04. खुद करें दृढ़ संकल्प

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

दुनिया में किसी भी विचार से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, उस पर अमल,हर विचार एक बीज की तरह होता है,जो इच्छित या अनिच्छित परिणाम देता है। देखना यह है कि उसका संकल्प कितना दृढ है।यदि आप किसी विचार को बोते हैं, तो आप कर्म को काटते हैं और कर्म को बोएगऺे ,तो आदत को काटेंगे और यदि आदत को बोएगऺे,तो आप चरित्र पाएंगे। चरित्र को बोएगेे ,तो आप नीयति को काटेंगे तो जाहिर है कि विचार को कर्म तक ले जाएं, यही जीवन का सार है इसी से हम खुशियों की खेती कर सकते हैं ।जिस विषय की इच्छा होती है मानव स्वभाव उसी के अनुरूप बन जाता है, और मन उसी के प्रति आकर्षित होने लगता है ।

आपके मन की आकांक्षा ,आपकी आशा की प्रेरणा अथवा इच्छा मात्र कल्पना, व्यर्थ की वस्तु नहीं अपितुू उससे भी बढ़कर कुछ है ,आप जिसके लिए इच्छा ओर प्रयत्न करते हैं,वास्तव में वही आपको प्राप्त होता है होता यह है कि आप जैसे ही किसी वस्तु को पाने के लिए कामना करते हैं,वैसे ही आप उस वस्तु के साथ संबंध स्थापित कर लेते हैं। हां कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आपको अपने प्रयासों में उतनी सफलता अर्जित नहीं होती जितनी आपने आशा की थी। ऐसा इसलिए होता है कि आप जीवन की छोटी-छोटी आवश्यकताओं की ओर अपना सारा ध्यान लगा देते हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि आप अपने लक्ष्य की ओर उस गति में नहीं बढ़ पाते जिस गति में आपको बढ़ना चाहिए था ।आपको यदि सफलता पानी है तो अपने लक्ष्य पर स्थिर रहना होगा और उसी अनुपात में गंतव्य की ओर बढ़ना होगा एक बात का सदैव ध्यान रखिए कि आप जैसा बनना चाहते हैं वैसे हीआदर्श अपने सम्मुख प्रस्तुत करें और आप सदा यह अनुभव करें कि आपने ही उसके समान अभूतपूर्व कार्य करने की सामर्थ्य है।

हर दिन एक जैसा नहीं होता कोई दिन अच्छा और कोई दिन कम अच्छा होता है ।ऐसे में खुद को हर हाल में प्रेरित रखना एक मुश्किल चुनौती है ।हमेशा कठिन दिनों में हमें खुद अपने में बहुत सारी कमियां नजर आने लगती हैं ।इसी तरह जब परिस्थितियां गड़बड़ होती है तब हमें लगता है जैसे हर चीज हमारे खिलाफ जा रही है ,जबकि सामान्य दिनों में हमें सब कुछ अच्छा लगता है ,जीवन के उतार-चढ़ाव में खुद को हमेशा सकारात्मक बनाए रखना ही जीवन जीने की कला है। इस कला को समझें और इससे अपने जीवन को सकारात्मक बनाएं ।अपने जीवन का हर दिन आखरी दिन माने ।यह सुनने में बहुत अजीब लगेगा लेकिन ऐसा करके देखें, हर दिन को अपने जीवन का आखिरी दिन मानकर जिए ।यकीन मानिए जीवन का स्वाद और रंगत दोनों बदल जाएगी।माने की यही दिन आपके जीवन का अंतिम दिन है। इसलिए आज दिन के सूर्य को अपनी आंखों में भर लें, उन लोगों की खुशी के लिए कुछ करें जो आपके बहुत करीब हैं यही सोचे कि आज आखिरी बार आप अपने पैरों से इस धरती को स्पर्श कर रहे हैं, अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें।

अपने संकल्प को और दृढ़ करें, इसलिए अपने दिन का सबसे अच्छा उपयोग करें। जो आपको प्यार करते हैं उन्हें प्यार करें जिन लोगों से आपके रिश्ते खराब हैं उनसे रिश्ते बना ले,स्वयं को याद दिलाएं कि आप इस दुनिया में एक खास उद्देश्य से आए हैं ,यह भी हमेशा याद रखें कि आपको हर दिन अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ना है। आप चाहे जो करें उसका परिणाम आता ही आता है संकल्प के साथ करेंगे तो परिणाम अच्छा मिलेगा, इसलिए अपने लक्ष्य ओर कार्य के प्रति गंभीर रहऺे ,बल्कि हरेक इंसान के प्रति भी अच्छा करें। यह न सिर्फ अच्छे परिणाम देगा बल्कि आपको मानसिक तौर पर भी खुश ओर संतुष्ट रखेगा।  किसी भी कार्य को करने में यदि किसी भी प्रकार की हीन भावना मन में उठने लगे और मस्तिष्क में घर करने लगे तो उसे मानस- पटल से मिटा देना चाहिए। यदि आप ऐसा कर सके तो कोई कारण नहीं की आप अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सकें।

आशावादिता स्वय में एक विलक्षण शक्ति है। जिससे कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। अभिलाषा, आशा, आकांक्षा की पूर्ति के लिए दृढ संकल्प और स्थिर स्वभाव की आवश्यकता है। यदि आप निरंतर प्रयत्नशील हैं, तो आपकी आशा पूर्ति सहज ही हो जाती है। यदि मार्ग में आने वाली बाधाओं से घबरा गए तो कोई कार्य संभव नहीं होगा।किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए केवल कामना से बात नहीं बनने वाली, उसके लिए पर्यत्नऔर परिश्रम परम आवश्यक है।प्रत्येक वर्ष अनेक प्रतियोगितात्मक परीक्षाएं आयोजित होती रहती हैं , जिनमें लाखों की संख्या में परीक्षार्थियों की सहभागिता होती है। परंतु सफलता उन्हें ही प्राप्त होती है ,जिन्होंने पहले अपना एक यथार्थवादी लक्ष्य निर्धारित किया हो ,उसके अनुरूप ही समर्पित भाव से अध्ययन किया हो ।उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिलती,तो भी वे निराश नहीं होते। ऐसे में विफल विद्यार्थी अपनी विफलता के कारण ढूंढते हैं,ओर द्विगुणित ध्येय के प्रति निष्ठा के साथ प्रयत्न करते हैं। अंतत: वे सफलता के अधिकारी बनते हैं।

लक्ष्य अर्जित करने के लिए मन- मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखना पड़ता है। जो लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझते हैं, हर समय उसी का चिंतन करते हैं, उसी का स्वप्न देखते हैं, तथा उसी के सहारे जीवित रहते हैं सफलता उन्हीं का वर्णन करती है। आपको अपना लक्ष्य कभी नहीं भूलना होगा अन्यथा जो कुछ मिलेगा आप उसी में संतोष करने लगेंगे और अपनी इच्छा शक्ति तथा कठोर परिश्रम करने वाला ही निश्चित रूप से लक्ष्य का बेधन करता है। जो अपने संकल्प के प्रति सुदृढ़ हैं ,उसे ही सफलता का दर्शन होता है।

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