श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके समाज के प्रति कुछ कर्तव्य भी होते हैं। लेकिन आज के समय में मनुष्य स्वार्थी हो गया है। परोपकार की भावना को उसने तिलांजलि दे दी है। वह हर समय अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचता रहता है। वह परोपकार की परिभाषा ही भूल गया है।
परोपकार से अभिप्राय है कि— बगैर किसी भेदभाव के एक दूसरे के सुख- दुख में शामिल होना और परेशानी के समय निस्वार्थ भाव से सहायता करना।
जिस प्रकार पुष्प इकट्ठा करने वाले के हाथ में कुछ सुगंध हमेशा रह जाती है, उसी प्रकार परोपकार करने वाले की जिंदगी भी हमेशा सुगंधित और आबाद रहती है। जो व्यक्ति दूसरों की जिंदगी रोशन करते हैं, उनकी जिंदगी खुद रोशन हो जाती है। हंसमुख, विनोद प्रिय, आशापूर्ण लोग प्रत्येक जगह अपना मार्ग बना ही लेते हैं।
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि— खुशी का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता। एक मां बच्चे को स्नान कराने पर खुश होती है, छोटे बच्चे मिट्टी के घर बना कर और उन्हें ढहाकर, पानी में कागज की नाव चला कर खुश होते हैं। इसी प्रकार विद्यार्थी परीक्षा में अव्वल आने पर उत्साहित हो सकते हैं। भूखे- प्यासे बीमार की आहों को कम करना, सर्दी से ठिठुरते व्यक्ति को कंबल ओढाना या जीवन और मृत्यु से जूझ रहे व्यक्ति के लिए रक्तदान करना हो, ये जीवन के सुख हैं जो व्यक्ति को भीतर तक खुशियों से सराबोर कर देते हैं। ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने मानव सेवा के साथ-साथ इस सृष्टि की निर्जीव वस्तुओं में भी अपना योगदान देकर आदर्श स्थापित किए हैं।
ऐसे ही एक महापुरुष हैं, सिखों के सातवें गुरु हरिराय जी। जो महज 14 वर्ष की आयु में गुरु गद्दी पर आसीन हो गए थे। अस्त्र-शस्त्र और युद्ध कला में पारंगत होने के बावजूद वे प्रेम, दया, कोमलता व भक्ति भावना से परिपूर्ण थे। परोपकार की भावना उनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनका मानना था कि किसी भी मनुष्य के मन को दुख पहुंचाना सबसे बड़ा पाप है। उनका कहना था कि—किसी टूटी हुई भौतिक वस्तु को तो पुनः जोड़ा जा सकता है, लेकिन आहत मन को नहीं। वे सदैव मानवीय संवेदनाओं का पूरा सम्मान करने का उपदेश दिया करते थे और स्वयं अपने जीवन काल में इसका सर्वोत्तम आदर्श बने। परोपकार की भावना को नया आयाम देते हुए, उन्होंने एक बड़ा औषधालय खोला, जिसमें विभिन्न दवाएं और दुर्लभ जड़ी-बूटियों का संग्रह किया गया। इसमें उपचार के लिए बिना किसी भेदभाव के जहां रोगियों की चिकित्सा होती, वहीं आत्मबल में वृद्धि के लिए आध्यात्मिक उपदेश भी दिए जाते थे। वे अपने उपदेशों के माध्यम से परोपकार की भावना को जागृत करते थे। सिखों को घर-घर लंगर चलाने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि कोई भी भूखा वापस नहीं जाना चाहिए। गुरु जी की भावना व प्रेम सभी जीवों के लिए समान था। प्रकृति को वे स्वयं के निकट मानते थे। यही कारण था कि वे खुद अपने बगीचे की देखभाल करते थे। उनका मानना था कि प्रकृति को हम जितना देंगे, पेड़- पौधे लगाएंगे, उतना ही प्रकृति हमें सूद समेत वापिस कर देगी।
ऐसे बहुत सारे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देकर परोपकार का संदेश दिया है। उन्होंने हमें जीवन में खुश, नेक एवं नीतिवान बनने का रास्ता दिखाया। उनका समूचा जीवन मानवजाति को बेहतर अवस्था में पहुंचाने की कोशिश में गुजरा। किसी की परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी। हर किसी ने मुश्किलों से जूझकर उन्हें अपने अनुकूल बनाया और जन-जन में खुशियां बांटी।
बुद्ध ने शिष्य आनंद को “आधा गिलास पानी भरा है” कहकर हर स्थिति में खुशी बटोरने का संदेश दिया। परोपकार को जीवन में स्थान दीजिए, जरूरी नहीं है कि इसमें धन ही खर्च हो। बगैर धन खर्च किए भी आप बहुत से ऐसे कार्य कर सकते हैं, जिससे दूसरों की मदद हो जैसे— रोड क्रास करते समय किसी वृद्ध या लाचार की सहायता कीजिए, दुर्घटना के समय उसे नजदीक के अस्पताल पहुंचाने का कार्य कीजिए। आप अपने हुनर के द्वारा समाज के व्यक्तियों की मदद कीजिए। इस प्रकार के छोटे-छोटे कार्य करके भी आप परोपकार कर सकते हैं। इस तरह के कार्य करके आपको जो आंतरिक संतुष्टि होगी उसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। वह आपकी कल्पना से परे होगी। बस मन को उदार बनाइए और दूसरों की मदद करने का कोई भी अवसर मत छोड़िए।
आपके आस-पास अनेकों लोग रहते हैं। हर व्यक्ति दुख- सुख के चक्र में फंसा हुआ है। आप उनके दुख- सुख में सम्मिलित होइए। यथाशक्ति मदद कीजिए। फिर देखना आपके मोहल्ले, कार्यक्षेत्र और समाज में आपको जो मान- सम्मान मिलेगा वह अकल्पनीय होगा। जिस प्रकार मधुमक्खी निस्वार्थ भाव से दुर्लभ औषधीय गुणों से भरपूर मधु एकत्रित करती है, उसी प्रकार हमें भी निस्वार्थ भाव से परोपकार की भावना को अपने अंदर जागृत करना चाहिए। अगर हर व्यक्ति में परोपकार की भावना जागृत हो गई तो हमारा समाज, देश, विश्व में ऊंचाइयों को छुएगा।
Jai Radhe Radhe Shyam Jai Shree Shyam