफलता की तरफ बढ़ना कठिन होता है।

परिस्थितियों के निर्माता हम स्वयं हैं, क्योंकि हम आज में नहीं रहते। हम अपने चारों तरफ ऐसी परिस्थितियों का निर्माण कर लेते हैं। जिससे नाना प्रकार की मानसिक और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। हम भूल जाते हैं कि हम आज में जीवित हैं। इस समय में जीवित हैं। हम न एक सेकेंड आगे जा सकते हैं और न एक सेकेंड पीछे जा सकते हैं। यह है हमारा जीवन। इसी क्षण में हमें सद्- संकल्पों की राह पर चलना है। इसी क्षण में है— अटूट शांति। जो आपके बाहर नहीं बल्कि आपके ही अंदर मिलेगी।

मनुष्य की आदत है कि वह कुछ कार्यों को तुरंत कर लेता है और कुछ को अगले दिन पर छोड़ देता है। प्रश्न यह उठता है कि वह किस प्रकार के कार्यों को तुरंत कर लेता है और किन्हें भविष्य पर छोड़ देता है। ज्यादातर यही देखा गया है कि वही कार्य कल पर छोड़े गए हैं, जो बाहरी रूप से देखने पर इतने महत्वपूर्ण नहीं लगते। मनुष्य अपनी सफलता का मूल्यांकन भौतिक उपलब्धियों के आधार पर करता है। लेकिन उसने कभी यह भी सोचा है कि जिस जीवन को वह भौतिक सुखों को पाने की लालसा में दिन-रात लगा रहा है, वह जीवन उसे क्यों मिला है।

जो वस्तु हमारे पास नहीं है उसे पाने की लालसा में लालायित रहते हुए अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर देते हैं। क्यों नहीं हम अपने सद्-संकल्पों से उस वस्तु का सदुपयोग करें, जो हमारे पास पहले से ही मौजूद है। आपकी सांस, जो आपके अंदर आती और जाती है। इस सांस पर कोई ध्यान नहीं देता। जब हमें सांस लेने में दिक्कत होती है तब हमारा ध्यान जाता है। जहां पानी की कमी नहीं होती, वहां पानी को लोग बर्बाद भी करते हैं, पर जहां पानी की कमी होती है, वहां पानी को लोग व्यर्थ बहाने नहीं देते। हम अपनी अनमोल सांस पर ध्यान नहीं देते हैं। हम अपने उसी जीवन को सुखमय मानते हैं जिसमें हमें ऐसो- आराम का सारा सामान बिना परिश्रम के प्राप्त हो जाता है।

लेकिन असली सुख तो वह है जब हम इस बहुमूल्य जीवन को समझ लेंगे। जिसकी चर्चा सारे महापुरुष अपने जीवन भर करते आए हैं। जिस दिन यह बात समझ जाएंगे, उस दिन यह जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा। उस दिन आप अपना हृदयरूपी डिब्बा उस नल के नीचे रख देंगे, जो पानी व्यर्थ बह रहा था वह बच जाएगा। जिंदगी संवर जाएगी। वह वस्तु प्राप्त हो जाएगी जिससे आप अपने जीवन को परिपूर्ण कर सकें। हर व्यक्ति का जीवन परिवर्तनशील है। समय-समय पर कठिनाइयों की दुर्गम घाटियां भी पार करनी होती है। जिनका व्यक्तित्व परिस्थितिवादी हो जाता है, वे उस स्थिति में अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो सकते। विश्व के सभी महापुरुष अपने आत्मबल और मनोबल के आधार पर सफलता के शिखर पर आरूढ़ हुए हैं। हमारे आत्मबल और पुरुषार्थ में ही सफलता और सिद्धि का निवास होता है, बाहर के उपकरणों और साधनों से नहीं। हमारे जीवन का संकल्प होना चाहिए- कि हम आनंद की खोज हर आने वाले क्षण में करें। अपनी उर्जा को भविष्य के किसी लक्ष्य, वस्तु की प्राप्ति के लिए व्यय न करें। हमें आनंद को वस्तु या लक्ष्य में खोजने के बदले इसी क्षण खोजना चाहिए।

हमारा सारा ध्यान इस क्षण के आनंद और उसका संपूर्णता में बोध पर होना चाहिए। अभी हमारे पास समय है कि हम कल को संवारने की बजाय आज पर ध्यान दें। आज के दिन अपने हृदय को शांति और आनंद से भर लें। कल आए या न आए, इसकी परवाह न करें। यदि कल आएगा तो उसका भी स्वागत आज की तरह ही करें, ताकि आपके हृदय का प्याला दिन- प्रतिदिन भरता चला जाए और आपका जीवन सफल हो जाए। इस क्षण के महत्व को समझें और अपने जीवन को सुखमय बनाएं। जीवन के हर क्षण से पूरा रस निचोड़ लेना हर क्षण को पूरी जिजीविषा से जी लेना, हर क्षण में अपने प्राण उड़ेल देना-यही है जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण। यही है जीवन का सद्- संकल्प। वास्तव में यही है समस्याओं से मुक्ति का मार्ग।।

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