06. मेरे साथ ही ऐसा क्यों

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

जब हम कोई काम करते हैं तो काम अगर हमारे मन के अनुसार हो जाता है, तो हमें खुशी होती है और हम सोचने लगते हैं कि यह तो हमारी किस्मत में लिखा हुआ था, इसलिए होना ही था। तब हम उस परमपिता परमात्मा का शुक्रिया भी नहीं करते ।हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जब हमारी किस्मत में यह लिखा हुआ था तो इसमें भगवान ने क्या किया ॽयह तो हमारे अच्छे कर्मों का फल है। अगर कोई भगवान को नहीं मानता तो वह सारा क्रेडिट अपनी मेहनत को देता है ।लेकिन जब वह काम हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होता तो हम भगवान को कोसने लग जाते हैं ।फिर वह चाहे भगवान को माने या ना माने, तब तो भगवान उनका सबसे बडा दुश्मन हो जाता है। तब वे मानो सारी दुनिया में चिल्ला -चिल्ला कर कहने लगेंगे कि हमारी किस्मत ही खराब है ।भगवान ने हमारी किस्मत ही खराब लिखी है ।यह सब भूल जाते हैं कि यह भी हमारे कर्मों का ही फल है। यह भी तो हमारी किस्मत में ही लिखा हुआ है ।यह मानने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता।

मैं आपको एक सत्य घटना के बारे में बताना चाहती हूं। तीन ग्रैंड स्लैम पदक जीतने वाले अमेरिकी टेनिस प्लेयर आर्थरऎश जूनियर (10 जुलाई 1943 – 6 फरवरी 1993) की 1983 में हृदय की सर्जरी हुई थी ।इस सर्जरी के दौरान उन्हें गलती से एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था। एड्स की चपेट में आकर वे मृत्यु शैया पर पड़े थे ।दुनिया भर से उनके प्रशंसक पत्र लिख रहे थे।ज्यादातर लोग लिख रहे थे कि भगवान ने उनके साथ ही ऐसा क्यों किया। हर कोई उनकी राय जानने को बेकरार था, कि अब क्या जवाब देंगे। क्या वह भी भगवान को या अपनी किस्मत को कोसेगें?

लेकिन उसका जवाब सुनकर हर कोई हैरान था ।उन्होंने लिखा पूरी दुनिया में 5 करोड़ बच्चे टेनिस खेलते हैं। 50 लाख बच्चे टेनिस सीख पाते हैं ,जिनमें से 5लाख बच्चे प्रोफेशनल टेनिस खेल पाते हैं। उनमें से 50 हजार टीम में जगह पाते हैं, जबकि 500 ही ग्रैंड स्लैम में भाग लेते हैं। इन 500 में से 50 विंबलडन तक पहुंचते हैं। 4 सेमी फाइनल खेलते हैं। सिर्फ दो को फाइनल खेलने का मौका मिलता है। जब मैंने विंबलडन का पदक अपने हाथों में थामा तब मैंने भगवान से ये नहीं पूछा कि मुझे ही पदक क्यों मिला। आज इस असहाय दर्द में भी मैं भगवान से नहीं पूछूंगा कि मुझे ही यह दर्द क्यों मिला।

इस सत्य घटना से हमें बहुत बड़ी सीख मिलती है। हमें भी अपनी जिंदगी में कभी भी निराश नहीं होना चाहिए ।अगर कोई काम हमारी इच्छा से नहीं भी हो रहा तो उसे भगवान की इच्छा मानकर अपना कर्म करना चाहिए। हमें निराश होकर अपने कर्म करने के सिद्धांत से पीछे नहीं हटना चाहिए ,बल्कि कर्म करते रहना चाहिए। हमें फल मिले या नहीं। स्वार्थ से परिपूर्ण होकर अगर कोई कर्म करते हैं तो हम अवश्य निष्फल होते हैं, लेकिन जब निस्वार्थ होकर कोई काम करते हैं, तो भगवान उसका फल अवश्य देते हैं।

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