255. संत स्वभाव

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

मनुष्य के स्वभाव से ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होता है। वह लगभग सभी का प्रिय बन जाता है। अच्छे स्वभाव वाले मनुष्य को ही लोग संत स्वभाव वाला कहते हैं। अच्छे कर्म करने की आदत होने पर स्वभाव में सरलता स्वयं आ जाती है।

संत स्वभाव का आगमन व जागरण स्वभाव में सरलता तथा उत्कृष्ट विचारों की अमूल्य देन है। मन में हमेशा प्रसन्नता का प्रवाह बना रहता है। किसी प्रकार की चिंता, शोक मनुष्य को नहीं सताते। द्वेष, लोभ रहित जीवन जीने की लालसा संत स्वभाव में होती है। चंदन की सुगंध से भरा होता है, संत स्वभाव। जीवन की मर्यादा व आदर्श संत स्वभाव में ही झलकता है।

अगर जीवन को सार्थक बनाना है तो स्वभाव में संतता का होना आवश्यक है। अहंकारी मनुष्य संतो के साथ भी दुष्टता करता है, पर संत उनकी दुष्टता को सहन कर उन्हें शीतलता व सुरक्षा प्रदान करते हैं। संत का हृदय घी की भांति स्निग्ध एवं कोमलता से परिपूर्ण होता है। उनके सानिध्य में रहने वाले शांति एवं प्रसन्नता ही पाते हैं। वे किसी का अहित न सोचते हैं और न ही करते हैं।

मनुष्य को यह शरीर ईश्वर ने प्रदान किया है और इसी शरीर में मन वास करता है। यही मन मनुष्य के स्वभाव को संचालित करता है। इस मन में कैसे विचार पनपते हैं। यह मन का ही कार्य है। विचार जितने सुंदर होंगे, मन भी उतना ही सुंदर होगा और जितना मन सुंदर होगा, मनुष्य का स्वभाव उतना ही आकर्षक होगा। यही मन यदि नियंत्रण में हो तो यह संत स्वभाव बन जाता है और यह नियंत्रण में न हो तो स्वभाव में कई प्रकार की विकृतियां आ जाती है।

सूफी संत के पास एक व्यक्ति आया और बोला— मैं गृहस्थी के झंझटों से बहुत परेशान हो गया हूं। पत्नी- बच्चों और परिवार के अन्य जनों ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। इसलिए मैं सब कुछ छोड़ कर साधु बनना चाहता हूं। कृपया आप मुझे अपने पहने हुए वस्त्र दे दीजिए। जिससे मैं भी आपकी तरह साधु बन सकूं।
उस व्यक्ति की बातों को सुनकर संत मन ही मन मुस्कुराए और फिर बोले— मैं अपने वस्त्र तुम्हें अवश्य दे दूंगा, पर उससे पहले मुझे यह बताइए, क्या किसी पुरुष के वस्त्र पहनकर कोई महिला पुरुष बन सकती है या किसी महिला के वस्त्र पहनकर कोई पुरुष महिला बन सकता है।
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया— नहीं। ऐसा कदापि संभव नहीं है।
संत ने उसे समझाया— साधु बनने के लिए वस्त्र नहीं बल्कि स्वभाव बदलना पड़ता है। अपना स्वभाव बदलो फिर तुम्हें गृहस्थी भी झंझट नहीं लगेगी।
यह बात उस भोले व्यक्ति की समझ में आ गई।

मनुष्य की प्रवृत्ति ऐसी ही होती है कि— वह अपना स्वभाव बदले बिना ही हार मान लेता है, जबकि स्वभाव में थोड़े से परिवर्तन मात्र से ही हम अपने किसी भी उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। अगर निरंतर प्रयास के बावजूद असफलता ही हाथ लग रही हो तो अपने स्वभाव को बदलिए। हार मान कर अपना लक्ष्य बदलना कोई समाधान नहीं है।

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