श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
अगर हम जीवन में प्रसन्न रहना चाहते हैं तो यह परम आवश्यक है कि— हमारा जीवन स्थाई प्रेम से भरपूर रहे और स्थाई रहने वाला प्रेम केवल प्रभु का प्रेम ही है जो कि दिव्य और आध्यात्मिक है। क्योंकि जब भी हम अपनी अंतरात्मा में प्रभु प्रेम से जुड़ जाते हैं तो उस समय पूरी सृष्टि को प्रभु का परिवार मानते हुए सभी से प्रेम करते हैं। यह प्रेम हमारे से प्रवाहित होकर उन सभी को खुश रखता है, जिनसे भी हम मिलते हैं और वे भी प्रेम की इस शीतल हवा को महसूस करते हैं।
जब हम किसी दूसरे से प्रेम करते हैं तब हम उस मनुष्य के बाहरी रूप पर ही केंद्रित होते हैं और हमें जोड़ने वाले आंतरिक प्रेम को भूल जाते हैं। लेकिन सच्चा प्रेम तो वह है, जिसका अनुभव हम दिल से दिल तक और आत्मा से आत्मा तक करते हैं और वह प्रेम, प्रभु प्रेम ही है। अगर देखा जाए तो बाहरी रूप तो एक आवरण है जो इंसान के अंतर में मौजूद सच्चे प्रेम को ढक देता है। बाहरी आवरण या हमारा शारीरिक रूप वह नहीं है, जिससे हम वास्तव में प्रेम करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं जो कि उसके भीतर मौजूद है।
लेकिन जीवन में अनेक बदलाव आते हैं। जब वह जन्म लेता है तो एक नन्हा शिशु होता है। फिर वह बालक के रूप में स्कूल जाने वाला बच्चा बनता है। किशोर होता है और व्यस्क बनता है। वयस्क होने के पश्चात् कई मनुष्य तो 100 वर्ष की आयु को भी पार कर जाते हैं लेकिन सभी मनुष्य इस अवस्था तक नहीं पहुंच पाते। प्रेम तो हम किसी भी व्यक्ति से अपने जीवन की संपूर्ण अवधि के दौरान कर सकते हैं। भले ही उस व्यक्ति का बाहरी रूप लगातार बदल रहा हो यानी जब वह जन्म लेता है तब से लेकर उसकी आयु कितनी भी बढ़ जाए, उसे प्रेम कर सकते हैं।
दरअसल उस बाहरी आवरण के अंदर वह मनुष्य होता है, जिससे हम प्रेम करते हैं। हमारे रिश्ते बदलते रहते हैं और हम भी वयस्क होते जाते हैं और एक दिन अपनी जीवन यात्रा समाप्त करके मृत्यु को प्राप्त करते हैं। लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम प्रेम करना छोड़ दें, हमारे जीवन का उद्देश्य यही है कि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर सकें। अपनी आत्मा का मिलन उसके स्त्रोत प्रभु से करवा सकें। निरंतर ध्यान अभ्यास से हम अपनी आत्मा को आध्यात्मिक मार्ग पर ले जा सकते हैं और एक यही मार्ग है जो हमें परमात्मा में विलीन कर सकता है, उस समय अंदर से जो प्रेम की धारा फूटती है, वह प्रभु प्रेम है।
यदि प्रत्येक मनुष्य प्रेम की स्थिति को प्राप्त कर लें तो यह संसार एक दिन पृथ्वी पर स्वर्ग बन जाएगा। उस समय जो प्रेम प्रवाहित होता है, वही हमें प्रभु की शक्ति से जोड़े रखता है। वही प्रेम हमारी चेतना की शक्ति को बढ़ाता है। जिससे हम प्रेम का आनंद लेने के लिए जीवन में बदलाव ला सकते हैं। हमें केवल प्रेम, समर्पण और विश्वास को अपने जीवन में स्थान देना होगा। अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता और निष्काम सेवा जैसे गुणों से अपने जीवन को चरितार्थ करना होगा। यदि हम ऐसा करते हैं तो प्रभु की अपार कृपा हमें प्राप्त होगी। उस समय हमें परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त होगा। तब हमारी सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं और हम अपने अंतरमन में परमात्मा के प्रेम का आनंद लेते हैं।
🙏Jai shree shyam 👏