श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
आपने अक्सर बहुत से लोगों को यह कहते सुना होगा कि— हम भाग्य को नहीं मानते। हम आस्तिक नहीं हैं। हम तो नास्तिक हैं। जो आस्तिक होते हैं, वही भाग्य पर विश्वास करते हैं। हम तो कर्म को मानते हैं। कर्म करने से ही भाग्य का निर्माण होता है।
वे बिल्कुल सच कह रहे हैं कि— आप जैसा कर्म करोगे, वही भाग्य बनकर आपके समक्ष होगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि— भाग्य होता ही नहीं। दरअसल कर्म और भाग्य एक- दूसरे के पूरक हैं। कई बार ऐसा होता है कि जो लोग आस्तिक होते हैं, वे नाकामयाब रहते हैं और जो नास्तिक होते हैं, वे कामयाब हो जाते हैं। इस तरह के परिणाम का कारण मनुष्य स्वयं होता है।
भाग्य का आस्तिक होने या न होने से कोई संबंध नहीं है क्योंकि भाग्य तो उन लोगों का भी होता है जो भाग्य को नहीं मानते। वास्तविकता में भाग्य अस्तित्व में तभी आता है, जब कर्म होता है। भाग्य हमारे प्रारब्ध कर्मों का ही फल होता है। हम जैसे कर्म करते हैं, वैसा ही भाग्य लेकर पैदा होते हैं। जैसे प्रकाश के बगैर छाया संभव नहीं है, वैसे ही कर्म किए बगैर भाग्य का लाभ संभव नहीं है।
यदि कोई नास्तिक अच्छे कर्म करता है तो यकीनन उसे भाग्य के सापेक्ष कामयाबी मिलेगी और यदि कोई आस्तिक कर्म की उपेक्षा करता है तो निश्चित रूप से उसे जीवन में नाकामयाबी मिलेगी। भाग्य तो महज किसी प्रयास की सफलता का प्रतिशत तय करता है।
इसलिए बगैर प्रयास के, बगैर कर्म के, केवल आस्तिक होने के दम पर सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। यही सत्य है कि—भाग्य की प्रबलता पूर्व जन्मों के सत्कर्मों पर निर्भर करती है जो हो चुका है, उसे बदलना हमारे हाथ में नहीं है लेकिन वर्तमान में सत्कर्म करके भाग्य को संवार जरूर सकते हैैं।
इसलिए यह तय है कि— सच्चा और सात्विक जीवन जीने वाला नास्तिक, किसी ढोंगी आस्तिक से ज़्यादा सफलता प्राप्त करता है और सुखी रहता है। भाग्य और सफलता का यही संबंध है और जो इसे अपना लेता है, वही सफल होता है, चाहे वह आस्तिक है या नास्तिक।
Jai radhe radhe shyam meri jaan mera shree shyam