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111. सुख का मार्ग— त्याग

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मानव जीवन एक युद्ध भूमि है। जहां हमें सुख और दुख दोनों से लड़ना पड़ता है। द्वंद्व युद्ध में हम कई बार हार जाते हैं तो कई बार जीत भी जाते हैं। जब हम हार जाते हैं तो हताश और निराश होकर जीवन के युद्ध क्षेत्र में अर्जुन […]

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110. आनंद की अनुभूति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः दलदल में फंसा मनुष्य उसमें से निकलने के लिए जितना भी परिवर्तन करता है, उतना ही वह और फंसता चला जाता है। यह स्थिति वर्तमान में हमारी भी है। जहां जीने की और सोच की मौलिक दिशाएं उद्घाटित नहीं होती वहां मनुष्य में जड़ता और निराशा छा जाती

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109. कर्म फल

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि— हमारे प्रत्येक कर्म के बहुत से साक्षी हैं, दिशाएं साक्षी हैं, सूर्य साक्षी है, चंद्रमा साक्षी है, हमारी अपनी आत्मा साक्षी है। आपने अक्सर देखा होगा कि नगरों में कई जगह कैमरे लगे होते हैं और लिखा रहता है कि— आप कैमरे

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108. कर्म प्रधान

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः जीवन के उद्देश्य और लक्ष्य को धारण करने वाला मनुष्य ही अच्छे कर्मों के द्वारा इस शरीर को धन्य कर सकता है वरना खाना- पीना, सोना- जागना, चलना- फिरना यह कार्य तो सभी जीव- जंतु करते हैं। सिर्फ भोजन की चिंता करते- करते सुख समृद्धि के चिंतन में

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107. खुशी के सूत्र

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हम खुशी के लिए हमेशा भटकते रहते हैं। हम अपनी इच्छाओं में खुशी ढूंढते हैं। इस प्रतिस्पर्धी संसार में अत्यधिक सफलता पाने की होड़ में हमने अपनी सारी खुशी को तिलांजलि दे दी है। हम सदैव भागदौड़ की ऐसी दलदल में फंस जाते हैं, जिससे निकल पाना बहुत

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106. विवेक का प्रयोग

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य शरीर प्राप्त करने के बाद हमारा पहला उद्देश्य जीवन में विवेक को जागृत करके उसका समुचित प्रयोग करना होना चाहिए, क्योंकि एक मनुष्य ही है जिसमें विवेक का विकास होता है। विवेक के जागृत होने में आत्मनिरीक्षण की बहुत बड़ी भूमिका होती है।आत्मनिरीक्षण से अभिप्राय स्वयं के

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105. प्रेम की महत्ता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः प्रेम एक शाश्वत भाव है। प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया हुआ है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पुष्पित, पल्लवित और फलित होती है। हमारा प्रत्येक संबंध प्रेम के भाव से ही समृद्ध होता है। प्रेम वह शब्द है जिसकी व्याख्या असंभव है, परंतु जीवन का

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104. गुरु – शिष्य परंपरा

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः सदियों से भारतवर्ष की पावन धरा पर गुरु और शिष्य की परंपरा रही है। क्योंकि गुरु के द्वारा ही शिष्य को शिक्षा प्रदान की जाती है। सनातन परंपरा में गुरु अपने शिष्य के मन में चरित्र निर्माण, आपसी प्रेम और भाईचारे के बीज रोपित करता रहा है।संत कबीरदास

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103. यादों के झरोखे

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः यादें मनुष्य के जीवन का अहम् हिस्सा हैं। जैसे-जैसे जीवन रूपी यात्रा चलती है, वैसे- वैसे यादों का कारवां भी अनवरत् चलता रहता है। यादों का यह कारवां फलता-फूलता जाता है। यादें हमसे परछाई की तरह चिपकी रहती हैं। मनुष्य का अतीत यादों से भरा हुआ होता है।

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102. मूर्ति-पूजा

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः आधुनिक युग में जब मूर्ति पूजा को अंधविश्वास माना जाता है तब भी हमारी सनातन परंपरा में मूर्ति पूजा की जाती है। आज के समय जहां आध्यात्मिक शोध और बौद्धिक बहस चरम पर पहुंच गई है, तब भी अधिसंख्य जनता अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी हुई है क्योंकि

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