103. यादों के झरोखे

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

यादें मनुष्य के जीवन का अहम् हिस्सा हैं। जैसे-जैसे जीवन रूपी यात्रा चलती है, वैसे- वैसे यादों का कारवां भी अनवरत् चलता रहता है। यादों का यह कारवां फलता-फूलता जाता है। यादें हमसे परछाई की तरह चिपकी रहती हैं। मनुष्य का अतीत यादों से भरा हुआ होता है। कुछ यादें दुख, तकलीफ एवं विषम परिस्थितियों के अवसाद से घिरी रहती हैं, तो कुछ यादें हंसी, खुशी और रोमांच से भर देने वाली होती हैं। मनुष्य का दिमाग प्रायः दुखभरी यादों को ज्यादा ग्रहण करता है। अगर उसके जीवन में कोई दुखद घटना घटी हो तो वे यादें उसके मस्तिष्क में बसेरा डाल लेती हैं। यादें अच्छी हो या बुरी, दोनों ही जिंदगी की सच्चाई हैं। अच्छी यादें हमें जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला देती हैं तो बुरी यादें हमें जिंदगी की आगामी कठिनाइयों से लड़ने का अनुभव प्रदान करती हैं।

दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं – एक तो वे जो अपनी यादों के सहारे पूरी जिंदगी गुजार देते हैं।
दूसरे वे जो यादों से सबक लेकर अपनी जिंदगी संवार देते हैं।
तीसरे वे जो बुरी यादों को याद करके खुद का वर्तमान और भविष्य दोनों ही बर्बाद कर देते हैं।

आज के दौर में ज्यादातर मनुष्य तीसरी टाइप के हैं। वे हमेशा तनाव में रहते हैं। इस तनाव की मूल वजह भी यही है कि मनुष्य अच्छी यादों की बजाय बुरी यादों में ज़्यादा डूबा रहता है। वह हमेशा नकारात्मक विचारों में खोया रहता है। यही नकारात्मकता उसकी जीवनचर्या का हिस्सा बन जाती है, जिससे उसका वर्तमान के प्रति मोहभंग हो जाता है। वह दूसरों से अपनी तुलना करने लगता है। जिससे वह जीवन रूपी यात्रा में पिछड़ जाता है। इस हताशा में मनुष्य मादक एवं नशीले पदार्थों के चंगुल में फंसकर अपना अनर्थ करने लग जाता है।

हमें बुरी यादों को भुनाने की बजाय भुलाने का प्रयास करना चाहिए। जिंदगी उत्कर्ष और अपकर्ष, जय और पराजय, खुशी और गम का मिश्रित रूप है। अतः सुख और दुख प्रत्येक मनुष्य की जिंदगी में स्वाभाविक हैं। दुखों से हम भाग नहीं सकते अर्थात् उनका हमारे जीवन में आना निश्चित है। सुख भी हमसे अधिक समय तक अछूते नहीं रह सकते। इसलिए किसी मनुष्य के जीवन में सबसे ज्यादा जरूरी चीज होती है- धैर्य। एक धैर्यपूर्वक मनुष्य ही अपने दुखों के पलों को गुजार सकता है और सुख का भागी बन सकता है।

यह सर्वविदित है कि—दिन के समाप्त हो जाने पर रात्रि का आगमन होता है। सूर्य के छिपने के बाद चंद्रमा का उदय होता है। ऐसे ही सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख का अनवरत् चक्कर चलता रहता है। फिर क्यों न हम अपनी यादों में अच्छे पलों को शामिल करें और प्रकृति की भांति हमेशा खिलखिलाते और मुस्कुराते रहें। प्रकृति में हमेशा उल्लास की चहक और सुगंधित महक समाई होती है। क्यों नहीं हम अपने जीवन में प्रकृति की यह मस्ती जो लौकिक भी है और अलौकिक भी है, जो विवेक की सरगम बलिदान के गीतों में भी मधुरता भरती है को अपने जीवन में शामिल कर लें।

जब हमारा वर्तमान प्रकृति की खूबसूरती की छांव में, फूलों की तरह पल्लवित व पोषित होगा तभी हमारी यादें खूबसूरत होंगी। जब हम प्रकृति को निहारते हैं तो मानो पूरी प्रकृति एक ही धुन गुनगुनाती है—शांति की स्थापना, दूसरों की खुशी के लिए सर्वस्व का बलिदान कर देने की प्रेरणा। प्रकृति में तो यह सिलसिला हमेशा से चल ही रहा है, क्यों न हम इसे अपने जीवन में शामिल करें।

स्वयं को अत्याधुनिक कहने वाले और समझने वाले हम मनुष्यों ने, न जाने क्यों इस मस्ती से अपने को अछूता करके रखा हुआ है? प्रकृति के वे स्वर हमें क्यों नहीं सुनाई देते जो हमेशा गूंजते रहते हैं—आओ हमारे रस से जिंदगी की नीरसता, हमारी उमंग से जीवन की उदासी, हमारी सम्पन्नता से अपनी दीनता दूर करो। हमारे सानिध्य में आकर उल्लास पूर्ण और गौरवमय जीवन का आनंद लो।

क्या हमारा मन नहीं करता कि—हम प्रकृति के संपर्क में जाकर उस ताजी हवा का आनंद लें जो हमारे मन में गुदगुदी पैदा करे, हलचल मचा दे। हम भी फूलों की तरह खिल उठें, महक उठें। हम आम के बोर की तरह खिल उठें, चिड़ियों की तरह चहक उठें। दिल में एक हूक उठे, जो कोयल की सी कूक बनकर वातावरण में मस्ती बिखेर दें। सरसों के पौधों की तरह झूम उठें, नव पल्लवों की तरह थिरक उठें। सारी उदासी बह जाए, खिलखिलाहटें बिखर पड़ें। लेकिन यह सब तब होगा जब अंदर रस बहे।

रस तो हमारे मस्तिष्क में जम गया है— नकारात्मकता का, बुरी यादों का। आत्मविकास के धोखे में स्वार्थ ने डेरा डाल रखा है। आत्मीयता की जगह को अहंकार ने घेर लिया है। यह सब हुआ अविवेक के कारण—क्योंकि हमने बुरी यादों की रस्सी को जकड़ कर पकड़ा हुआ है। हम अविवेक के कारण यह नहीं समझ पाए कि हम अपनी जीवन रूपी यात्रा में अच्छी यादों के घरोंदें बनाकर आगे बढ़ते जाएंगे, तो बुरी यादों को हमारे मस्तिष्क में स्थान ही नहीं मिलेगा।

हमें बीती ताहि बिसार दे, की कहावत को चरितार्थ करते हुए बुरी यादों को भुलाकर केवल अच्छी यादों को अपने जीवन में स्थान देना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों से सबक लेकर अपने जीवन को गति देनी चाहिए। यादों के झरोखे हमेशा खुले रखने चाहिएं। जिससे अगर कुछ यादें परेशान करें भी तो उन झरोखों से बाहर निकालने में आसानी हो। अपनी अच्छी यादों को हमेशा स्मरण करते रहना चाहिए। अपने मित्रों एवं सगे संबंधियों को शामिल करना चाहिए।

2 thoughts on “103. यादों के झरोखे”

  1. Jivan jagat tamasha hai asha aur nirasha hai
    Fir bhi jeene ki asha hai asha hai asha hai
    Jai Shri Krishna
    Jai Shri raadhe
    Jai Shri khatu Shyam Ji Maharaj

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