Sunita Rani

101. पाएं, मन पर नियंत्रण

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः जीवन में वही व्यक्ति श्रेष्ठ होता है जो मन को नियंत्रित कर लेता है। जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली, वही जिंदगी की रेस में विजेता बनता है। किसी दूसरे पर विजय प्राप्त करने से पहले स्वयं पर और अपने मन पर विजय प्राप्त करना परम आवश्यक […]

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100. श्रेष्ठ है घमंडरहित परोपकार

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः आपने अक्सर देखा होगा कि हम दान देते हुए भी पब्लिसिटी पाना चाहते हैं। हम अगर किसी भी भिखारी को ₹1 का सिक्का भी देते हैं तो अपने चारों तरफ नजर दौड़ाते हैं कि हमें कितने मनुष्य देख रहे हैं ताकि हम उनके मध्य एक परोपकारी और श्रेष्ठ

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99. बचें, परनिंदा से

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः संसार में कोई भी वस्तु मूल्यहीन और अनुपयोगी नहीं है। ईश्वर ने कुछ सोच समझकर ही प्रत्येक जीव की रचना की है। लेकिन मनुष्य की रचना विशेष गुणों के साथ की गई है। सबकी अपनी- अपनी आवश्यकताएं हैं। निंदा करने वाला मनुष्य अगर ईश्वर के कार्य में सहयोगी

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98. जीवन और संघर्ष

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः जीवन है तो संघर्ष है। संपूर्ण मानव जीवन ही संघर्ष का पर्याय है। संघर्ष जीवन के साथ ही प्रारंभ होता है और जीवन पर्यंत चलता रहता है। इसलिए संघर्ष को जीवन का सत्य मानकर प्रत्येक व्यक्ति को उसे सहर्ष स्वीकार करते हुए अपने जीवन का हिस्सा बना लेना

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97. शांति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः महावीर स्वामी ने कहा— हम शांति से जिएं और दूसरों को भी शांति से जीनें दें।हम सब के जीवन का सिद्धांत भी यही होना चाहिए। अगर देखा जाए तो यही विश्व कल्याण का मंत्र है। विश्व का कल्याण शांति के मार्ग पर चल कर ही संभव हो सकता

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96. दुर्लभ मानव तन

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने उद्धार के लिए भगवान का परम पद पा सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। मनुष्य अपने जीवन की गति को परम गति और अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर सकता है। यह मानव तन बड़ा दुर्लभ है।

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95. कर्मों की गति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः यह सार्वभौमिक सत्य है कि— प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का निर्माण उसके कर्म ही करते हैं। इसलिए मनुष्य ही स्वयं का भाग्य विधाता है। भाग्य के निर्माण में कर्मों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि कर्म ही निर्णायक होते हैं। मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसी के अनुसार

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95. कर्मों की गति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः यह सार्वभौमिक सत्य है कि— प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का निर्माण उसके कर्म ही करते हैं। इसलिए मनुष्य ही स्वयं का भाग्य विधाता है। भाग्य के निर्माण में कर्मों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि कर्म ही निर्णायक होते हैं। मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसी के अनुसार

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94. कर्म फल

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः प्रत्येक मनुष्य की यह शिकायत रहती है कि— हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? हमने ऐसे कौन से बुरे कर्म कर रखे हैं, जो हमारे साथ ही हमेशा गलत होता है। श्रीमद्भागवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि— जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल प्राप्त

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93. आत्मविश्वास से पाएं सफलता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः सफल होना सबकी चाहत होती है। व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, वैसे- वैसे उसकी कल्पनाओं को पंख लगते जाते हैं। जिन युवाओं को सही मार्गदर्शन नहीं मिलता वे अपने पथ से भटक जाते हैं। उनके जीवन में निराशा रूपी अंधकार के बादल छा जाते हैं, जिससे उनके

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