142. मां की महिमा

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

भारतवर्ष देवी देवताओं का देश है। यहां स्थान- स्थान पर देवी देवताओं के मंदिर हैं। ये मंदिर लोगों की अटूट श्रद्धा के केंद्र हैं। मां के रूप में हमें यहां देवी के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं, जिन्हें अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। नवरात्र में मां की आराधना करने का विशेष महत्व होता है। इन दिनों किया गया पूजा- पाठ सफल होकर उचित फल देता है। देवियां भक्तों को उनकी पूजा-अर्चना का उचित फल भी देती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता के सभी रूप भगवान शिव की अर्धांगिनी जगत् जननी देवी पार्वती के हैं। मां के मंदिर विभिन्न नामों से भारत के कोने-कोने में विराजमान है। इन मंदिरों में जो भी श्रद्धा भाव से जाता है, माता उनकी मुरादें अवश्य पूरी करती हैं। मां की शक्ति का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। कोई भी शब्द उनका गुणगान करने में सक्षम नहीं है। उनकी शक्ति को तो केवल वही जान सकता है, जिनके जीवन में माता चमत्कार करती है।

जम्मू-कश्मीर में मां वैष्णो देवी का प्राचीन मंदिर है। जहां प्रतिवर्ष लगभग 80 लाख से ज्यादा श्रद्धालु दर्शनार्थ के लिए जाते हैं। इतनी भारी संख्या में श्रद्धालुओं के जाने के पीछे कोई तो कारण अवश्य होगा और वह कारण देवी भगवती की शक्ति के चमत्कार के अलावा और क्या हो सकता है? यह मां की शक्ति ही है जो भक्तों को अपनी ओर खींच लाती है और इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पता नहीं कब से वहां जा रहे हैं।

मां वैष्णो देवी के बाल रूप के दर्शन हमें हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में नाहन नामक स्थान से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण- पश्चिम में 430 मीटर ऊंची पहाड़ी पर, मां महामाया बाला सुंदरी के रूप में होते हैं। यह स्थान त्रिलोकपुर के नाम से जाना जाता है। मां बाला सुंदरी सच्चे मन और श्रद्धा से आए किसी भी श्रद्धालु को निराश नहीं करती। उनकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं, तभी तो वहां पर लगभग 40 लाख लोग मां महामाया के दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। माता बाला सुंदरी न जाने कितने परिवारों की कुलदेवी हैं। नवविवाहित दंपति मां के दर्शन करने, शिशुओं का मुंडन करवा कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु जाते हैं।

इस स्थान पर हमें 3 शक्ति केंद्रों के दर्शन होते हैं, इसी कारण इस स्थान का नाम त्रिलोकपुर है। तीनों शक्ति केन्द्र मां दुर्गा के विभिन्न रूपों को दर्शाते हैं। मुख्य मंदिर जो महामाया बाला सुंदरी को समर्पित है, त्रिलोकपुर में ही स्थित है।
दूसरा शक्ति केंद्र माता के अन्य रूप मां ललिता देवी के नाम से जाना जाता है जो एक पहाड़ी पर मुख्य मंदिर से 3 किलोमीटर ऊपर उपस्थित है।
तीसरा शक्ति केंद्र भगवती त्रिपुर भैरवी के नाम से मुख्य मंदिर से 13 किलोमीटर ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित है।

माता के मुख्य मंदिर के पास ही ध्यानु भक्त का मंदिर भी है। ध्यानु भक्त के बारे में एक कथा प्रचलित है कि—
वह मां बाला सुंदरी के अन्य रूप मां ज्वाला का परम भक्त था। उस समय अकबर का शासन था जो अपने को परम शक्तिशाली और अल्लाह मानता था, पर ध्यानु भगत का कहना था की— परम शक्तिशाली तो मां ज्वाला है।
अकबर को यह बात अच्छी नहीं लगी, उसने ध्यानु के घोड़े का सिर धड़ से अलग कर दिया और कहने लगा कि— यदि तेरी मां के अंदर इतनी शक्ति है, तो घोड़े का यह सिर फिर से उसके धड़ पर लगा दे।
ध्यानु को मां की शक्ति पर पूरा भरोसा था। उसने अकबर की चुनौती को स्वीकार कर लिया और अकबर से कुछ समय मांगा जिसे अकबर ने स्वीकार कर लिया।

ध्यानु दिल्ली से चलकर हिमाचल प्रदेश में मां ज्वाला जी पहुंचा और माता के चरणों में बैठकर विनती की, कि— वह घोड़े के शीश को पुनः उसके धड़ पर लगा दे, ताकि अकबर को उनकी शक्ति के बारे में पता चल सके। ध्यानु कई दिन- रात लगातार मां के चरणों में ऐसी प्रार्थना करता रहा। लेकिन उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं हुई। अंत में ध्यानु ने अपना शीश काटकर माता के चरणों में चढ़ा दिया।

माता प्रकट हुई और उसने न केवल ध्यानु का शीश उसके धड़ से जोड़ दिया बल्कि प्रार्थना को स्वीकार करते हुए घोड़े का शीश भी उसके धड़ से जोड़ कर उसे जीवित कर दिया।

अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह 50 किलो सोने के छत्र के साथ नंगे पांव माता के दरबार में अपना प्रायश्चित करने के लिए पहुंचा। लेकिन माता ने छत्र को स्वीकार नहीं किया। सोने से बने छात्र को तुरंत किसी अनजान धातु में बदल दिया। वह छत्र आज भी मां ज्वाला जी के मंदिर के प्रांगण में पड़ा हुआ है और मां ने उसे कौन- सी धातु में बदला है, आज तक भी कोई उसे समझ नहीं पाया है, यानी उस धातु का पता नहीं लगा पाया है।

बाद में अकबर ने अश्रुपूर्ण नेत्रों के साथ मां के मंदिर में ध्वजा, नारियल, पान, सुपारी भेंट कर मां का आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस घटना के कुछ समय पश्चात् ध्यानु भगत ने अत्यंत श्रद्धा के साथ मां महामाया बाला सुंदरी के मंदिर में भी अपना शीश चढ़ाने का संकल्प लिया।
मां तुरंत प्रकट हो गई और उसे कहा— यह गलत है, अगर इस बार तुमने अपना शीश काट दिया तो वह उसे पुनः नहीं जोड़ेगी।
लेकिन ध्यानु भगत ने तो संकल्प ले लिया था। उसने कहा—जो आपकी इच्छा मां।
मैं संकल्प ले चुका हूं इसलिए मैं अपने संकल्प से पीछे नहीं हटूंगा और यह कह कर माता के चरणों में प्रणाम करने के पश्चात् अपना शीश काटकर मां के चरणों में अर्पित कर दिया।
मां ने भी बड़ी प्रसन्नता के साथ ध्यानु को आशीर्वाद दिया—आज के बाद यहां आने वाला मेरा प्रत्येक भक्त तेरा दर्शन अवश्य करेगा।
यह मां की महिमा ही है की— मां बाला सुंदरी का यह स्थान अत्यंत धार्मिक महत्व रखता है। यहां वर्ष में दो बार मेला भरता है और मां के दर्शनों के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। वैसे तो श्रद्धालु प्रतिदिन मां के दर्शन करने आते हैं, परंतु चैत्र और अश्विन के महीने में लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं।

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