94. कर्म फल

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

प्रत्येक मनुष्य की यह शिकायत रहती है कि— हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? हमने ऐसे कौन से बुरे कर्म कर रखे हैं, जो हमारे साथ ही हमेशा गलत होता है। श्रीमद्भागवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि— जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल प्राप्त होगा अर्थात् अच्छा कर्म करने वाले को अच्छा फल और बुरा कर्म करने वाले को बुरा फल मिलता है। लेकिन कोई भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि मैंने कुछ बुरा किया है, वह तो हमेशा यही कहता रहता है कि मैं तो बहुत अच्छा हूं, मैंने तो बहुत अच्छे कर्म किए हैं। अक्सर क्या होता है कि हम स्वयं ही कर्म करते हैं और स्वयं ही जज बनकर उनका डिसीजन दे देते हैं। ऐसे में हम स्वयं ही वकील हैं और स्वयं ही जज हैं। हमें जो ठीक लगता है, वही ठीक है, वरना सब गलत है।

लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हमारा कार्य तो सिर्फ कर्म करना है। हमने अच्छा किया है या बुरा किया है, इसका डिसीजन तो भगवान स्वयं लेंगें। अगर हमारे मन के मुताबिक हो रहा है तो भगवान हैं और वे अच्छा कर रहे हैं अगर हमारे मन के मुताबिक नहीं होता तो भगवान ने हमारे साथ नाइंसाफी की है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम जो भी कर्म करेंगे चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो, उसका फल हमें अकेले ही भुगतना पड़ेगा। जब हम अपने परिवार की इच्छाओं को, लालसाओं को पूरा करने के लिए, चोरी करते हैं, रिश्वत लेते हैं या कोई और इल्लीगल कार्य करते हैैं तो उन कर्मों का फल हमें स्वयं ही मिलेगा न की परिवार के किसी और सदस्य को। क्योंकि आपने तो अपना फर्ज पूरा करने के लिए इल्लीगल कार्य किए हैं, लेकिन जिनके लिए किए हैं, उनके प्रति तो आपकी जिम्मेदारी बनती हैं। ऐसा नहीं है की उनको इन कर्मों का फल नहीं मिलेगा उनको इन कर्मों का फल अवश्य मिलेगा लेकिन आंशिक रूप में इसकी भरपाई करनी पड़ेगी।

अक्सर देखा होगा कि जो गलत कार्य करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं और उनकी जिम्मेदारी उठाते हैं, उनके परिवार का क्या हश्र होता है। जैसे— जब हम गलत खानपान करते हैं या गलत जीवनशैली अपनाते हैं तो इसके कारण जब हम बीमार हो जाते हैं और हमारा शरीर परेशानी देने लगता है तो इसका दुख, दर्द हमें स्वयं ही भोगना पड़ता है। कोई सगा- संबंधी, रिश्तेदार, दोस्त इस शारीरिक दर्द को नहीं बांट सकता। बेशक वे बीमारी के इलाज के लिए कुछ मदद कर सकते हैं। उनको थोड़ी बहुत परेशानी या शारीरिक कष्ट भी हो सकता है। लेकिन बीमारी की वजह से जो पीड़ा, जो तकलीफ हमें स्वयं को होती है, उतनी उनको नहीं होती। सुदामा, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे। लेकिन एक बार जब लकड़ियां काटने जंगल में जाते समय गुरु माता ने उनको चने खाने के लिए दिए और कहा की भूख लगे तब तुम दोनों मिल बांट कर खा लेना, तब सुदामा ने श्री कृष्ण के हिस्से के चने अकेले खाने का बुरा कर्म किया था। उस कर्म का फल उन्हें अत्यंत गरीबी के रूप में भोगना पड़ा था।

श्रीकृष्ण भी समय से पहले उनकी दयनीय दशा को दूर नहीं कर पाए थे। इसी तरह दशरथ एक बहुत ही दयालु राजा हुए। लेकिन उनसे अनजाने में एक गलत कर्म हो गया। उनके हाथों श्रवण कुमार की हत्या हो गई, जब इसका पता श्रवण कुमार के माता- पिता को चला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दे दिया कि— जिस तरह हम पुत्र वियोग में अपना दम तोड़ रहे हैं, वैसा ही एक दिन तुम्हारे साथ भी होगा और हम सब जानते भी हैं कि उसके बाद राजा दशरथ ने किस प्रकार से पुत्र वियोग में अपना दम तोड़ दिया था। ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं कि स्वयं भगवान भी उनकी सहायता तब तक नहीं कर पाए, जब तक उनके कर्मों का हिसाब- किताब पूरा नहीं हुआ।अक्सर कई बार ऐसा होता है कि हम न चाहते हुए भी किसी के कहने पर या अपनों की खुशी के लिए कोई ऐसा कर्म कर जाते हैं, जिसको करने में हमारी अंतरात्मा हमारा साथ नहीं देती तो उन बुरे कर्मों का फल भी हमें अकेले ही भोगना पड़ता है।

जिस प्रकार कोई पैदा होने या अपनी मृत्यु के समय को नहीं बांट सकता, उसी तरह हम अच्छे बुरे कर्मों को भी नहीं बांट सकते। इसलिए हमें वही कर्म करने चाहिए, जिसमें हमारी अंतरात्मा हमारे साथ हो। क्योंकि अंदर से निकली हुई आवाज के अनुसार हम जो कर्म करते हैं वे सदैव अच्छे होते हैं और उनको करने में हमें खुशी मिलती है। इसलिए हमारे सुख और दुख के साथी हमारे कर्म ही हैं। हमें हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि पाप कर्म से दुख और शुभ कर्म से सुख की प्राप्ति होती है।

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