72. विचारों का प्रभाव

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

यह सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है। वह अपनी क्षमता के आधार पर ही विचारों को स्वीकार या अस्वीकार करता है। बुद्धिमान लोग सदैव उत्तम विचारों से भरे होते हैं और मूर्ख व्यक्ति वैचारिक रूप से दरिद्र होते हैं। लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करते। प्रत्येक व्यक्ति एक शक्तिशाली प्राणी है। हमें अपनी इच्छाशक्ति का एहसास है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने शक्तिशाली अस्तित्व के बारे में कितनी जानकारी रखते हैं और उसे कितना प्रयोग में लाते हैं। हम सभी के पास सोचने समझने और निर्णय लेने की क्षमता है। लेकिन कुछ लोग शीघ्र ही अपने व्यसनों से छुटकारा पा लेते हैं और कुछ लोगों को अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पाने में काफी समय लग जाता है। ये सब हमारे विचारों के प्रभाव के कारण ही संभव हो पाता है।

जीवन में सफलता और असफलता का निर्धारण कर्म से होता है, किंतु कर्म में विचारों की बड़ी भूमिका रहती है। विचार ही सही और गलत कर्मों का भेद कर पाते हैं। यदि सफलता गलत मार्ग पर चलने से प्राप्त हो रही हो, तब मनुष्य क्या उस मार्ग का अनुसरण करेगा? इस प्रश्न का उत्तर उसकी वैचारिक स्थिति पर निर्भर करता है। हम अपने आस-पास के लोगों की इच्छा शक्ति को घटाने के लिए भी काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं। हम जिस भी विचार को जन्म देते हैं, उसे एक ऊर्जा के रूप में दूसरों को प्रेषित कर रहे हैं। हम किसी दूसरे व्यक्ति के विचारों, शब्दों व कर्मों से प्रेरित होते हैं। हमें बहुत मजबूत और सुरक्षित बनना होगा। यह केवल तभी संभव है, जब हम यह संकल्प कर लें कि हम अपने आसपास के नकारात्मक विचारों से प्रभावित नहीं होंगे। हमारे आस- पास होती घटनाएं हम पर प्रभाव डालती हैं। हमें अपना और अपने आसपास के व्यक्तियों का ध्यान रखना चाहिए, यदि कोई कुछ करने का प्रयत्न कर रहा हो, तो अपने मन में संदेह या नकारात्मकता के एक भी विचार को पैदा न होने दें।

आदर्श विचार मनुष्य के जीवन की खराब दशा को सही दिशा देने का कार्य करते हैं। मनुष्य अपने जीवन में विचारों के बंधन से मुक्त नहीं रह सकता। वह किसी न किसी विचार के प्रति आकर्षित तो होता ही है। अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसका आकर्षण सुविचारों के प्रति है या कुविचारों के प्रति। सुविचारों को व्यवहार में स्थान देने से न सिर्फ व्यक्तित्व निखरता है, बल्कि मनुष्य उन विचारों के आधार पर उत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ता है। कुविचारों को अपने जीवन में आत्मसात करने वाले लोग पतन मार्ग के पथिक बनकर रह जाते हैं। इसलिए जीवन में विचारों की भूमिका को तय करना बेहद जरूरी है। हमें केवल शक्तिशाली और ताकतवर विचारों को ही आश्रय देना चाहिए। अगर हम किसी नकारात्मक विचार को अपने जीवन में स्थान देते हैं, तो यह एक अनुचित सोच होगी। अगर हम किसी सकारात्मक विचार को अपने मन में स्थान दे देते हैं, तो यह एक अच्छी सोच होगी। अगर हमारी सोच अच्छी होती है, तो बेहतर महसूस होता है। अगर सोच अच्छी नहीं होती, तो मनोबल टूट जाता है। सोच अच्छी नहीं होने पर मन में हताशा महसूस होती है। अच्छी सोच के साथ बेहतरी और स्थिरता का अहसास होता है। आप अच्छी सोच के साथ सकारात्मक कार्य कर सकते हैं।

विचारों की यह शक्ति ही व्यक्ति को कामयाब होने में मदद करती है। आमतौर पर सूक्तियां हमारे विचारों पर बहुत प्रभाव डालती हैं। हम सूक्तियों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। हालांकि ये कथन सिर्फ उन्हीं का आकर्षण बन पाते हैं, जो उनके अर्थ तक पहुंच पाते हैं। यह केवल अमृत वचन मात्र नहीं होते, बल्कि जीवन का सार होते हैं। उन कथनों को अनुभव की भांति आत्मसात करने के लिए एक दृष्टि की आवश्यकता होती है। यदि वह दृष्टि हममें उपस्थित नहीं है तो हम उस विचार के मूल तक पहुंचने में सक्षम नहीं होंगे। यह कोई पहली बार सामने आया विचार नहीं है कि सकारात्मकता सफलता के लिए अनिवार्य रूप से जरूरी है, बल्कि सच तो यह है कि आदिम युग से इंसान के अपने अनुभव का भी यही निचोड़ है। विकासवादी वैज्ञानिक “चार्ल्स डार्विन” ने भी संघर्ष के बाद जिंदा रहने वाली प्रजातियों के बारे में कहा था कि वही प्रजातियां हमेशा जिंदा रहती हैं और आगे बढ़ती हैं, जिनमें इसके लिए एक सकारात्मक नजरिया होता है।

कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि सफलता के लिए तकनीकी सुझाव, तर्क और फार्मूले तो कई हो सकते हैं लेकिन किसी न किसी रूप में वे सब इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अगर सफल होना है तो अपने विचारों में सकारात्मकता लानी होगी। सकारात्मक विचार ही किसी भी क्षेत्र में सफलता की पहली शर्त है। आधुनिक जीवनशैली में प्रवेश के चलते अध्यात्म और आदर्श का स्थान व्यवहारिकता ने ले लिया है। ज्यादा व्यवहारिक बनने की लालसा ने सही और गलत के बीच सोचने की क्षमता को समाप्त करने में कोई कसर शेष नहीं रखी है। ऐसे विचारों के अनुयायियों के लिए कर्म में सही या गलत महत्वपूर्ण नहीं होता वे सिर्फ परिणाम के अभिलाषी होते हैं। परिणाम की लालसा के चलते वे सही अथवा गलत में भेद ही नहीं कर पाते।

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