श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
मनीषी कहते हैं कि— “मनसा वाचा कर्मणा” यानी मन, वचन और कर्म से सत्य बोलना चाहिए। जो विचार मन में हों, वही वाणी में भी होनी चाहिए और उसी के अनुरूप ही मनुष्य का व्यवहार होना चाहिए।
सत्य अनुपम मानवीय गुण है। मनुष्य के जीवन में सत्य बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि हमारी जीवन रूपी इमारत सत्य रुपी नींव पर खड़ी होगी, तभी हम स्थाई और सफलता के शिखर स्थापित करने में सफल होंगे।
सत्य की पहुंच केवल मनुष्य द्वारा सत्य वचन बोले जाने या रोजमर्रा की जीवन-चर्या में लोगों के प्रश्नों के पूर्ण सत्यता के साथ उत्तर देने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका क्षेत्र तो मन के भीतर की गहराइयों में वहां तक स्थापित होना चाहिए, जहां तक स्वयं की सत्यता की शक्ति से मन के भीतर के द्वार खुल जाएं। इन द्वारों के अंदर जब सत्य की शक्ति की किरणें पहुंचती हैं तब ये भीतर की दुनिया को प्रकाश में जगमगाकर व्यक्ति को सत्य की पूर्णता का अहसास करा देती हैं। उस समय मस्तिष्क में उभर चुके तमाम नकारात्मक विचार जो हमें असत्य बोलने पर विवश करते हैं, अपने आप विसर्जित हो जाते हैं। यह विसर्जन ही हमें अद्भुत शांति की ओर ले जाता है। दरअसल मस्तिष्क में उभरते हुए तमाम तरह के निराशावादी विचार हमारे अशांत चित की स्वाभाविक उपज है। हमारा चित्त जैसे- जैसे शांत होता जाता है, वैसे- वैसे नकारात्मक विचारों का उभरना अपने आप ही बंद हो जाता है। यह व्यक्ति की आत्मिक अवस्था होती है, जो उसे सत्य की शक्ति के बारे में अवगत करवाती है और ज्ञान प्राप्ति की ओर अग्रसर करती है।
सत्य केवल शब्दों की सत्यता ही नहीं बल्कि विचारों की सत्यता भी है और हमारी अवधारणा का सापेक्षिक सत्य ही नहीं, अपितु निरपेक्ष भी है, जो ईश्वर ही है। मनीषी सत्य को निरपेक्ष सत्य के रूप में ग्रहण करते हैं। सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची मानते हैं। इसी सत्य के प्रति निष्ठा है। हमारी समस्त गतिविधियां इसी सत्य पर ही केंद्रित होनी चाहिए। सत्य ही हमारे जीवन का प्राण तत्व होना चाहिए, क्योंकि सत्य के बिना व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। असत्य के साथ मनुष्य को क्षणिक सफलता अवश्य मिल सकती है, परंतु आंतरिक शांति एवं संतुष्टि कभी प्राप्त नहीं होगी।
मन, वचन और कर्म से अलग रहने वाले मनुष्य पूर्ण रूप से सत्य का आचरण नहीं कर सकते। सत्य कड़वा होता है। इसलिए सत्य बोलने वाले मनुष्य किसी को भी अच्छे नहीं लगते, फिर भी उनकी उपस्थिति अत्यंत आवश्यक है क्योंकि सत्य के अभाव में आज मनुष्य पशुवत् आचरण करने लगा है। मनुष्य को आधुनिकता के अंधानुकरण ने आज मानव से पशु बना दिया है।
Jai shree shyam
Jai shree shyam 🙏