97. शांति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

महावीर स्वामी ने कहा— हम शांति से जिएं और दूसरों को भी शांति से जीनें दें।
हम सब के जीवन का सिद्धांत भी यही होना चाहिए। अगर देखा जाए तो यही विश्व कल्याण का मंत्र है। विश्व का कल्याण शांति के मार्ग पर चल कर ही संभव हो सकता है। क्योंकि जहां शांति है वहां राग- द्वेष, असहिष्णुता, शत्रुता, दुख ऐसा कुछ भी नहीं होता। जहां शांति है, वहां संघर्ष कभी नहीं होते। तमाम महापुरुषों ने शांति की खोज में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय लगा दिया। उन्होंने शांति के लिए जीवन के सारे सुख साधन और वैभव को त्याग दिया। क्योंकि शांति में जो सुख है उसके सामने समस्त महलों का सुख भी धूल के समान है।

महात्मा बुद्ध ने शांति की खोज में अपना सारा जीवन लगा दिया। उनके अमृतमयी उपदेशों में कहा गया है कि— हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाए। संवाद वही उत्तम होता है जो शांति का मार्ग प्रशस्त करे, जो शांति तक पहुंचाए। शांति से हमें असीम ऊर्जा की प्राप्ति होती है। यह हमारे अंतः करण में सकारात्मक भाव का स्त्रोत प्रस्फुटित करती है। जिससे हमारे विचार पावन हो जाते हैं। शांति के द्वारा हमारे सकारात्मक विचार पोषित होते हैं। हमारा शांत व्यक्तित्व ही हमें दया और प्रेम के मार्ग की ओर उन्मुख करता है। शांति से ही संपन्नता का आगमन होता है।

हम शांत कैसे रह सकते हैं? जिसे देखो वही तनाव में रहता है। क्रोध और ईर्ष्या की अग्नि में जलता रहता है। ऐसे में हमें बिल्ली से सीखना चाहिए। बिल्ली को देखिए वह कितनी देर तक शांत और चुपचाप बैठी रहती है। खूब आराम करती है, ज्यादा तनाव नहीं लेती। आप भी बिल्ली की तरह चुपचाप बैठ कर देखिए। अपने किसी भी कार्य में जल्दबाजी मत करिये। संयम बरतेगें तो आप जरूर धीरे चलने का अर्थ समझ जाएंगे। बिल्ली शिकार पकड़ने के लिए चौकस ही नहीं रहती। नए-नए उपाय भी सोचती रहती है। उसके लिए जोखिम लेती है। आपको भी जब अवसर मिले, उस अवसर का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। वह नींद खूब लेती है आपको भी अपने स्लीप पैर्टन के अनुसार सोना चाहिए। सावधान और चौकन्ना रहना भी बिल्ली से सीख सकते हैं। आपने बिल्ली को गुस्सा करते हुए भी खूब देखा होगा, पर वह तुरंत शांत भी हो जाती है। इसलिए गुस्सा आए तो उसे नियंत्रित करने की कोशिश करें।

आपने अक्सर सुना होगा कि सभी शांति की तलाश में हिमालय पर्वत पर जाने की बात करते रहते हैं। हिमालय की महानता उसकी उन्नत पर्वत श्रृंखलाएं नहीं, उसकी रजत सदृश आभा नहीं, उसका विस्तार नहीं, उसका विराट स्वरूप नहीं बल्कि हिमालय की महानता उसका शांत स्वरूप है। उसकी विनम्रता है। तभी तो सभी हिमालय पर जाकर शांति प्राप्त करने की बात करते हैं। वह शांति जिसकी प्राप्ति के लिए सभी भटकते रहते हैं। शांति की खोज निश्चित ही देवत्व की खोज है। ईश्वर को शांति प्रिय है। जिसे शांतिप्रिय है वह ईश्वर का कृपा पात्र है। शांति का भाव प्रेम और बंधुत्व को जन्म देता है।

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