141. नवरात्र

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

सनातन संस्कृति के अनुसार वर्ष में चार नवरात्र —चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ महीनों में आते हैं। प्रत्येक नवरात्र का समय शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक रहता है। चैत्र और अश्विन मास के नवरात्र अधिक प्रचलित हैं। आषाढ़ और माघ मास में नवरात्र गुप्त नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं।

सनातन संस्कृति में नवरात्र पर्व की साधना का अपना विशेष महत्व है। इस समय मनुष्य अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिए अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन, योग- साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में आंतरिक शक्तियों को जगाने के प्रयास किए जाते हैं, परंतु आषाढ़ और माघ मास में आने वाले नवरात्र में गुप्त विद्याओं की तथा तंत्र- मंत्र के माध्यम से शक्ति प्राप्त करने हेतु साधनाएं की जाती हैं।

हमारे विद्वानों ने वर्ष के 12 महीनों को छ: ऋतुओं में बांटा है। बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर प्रत्येक नवरात्र ॠतुओं के संधिकाल में आते हैं।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि की जननी मां भगवती है। मां भगवती ही कष्ट, दुख, बीमारी, हानि, निर्धनता, अपकीर्ति व अपमान को मिटाकर आयु, प्रजा, कीर्ति, सुख, शांति, संतोष, धन, वैभव, पद-प्रतिष्ठा, मान- सम्मान व मोक्ष दात्री है।

वैसे तो जगत् जननी का आशीर्वाद हम पर सदैव बना ही रहता है, किंतु कुछ विशेष अवसरों पर हमें उनकी कृपा दृष्टि का लाभ अधिक मिलता है। नवरात्र ऐसे ही विशेष अवसर हैं। नवरात्रों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता। मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुकूल फल अवश्य देती है। मां भगवती जगजननी की आराधना तो सभी नवरात्रों में की जाती है। चैत्र मास में आने वाले नवरात्र में अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का भी प्रावधान है। आज के समय अधिकांश मनुष्य अपने कुल देवी- देवताओं को भूलते जा रहे हैं, जबकि इस और उचित ध्यान देकर आने वाली अनजान मुसीबतों से बचा जा सकता है। यह अंधविश्वास नहीं बल्कि शाश्वत सत्य है।

अध्यात्म जगत् में मानव शरीर को 9 मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और उसके अंदर निवास करने वाली जीवनी शक्ति अथवा प्राण शक्ति का नाम ही दुर्गा, भवानी अथवा जगदंबा है। इन मुख्य इंद्रियों के अनुशासन, स्वच्छता तथा इनमें तारतम्य स्थापित करने के लिए तथा शरीर तंत्र को पूरे वर्ष के लिए सुचारु रुप से क्रियाशील रखने हेतु नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नवरात्र के रूप में मनाया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक वर्ष में 4 संधियां हैं। मार्च और सितंबर में पड़ने वाली संधियों में वर्ष के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय वातावरण में हानिकारक जीवाणु ज्यादा होते हैं, जिसके कारण बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है। रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होने के कारण शारीरिक बीमारियां ज्यादा होती है। ऐसे समय में हमें अपने शरीर को निर्मल और पूर्णत स्वस्थ रखने की आवश्यकता होती है और नवरात्र हमारे इस कार्य में सहयोग करते हैं, क्योंकि नवरात्र के समय उपवास करने तथा सात्विक भोजन ग्रहण करने से शरीर की शुद्धि होती है और वह रोग मुक्त रहता है। अगर शरीर स्वस्थ होगा तो शुद्ध बुद्धि तथा उत्तम विचारों का वास होगा, जिससे हमारे कर् अच्छे होंगे और उत्तम कर्मों से मन व आत्मा शुद्ध होते हैं। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थाई निवास होता है।

शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूप बताए गए हैं—

• देवी शैलपुत्री—

शैलराज हिमालय की पुत्री अथवा सती अथवा पार्वती। मां के इस रूप की पूजा नवरात्र के प्रथम दिन होती है।

• देवी ब्रह्मचारिणी—

यह रूप मां पार्वती के जीवन काल का वह समय था, जब वह भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। इस रूप की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है।

• देवी चंद्रघंटा—

इस रूप में मां अपने मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र धारण करती है। मां का यह रूप दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है। इस रूप की पूजा तीसरे नवरात्र को की जाती है।

• देवी कूषमांडा—

मां का यह रूप बेहद शांत, सौम्य और मोहक है। इस रूप में मां आदि शक्ति आदि स्वरूपा है। मां कूषमांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग मिट जाते हैं। उनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है, इस रूप की पूजा चौथे नवरात्र को की जाती है।

• देवी स्कंदमाता—

कुमार कार्तिकेय की माता को ही स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इस रूप में मां की चार भुजाएं हैं, जिनमें से एक हाथ से मां ने कुमार कार्तिकेय का बालरुप अपनी गोद में पकड़ा हुआ है और एक हाथ भक्तों को वरदान देने की मुद्रा में है। अन्य तो हाथों में मां कमल का फूल लिए हुए हैं। मां के इस रूप की पूजा नवरात्र के पांचवें दिन की जाती है।

• देवी कात्यायनी—

प्रख्यात महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या कर मां से उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा था, जिसे मां ने पूरा किया। देवी का यह रूप कात्यायनी कहलाया। इस रूप में चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार है। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए है। अन्य दो हाथ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। मां के इस रूप की पूजा छठे नवरात्र को होती है।

• देवी कालरात्रि—

मां कालरात्रि का रंग रात्रि के समान काला है, परंतु वे अंधकार का नाश करने वाली हैं। दुष्टों व राक्षसों का अंत करने वाली मां दुर्गा का यह रूप देखने में अत्यंत भयंकर लेकिन शुभ फल देता है। इसलिए इस रूप में मां शुभंकरी भी कहलाती हैं। मां के इस रूप की पूजा नवरात्र के सातवें दिन की जाती है।

• देवी महागौरी—

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। उनकी शक्ति अमोघ और फल देने वाली है। उनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुश मिट जाते हैं। पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप, संताप, दु:ख उनके निकट भी नहीं आते। वह सभी प्रकार के पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

• देवी सिद्धिदात्री—

नवरात्र के अंतिम दिन मां के इस रूप की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है और इनका वाहन सिंह है। यह भक्तों को मनोवांछित फल और सिद्धियां प्रदान करती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को अष्ट सिद्धियां देवी सिद्धिदात्री से ही मिलती हैं।

मां की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें पूर्ण विश्वास और आस्था के साथ मां के सभी रूपों की आराधना करनी चाहिए।

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