श्री गणेशाय नम
श्री श्याम देवाय नमः
अध्यात्म आंतरिक क्रांति है। यह इस बात की उद् घोषणा है कि मैं भीतर अपने को बदलूंगा। इस धरा पर जन्म लेने के पश्चात् मनुष्य अपने जीवन को सफल करना चाहता है लेकिन सफलता की कोई परिभाषा नहीं है। वह स्वयं नहीं समझ पाता कि उसका जीवन कैसा हो, जिसे वह सफल जीवन कह सके। कैसा जीवन आनंदमय होता है, सफल होता है, इसके संबंध में अनेक मत हैं।
कोई पैसे को ज्यादा अहमियत देता है तो कोई समाज में अपना रुतबा कायम कर, जीवन को सफल समझता है। कहने से अभिप्राय यही है कि प्रत्येक मनुष्य का सफलता के प्रति अपना- अपना नजरिया है। कोई भी यह नहीं कह सकता कि जीवन के संबंध में उसका मत इससे अच्छा और पूर्ण है। प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन अपने तरीके से जीता है। किसी का जीवन खुशहाल और आनंदमय होता है तो किसी का दुखदाई। कोई अत्यधिक अनुशासन और तप वाले जीवन को अच्छा कहता है तो कोई खाओ, पियो, मौज उड़ाओ वाली प्रवृत्ति वाले जीवन को।
अध्यात्म जीवन को संतुलित करता है। ऐसे जीवन का निर्माण करता है जो स्वयं के लिए सर्वोत्तम होता है और दूसरों के लिए प्रेरक। जीवन रूपी सितार से निकले मधुर स्वर स्वयं को प्रिय लगते हैं और दूसरों को आकर्षित करते हैं। ऐसे जीवन के प्रति लोगों में आकर्षण होता है। जीवन रूपी पथ के हम यात्री हैं। हमारी यात्रा तभी सफल और मंजिल तक पहुंचने में कामयाब होगी, जब हम अध्यात्म का रास्ता अपनाते हैंं।
अध्यात्म के रास्ते पर चलकर हम अपनी मन: स्थिति को शांत, शीतल, संतुलित और सुखमय बना देते हैं। तब कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति हमें दुखी, परेशान, क्रोधित नहीं कर सकती। हमारा शांत और खुशनुमा चेहरा हमारे बिगड़े हुए कार्यों में सुधार लाता है। अध्यात्म के रास्ते पर चलने के पश्चात् हमारे मन से व्यर्थ और नकारात्मक विचारों का प्रभाव बंद हो जाता है और आंतरिक बल, क्षमता व प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले सकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं। इस ध्यान में ईश्वरीय ज्ञान का मनन- चिंतन एवं आत्मा- परमात्मा की सुखद स्मृति में रहकर कर्म करने से हर कार्य में कुशलता प्राप्त होती है।
अध्यात्म के मार्ग पर सच्चे साधकों के लिए जागरूकता सबसे आवश्यक है। इसलिए उन्हें गुरु का चयन बुद्धि और विवेक से करना चाहिए। साधक को सर्वप्रथम चेतना के स्तर पर स्वयं को जागृत कर अंतर्मन को ऊर्जावान करना होगा। धार्मिक ग्रंथों के श्लोकों और चौपाइयों के माध्यम से अच्छी बातें करने वाला ही अच्छा गुरु नहीं होता बल्कि जो उन्हें अपने जीवन में उतारकर आदर्श प्रस्तुत करता है, वही गुरु है।
अध्यात्म की राह पर चलने से पहले गुरु के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए। अध्यात्म तथा गुरु का चुनाव अंधभक्ति से नहीं बल्कि अपने सचेत बुद्धि विवेक से करना चाहिए। अच्छा कर्म ही अध्यात्म की ओर ले जाता है। निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म व्यक्ति को अपने लक्ष्य अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति करा सकता है। सत्य, अहिंसा, करुणा, दया, परोपकार के मार्ग पर चलकर ही ईश्वर से साक्षात्कार का अनुभव प्राप्त किया जा सकता है। संपूर्ण ब्रह्मांड नियमों से संचालित है। नियमों का पालन करना आवश्यक है। हमें स्वयं व्यवस्थित रहकर अपने कर्म करने चाहिए। यही आध्यात्मिक जीवन है। जबरन भूखे- प्यासे रहना और शरीर को जर्जर करना आध्यात्मिक जीवन नहीं है।
Jai Shree Shyam Sundar Maharaj Ji
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