68. तपस्या का महत्व

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

मनुष्यों और देवताओं के अतिरिक्त दानव भी तपस्या के महत्व को स्वीकार करते हैं। क्योंकि तपस्या से उन्हें शक्तियों की प्राप्ति होती हैं, फिर इन्हीं शक्तियों के बूते मनुष्य और देवता सर्जन का कार्य करते हैं, तो दानव विध्वंस का खेल खेलते रहते हैं। तपस्या का महत्व केवल धर्म एवं अध्यात्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी इसका काफी महत्व है। जब मनुष्य तप के माध्यम से साधना में लीन होता है, तो उसे अलौकिक लाभ प्राप्त होता है। जैसे-जैसे उसकी साधना बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे वह स्पष्ट रूप से इस लाभ को महसूस करने लगता है। इसका अनुभव अक्सर तपस्वी लोग करते रहते हैं। तप का अवलंबन करके ही मनुष्य में आंतरिक प्रसन्नता और आनंद की अनुभूति होती है, जो इस संसार की किसी भी वस्तु में नहीं मिल सकती, क्योंकि धर्म ग्रंथों में इसकी पुष्टि होती है।

तपस्या करने वाला मनुष्य ही अध्यात्म में विश्वास करता है और अध्यात्म ही हमें अच्छे कर्म की ओर ले जाता है। इससे हमें निस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। निस्वार्थ कर्म ही मनुष्य को अपने लक्ष्य अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति करा सकता है। कर्म शरीर, वाणी और मन से किए जाते हैं। प्रत्येक कर्म का नियत परिणाम होता है। परिणाम कारण में वैसे ही निहित रहता है, जैसे बीज में वृक्ष। प्रत्येक कर्म का हमारे ऊपर तुरंत परिणाम होता है। कोई इसे स्वीकार करे या न करे। उसके मन की प्रत्येक वृत्ति उसके जीवन पर अमिट छाप डाल देती है और उसके जीवन निर्माण का विकास उसी के अनुसार अच्छा या बुरा होता है। यदि मेरे मन में आज गलत विचार उत्पन्न होते हैं और मैं उनको रोक नहीं पाता, तो कल अधिक तत्परता से ऐसे विचारों का प्रादुर्भाव होगा। लेकिन तपस्या का सहारा लेकर हम ऐसे विचारों पर अंकुश लगा सकते हैं। इतना ही नहीं हम तपस्या और साधना के जरिए अपने व्यक्तित्व को भी निखार सकते हैं।

तपस्या की शक्ति के सहारे हम अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और स्वयं को मजबूत बना सकते हैं। ईर्ष्या, लोभ और मोह जैसी कमजोरियों से छुटकारा पा सकते हैं और अपने मन को अपने वश में रख सकते हैं। तपस्या के माध्यम से ही हम अपनी अंतरात्मा को शुद्ध कर सकते हैं। जिससे हमें शुद्ध संकल्प, उमंग, उत्साह व ऊर्जा प्राप्त होती है। हमारे मन में व्यर्थ और नकारात्मक विचारों का प्रभाव बंद हो जाता है और आंतरिक बल, क्षमता व प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले सकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं। तपस्या का फल हमें इस लोक में तो मिलता ही है, इसके साथ- साथ हमें परलोक में भी इसका फल प्राप्त होता है।

रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि— तपस्या की शक्ति से ही विधाता प्रपंच रचते हैं। तपस्या की शक्ति से ही विष्णु पूरी दुनिया का पालन- पोषण करते हैं। तपस्या की शक्ति से ही भगवान शिव सहांर करते हैं और तपस्या की शक्ति से ही शेष नाग धरती का भार वहन किए हुए हैं।

हम कह सकते हैं कि पूरी सृष्टि का आधार ही तपस्या की शक्ति है। तपस्या और साधना का आश्रय लेकर ही हम अपनी शक्ति को पहचान सकते हैं और उससे कोई भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हमें तपस्या के महत्व को समझना चाहिए और उससे लाभ उठाना चाहिए। लेकिन इसके लिए अपेक्षित आत्मबल अर्जित करना होगा। यदि हम ऐसा कर पाए, तो इससे हमारा जीवन अवश्य सुगम और सुखमय बन जाएगा।

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