251. सन्यास

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जिसे देखो, वह संन्यास लेने की बातें करता रहता है। सब कुछ छोड़ कर पर्वतों, पहाड़ों, जंगलों या गुफाओं में बैठकर साधना करना चाहता है। वह यही सोचता है कि घर परिवार से दूर रहकर ही सन्यास लिया जा सकता है। वह […]

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250. अध्यात्म

श्री गणेशाय नम श्री श्याम देवाय नमः अध्यात्म आंतरिक क्रांति है। यह इस बात की उद् घोषणा है कि मैं भीतर अपने को बदलूंगा। इस धरा पर जन्म लेने के पश्चात् मनुष्य अपने जीवन को सफल करना चाहता है लेकिन सफलता की कोई परिभाषा नहीं है। वह स्वयं नहीं समझ पाता कि उसका जीवन कैसा

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249. कर्म की महत्ता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हमारे ग्रंथों में उल्लेखित है कि— आत्मा का उद्देश्य ही कर्म करना है। कर्म शरीर, वाणी और मन से किए जाते हैं। कर्म के अभाव में कोई भी जीव अपना अस्तित्व नहीं रख सकता। जहां शरीर है, वहां कर्म आवश्यक होता है। सिर्फ विचारों से संसार नहीं बन

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248. आत्मविश्वास

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः एक दिव्यांग युवक से एक दिन उसके सहपाठी ने पूछा— तुम्हारी इस दिव्यांगता का कारण क्या है? लड़के ने उत्तर दिया— मुझे बचपन में ही पोलियो हो गया था।सहपाठी ने पूछा— इतने बड़े संकट के बावजूद तुम इतनी मुस्कुराहट और आत्मविश्वास के साथ संसार का सामना कैसे करते

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247. सार्थक हो, हर दिन

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हमारे विचार, चिंतन और कार्य ही हमें जीवन में संतुलन साधना सिखाते हैं और यह सब कुछ होता है, मन के द्वारा। मन ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे मनुष्य चिंतन, स्मरण एवं मनन करता है। मन में उपजी विचार संपदा से ही हमारे जीवन में परिस्थितियों का

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246. करें, सच्चा प्रेम ईश्वर से

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः प्रेम का प्रथम लक्षण यही है कि— वह सदा देने वाला होता है, लेने वाला नहीं। मनुष्य जब प्रेम की बात करता है तो वह हमेशा मांगता ही रहता है। जब वह ईश्वर से प्रेम करने की बात करता है तो उसे भी प्रलोभन देने के लिए अनुष्ठान,

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245. जानिए, स्वयं को

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः जब मनुष्य इस धरा पर जन्म लेता है तो वह अपने साथ कोई न कोई ऐसी खूबी जरूर लेकर आता है जो उसे विशिष्ट बनाती है। लेकिन अधिकांश लोग अपनी इस विलक्षणता से परिचित नहीं होते। उनको पता ही नहीं होता कि वह भी विशिष्ट हो सकता है।

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244. करें त्याग, चिंता का

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि— चिंता, चिता के समान है क्योंकि चिता मुर्दे को जलाती है और चिंता जिंदा को जलाती है। यह एक मनुष्य को वैसे ही खोखला कर देती है जैसे लकड़ी को कीड़ा खत्म कर देता है। जब लकड़ी में दीमक लग

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243. पाएं, संघर्ष से सफलता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मानव जीवन में संघर्ष के मार्ग पर चलकर ही सफलता का शंखनाद किया जा सकता है। समस्त जीवन को ही अगर संघर्षों की यात्रा कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। संघर्ष वास्तव में वह अग्नि है, जिसमें तप कर किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व पूरी

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242. मन की शक्ति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः समस्त ब्रह्मांड में मनुष्य ऐसा प्राणी है जो बुद्धि और विचार के साथ कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। बुद्धि और विचार कार्य करते हैं— मन की शक्ति के द्वारा। मन, वायु और प्रकाश की गति से भी अधिक गतिमान रहता है। उसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार पनपते

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